महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 11 श्लोक 23-51
एकाशद (11) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
उनके पराक्रम को इन्द्र अच्छी तरह जानते थे, इसलिये उन्होने वह सब चुपचाप सह लिया । राजाओं मे से किसी को भी मैने ऐसा नहीं सुना है, जिसे श्रीकृष्ण ने जीत न लिया हो । संजय ! उस दिन मेरी सभा में कमलनयन श्रीकृष्ण के जो महान आश्चर्य प्रकट किया था, उसे इस संसार में उनके सिवा दूसरा कौन कर सकता है ? । मैने प्रसन्न होकर भक्तिभाव से भगवान श्रीकृष्ण के उस ईश्वरीय रूपका जो दर्शन किया, वह सब मुझे आज भी अच्छी तरह स्मरण है । मैंने उन्हें प्रत्यक्ष की भॉति जान लिया था । संजय ! बुद्धि और पराक्रम से युक्त भगवान ह्रषीकेश के कर्मो का अन्त नहीं जाना जा सकता । यदि गद, साम्ब, प्रधुम्न, विदूरथ, अगावह, अनिरूद्ध, चारूदेष्ण, सारण, उल्मुक, निशठ, झिल्ली, पराक्रमी बभ्रु, पृथु, विपृथु, शमीक तथा अरिमेजय-ये तथा दूसरे भी बलवान् एवं प्रहारकुशल वृष्णिवंश के प्रमुख वीर महात्मा केशव के बुलाने पर पाण्डव सेना में आ जायॅ और समरभूमि में खड़े हो जायॅ तो हमारा सारा उधोग संशय मे पड़ जाय; ऐसा मेरा विश्वास है । वनमाला और हल धारण करने वाले वीर बलराम कैलास-शिखर के समान गौरवर्ण हैं । उनमें दस हजार हाथियों का बल है । वे भी उसी पक्ष में रहेंगे, जहां श्रीकृष्ण हैं । संजय ! जिन भगवान वासुदेव को दिजगण सबका पिता बताते हैं, क्या वे पाण्डवों के लिये स्वयं युद्ध करेंगे ? । तात ! संजय ! जब पाण्डवों के लिये श्रीकृष्ण कवच बॉधकर युद्ध के लिये तैयार हो जायॅ, उस समय वहां कोई भी योद्धा उनका सामना करने को तैयार न होगा यदि सब कौरव पाण्डवों को जीत लें तो वृष्णिवंशभूषण भगवान श्रीकृष्ण उनके हित के लिये अवश्य उत्तम शस्त्र ग्रहण कर लेंगे। उस दशा में पुरूषसिंह महाबाहु श्रीकृष्ण सब राजाओं तथा कौरवों को रणभूमि में मारकर सारी पृथ्वी कुन्ती को दे देंगे । जिसके सारथि सम्पूर्ण इन्द्रियों के नियन्ता श्रीकृष्ण तथा योद्धा अर्जुन हैं, रणभूमि में उस रथका सामना करनेवाला दूसरा कौन रथ होगा ? किसी भी उपाय से कौरवों की जय होती नहीं दिखायी देती । इसलिये तुम मुझसे सब समाचार कहो । वह युद्ध किस प्रकार हुआ ? अर्जुन श्रीकृष्ण के आत्मा हैं और श्रीकृष्ण किरीटधारी अर्जुन को आत्मा हैं । अर्जुन में विजय नित्य विद्ममान है और श्रीकृष्ण में कीर्तिका सनातन निवास है । अर्जुन सम्पूर्ण लोकों में कभी कहीं भी पराजित नहीं हुए हैं । श्रीकृष्ण में असंख्य गुण हैं । यहां प्राय: प्रधान गुण के नाम लिये गये हैं । दुर्योधन मोहवश सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान केशव को नहीं जानता है, यह दैवयोग से मोहित हो मौत के फंदे में फॅस गया । यह दशार्हकुलभूषण श्रीकृष्ण और पाण्डुपुत्र अर्जुन को नहीं जानता हैं, वे दोनेां पूर्व देवता महात्मा नर और नारायण है । उनकी आत्मा तो एक है; परंतु इस भूतल के मुनष्यों को वे शरीर से दो होकर दिखायी देते हैं । उन्हें मनसे भी पराजित नहीं किया जा सकता । वे यशस्वी श्रीकृष्ण और अर्जुन यदि इच्छा करे तो मेरी सेना को तत्काल नष्ट कर सकते है; परंतु मानव भाव का अनुसरण करने के कारण ये वैसी इच्छा नहीं करते है । तात ! भीष्म तथा महात्मा द्रोण का वध युग के उलट जाने की सी बात है । सम्पूर्ण लोकों को यह घटना मानो मोह में डालनेवाली है । जान पड़ता है, कोई भी न तो ब्रह्राचर्य के पालनसे, न वेदों के स्वाध्यायसे, न कर्मो के अनुष्ठान से और न अस्त्रों के प्रयोग से ही अपने को मृत्यु से बचा सकता है । संजय 1लोकसम्मानित, अस्त्रविधा के ज्ञाता तथा युद्ध दुर्मद वीरवर भीष्म और द्रोणाचार्य के मारे जाने का समाचार सुनकर मैं किसलिये जीवित रहूं ? । पूर्वकाल में राजा युधिष्ठिर के पास जिस प्रसिद्ध राजलक्ष्मी को देखकर हमलोग उनसे डाह करने लगे थे, आज भीष्म और द्रोणाचार्य के वध से हम उसके कटु फलका अनुभव कर रहें हैं । सूत ! मेरे ही कारण यह कौरवों का विनाश प्राप्त हुआ है । जो कालसे परिपक हो गये हैं, उनके वध के लिये तिनके भी वज्रका काम करते है । युधिष्ठिर इस संसार में अनन्त ऐश्वर्य के भागी हुए हैं । जिनके कोप से महात्मा भीष्म और द्रोण मार गिराये गये । युधिष्ठिर को धर्म का स्वाभाविक फल प्राप्त हुआ हैं, किंतु मेरे पुत्रों को उसका फल नहीं मिल रहा है । सबका विनाश करने के लिये प्राप्त हुआ यह क्रूर काल बीत नहीं रहा है । तात ! मनस्वी पुरूषों द्वारा अन्य प्रकार से सोचे हुए कार्य भी दैव योग से कुछ और ही प्रकार के हो जाते है; ऐसा मेरा अनुभव है । अत: इस अनिवाय अपार दुश्रिन्त्य एवं महान संकट के प्राप्त होनेपर जो घटना जिस प्रकार हुई हो, वह मुझे बताओ ।
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