महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 60 श्लोक 1-11

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षष्टितम (60) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

धृतराष्‍ट्र के द्वाराकौरव-पाण्‍डवों की शक्ति का तुलनात्मक वर्णन

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! संजय की बात सुनकर प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्‍ट्र ने उसके वचन के गुण-दोष का विवेचन आरम्भ किया। अपने पुत्रों की विजय चाहने वाले विद्वान् एवं बुद्धिमान् राजा धृतराष्‍ट्र ने बुद्धितत्त्व के द्वारा उक्त वचन के सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म गुण-दोषों की यथावत् समीक्षा करके दोनों पक्षों की प्रबलता एवं निर्बलता का यथा‍र्थ रूप से निश्‍चय कर लिया। तत्पश्‍चात् जब उन्हें यह विश्‍वास हो गया कि गुण-दोष की दृष्टि से श्रीकृष्‍ण का कथन सर्वोत्कृष्‍ट है, तब उन बुद्धिमान् नरेश को पुन: कौरवों और पाण्‍डवों की शक्ति पर विचार करना आरम्भ किया। पाण्‍डवों में दैवी शक्ति, मानवी शक्ति तथा तेज- इन सभी दृष्टियों से उत्कृष्‍टता प्रतीत हुई और कौरव-पक्ष की शक्ति अल्प जान पड़ी, इस प्रकार विचार करके धृतराष्‍ट्र ने दुर्योधन से कहा-। ‘वत्स दुर्योधन! मेरी यह चिन्ता कभी दूर नहीं होती हैं, क्योंकि तुम्हारा पक्ष दुर्बल है। मैं यह बात अनुमान से नहीं कहता हुं; प्रत्यक्ष देख रहा हूं; अत: इसी को सत्य मानता हूं। ‘तुम ऐसे कार्य के लिये दुराग्रह करते हो, जो समस्त भूमण्‍डल का विनाश करने वाला है। यह अधर्मकारक तो है ही, अपयश की भी बुद्धि करने वाला है; इसके सिवा यह अत्यन्त क्रूरतापूर्ण कर्म है। तात! तुम्हारा पाण्‍डवों के साथ युद्ध छोड़ना मुझे किसी भी तरह अच्छा नहीं लग रहा है।। ‘संसार के समस्त प्राणी अपने पुत्रों पर अत्यन्त स्नेह करते हैं तथा अपनी शक्ति के अनुसार इनका प्रिय एवं हितसाधन करते हैं। ‘इसी प्रकार प्राय: यह भी देखता हूं कि साधु पुरूष उपकारी मनुष्‍यों के उपकार का बदला चुकाने के लिये उनका बारंबार महान् प्रिय कार्य करना चाहते हैं। ‘कौरव-पाण्‍डवों के इस भयंकर संग्राम में अग्निदेव भी खाण्‍डव वन में अर्जुन के किये हुए उपकार को याद करके उनकी सहायता अवश्‍य करेंगे। ‘इसके सिवा पाण्‍डवों का जन्म अनेक देवताओं से हुआ है, इसलिये वे धर्म आदि देवता युधिष्ठिर आदि के बुलाने पर उनकी सहायता के लिये अवश्‍य पधारेंगे। ‘भीष्‍म, द्रोण और कृप आदि के भय से पाण्‍डवों की रक्षा चाहते हुए देवता लोग भीष्‍म आदि पर वज्र के समान भयंकर क्रोध करेंगे, ऐसा मेरा विश्‍वास है। ‘नरश्रेष्‍ठ पाण्‍डव अस्त्रविद्या के पारङ्गत और पराक्रमी तो हैं ही, देवताओं का सहयोग भी प्राप्त कर चुके है; अत: कोई मनुष्‍य उनकी ओर आंख उठाकर देख भी नहीं सकता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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