महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 96 श्लोक 62-65
षष्णवतितम (96) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: षष्णवतितम अध्याय: श्लोक 62-65 का हिन्दी अनुवाद
अतः जो मनुष्य दोषदृष्टि से रहित होकर सदा इस संहित को सनता है, वह सम्पूर्ण सुखों को प्राप्त कर लेता है, उस श्रेष्ठ मनुष्य पर भगवान विष्णु, ब्रह्या और महादेवजी भी प्रसन्न होते हैं। इसके पढ़ने और सुनने से ब्राह्माणों को वेदों का ज्ञान प्राप्त होता है, क्षत्रियों को बल और युद्ध में विजय प्राप्त होती है, वैश्य धन में बढे़-चढे़ हो जाते हैं और समस्त शूद्र आरोग्य लाभ करते हैं। इसमें सनातन भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) की महिमा का वर्णन किया गया है; अतः मनुष्य इसके स्वाध्याय से सुखी होकर सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को प्राप्त कर लेता है। महामुनि व्यासदेव की इस परम पूजित वाणी का ऐसा ही प्रभाव है। लगातार एक वर्ष तक प्रतिदिन जो बछड़ो सहित कपिला गौओं का दान करता है, उसे जिस पुण्य की प्राप्ति होती है वही कृष्णपर्व के श्रवणमात्र से मिल जाता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में युधिष्ठिर हर्षविषयक छानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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