महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 146 श्लोक 18-27

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षट्चत्‍वारिंशदधिकशततम (146) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षट्चत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-27 का हिन्दी अनुवाद

मैं तुमसे झूठ नहीं बोलता। धृतराष्‍ट्र के पुत्रों के लिये मैं अपनी शक्तिऔर बल के अनुसार तुम्‍हारे पुत्रों के साथ युद्ध अवश्‍य करूँगा। परंतु उस दशा में भी दयालुता तथा सजनोचित सदाचार की रक्षा करता रहूंगा। इसीलिये लाभदायक होते हुए भी तुम्‍हारे इस आदेश को आज मैं नहीं मानूँगा। परंतु मेरे पास आनेका जो कष्‍ट तुमने उठाया है, वह भी व्‍यर्थ नहीं होगा। संग्राम में तुम्‍हारें चार पुत्रों को काबू के अंदर तथा वध के योग्‍य अवस्‍था में पाकर भी मैं नहीं मारूँगा। वे चार हैं, अर्जुन को छोड़कर युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव! युधिष्ठिर की सेना में अर्जुन के साथ ही मेरा युद्ध होगा। अर्जुन को युद्ध में मार देनेपर मुझे संग्राम का फल प्राप्‍त हो जायेगा अथवा स्‍वयं ही सव्‍यसाची अर्जुन के हाथ से मारा जाकर मैं यश का भागी बनूँगा। यशस्विनि ! किसी भी दशा में तुम्‍हारे पाँच पुत्र अवश्‍य शेष रहेंगे। यदि अर्जुन मारे गये तो कर्णसहित और यदि मैं मारा गया तो अर्जुनसहित तुम्‍हारे पाँच पुत्र रहेंगे। कर्ण की बात सुनकर कुन्‍ती धैर्य से विचलित न होने वाले अपने पुत्र कर्ण को हृदय से लगाकर दु:ख से काँपती हुई बोली-'कर्ण ! देव बड़ा बलवान है। तुम जैसा कहते हो वैसा ही हो। इस युद्ध के द्वारा कौरवों का संहार होगा। 'शत्रुसूदन ! तुमने अपने चार भाइयों को अभयदान दिया है। युद्ध में उन्‍हें छोड़ देने की प्रतिज्ञापर दृढ़ रहना।। 'तुम्‍हारा कल्‍याण हो। तुम्‍हें किसी प्रकार का कष्‍ट न हो।' इस प्रकार जब कुन्‍ती ने कर्ण से कहा, तब कर्ण ने भी 'तथास्‍तु' कहकर उसकी बात मान ली। फिर वे दोनों पृथक–पृथक अपने स्‍थान को चले गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्‍तर्गत भगवद्यानपर्व में कुन्‍ती और कर्ण की भेंटविषेयक एक सौ छियालिसवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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