महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 71 श्लोक 1-7

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एकसप्ततितम (71) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-7 का हिन्दी अनुवाद

धृतराष्‍ट्र के द्वारा भगवद्नुणगान

धृतराष्‍ट्र बोले- संजय! जो लोग परम उत्तम श्री-अङ्गों से सुशोभित तथा दिशा-विदिशाओं को प्रकाशित करते हुए वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्‍ण को निकट से दर्शन करेंगे, उन सफल नेत्रों वाले मनुष्‍यों के सौभाग्य को पाने की मैं भी अभिलाषा रखता हूं। भगवान् अत्यन्त मनोहर वाणी में जो प्रवचन करेंगे, वह भरतवंशियों तथा सृंजयों के लिये कल्याणकारी तथा आदरणीय होगा। ऐश्र्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरूषों के लिये भगवान् की वह वाणी अनिन्द्य और शिरोधार्य होगी; परंतु जो मृत्यु के नि‍कट पहुंच चुके हैं, उन्हें वह अग्राह्य प्रतीत होगी। संसार के अद्वितीय वीर, सात्वतकुल के श्रेष्‍ठ पुरूष, यदुवंशियों के माननीय नेता, शत्रुपक्ष के योद्धाओं को क्षुब्ध करके उनका संहार करने वाले तथा वैरियों के यश को बलपूर्वक छीन लेने वाले वे भगवान् श्रीकृष्‍ण यहां उदित होंगे (और नेत्र वाले लोग उनका दर्शन करके धन्य हो जायंगे)। महात्मा, शत्रुहन्ता तथा सबके वरण करने योग्य वे वृष्णि-कुलभूषण श्रीकृष्‍ण यहां आकर कृपापूर्ण कोमल वाक्य बोलेंगे और हमारे पक्षवर्ती राजाओं को मोहित करंगे; इस अवस्था में समस्त कौरव उन्हें देखेंगे। जो अत्यन्त सनातन ॠषि, ज्ञानी, वाणी के समुद्र और प्रयत्नशील-साधकों को कलश के जल की भांति सुलभ होने वाले हैं, जिनके चरण समस्त विघ्‍नों का निवारण करने वाले है, सुन्दर पङ्खों से युक्त गरूड़ जिनके स्वरूप हैं, जो प्रजाजनों के पाप-ताप हर लेने वाले तथा जगत् के आश्रय हैं, जिनके सहस्त्रों मस्तक हैं, जो पुराणपुरूष हैं, जिनका आदि, मध्‍य और अन्त नहीं है, जो अक्षय कीर्ति से सुशोभित, बीज एवं वीर्यको धारण करने वाले, अजन्मा, नित्य तथा परात्पर परमेश्र्वर हैं, उन भगवान् श्रीकृष्‍ण की मैं शरण लेता हूं। जो तीनों लोकों का निर्माण करने वाले हैं, जिन्होंने देवताओं, असुरों, नागों तथा राक्षसों को भी जन्म दिया है तथा जो ज्ञानी नरेशों के प्रधान हैं, इन्द्र के छोटे भाई वामन-स्वरूप उन भगवान् श्रीकृष्‍ण की मैं शरण ग्रहण करता हूं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत यानसंधिपर्व में धृतराष्‍ट्रवाक्यविषयक इकहत्तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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