महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 136 श्लोक 20-40

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षट्त्रिंशदधिकशतकम (136) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: षट्त्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद

उनके नाम इस प्रकार हैं - चित्र, उपचित्र, चित्रार्थ, चारुचित्र, शरासन, चित्रायुध और चित्रवर्मा। ये सब - के - सब समर भूमि में विचित्र रीति से युद्ध करने वाले थे। महारथी भीमसेन ने उनके आते ही शीघ्रता पूर्वक एक एक बाण मारकर आपके सभी पुत्रों को युद्ध में धराशायी कर दिया। वे मारे जाकर आँधी में उखाड़े हुए वृक्षों के समान पृथ्वी पर गिर पड़े। राजन् ! आपके महारथी पुत्रों को इस प्रकार मारा गया देख कर्ण के मुख पर आँसुओं की धारा बह चली। उस समय उसे विदुर की कही हुई बात याद आयी। फिर उस पराक्रमी वीर ने विधि पूर्वक सजाये हुए दूसरे रथ पर बैइकर युद्ध में शीघ्रता पूर्वक पाण्डु पुत्र भीमसेन पर धावा किया। वे देनों एक दूसरे को शिला पर तेज किये हुए सुवर्ण पंख युक्त बाणों द्वारा क्षत - विक्षत करके सूर्य की किरणों में पिरोये हुए बादलों के समान सुशोभित होने लगे। तत्पश्चात् क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने प्रचण्ड तेज वाले छत्तीस तीखे भल्लों का प्रहार करके सूत पुत्र के कवच की धज्जियाँ उड़ा दी। भरत श्रेष्ठ ! फिर महाबाहु सूत पुत्र ने भी कुन्ती कुमार भीमसेन को झुकी हुई गाँठ वाले पचास बाणों से बींध डाला। उन दोनों ने अपने शरीर में लाल चन्दन लगा रक्खे थे। इसके सिवा उनके शरीर में बाणों के आघात से बड़े - बड़े घाव हो गये थे इस प्रकार खून से लथपथ हुए वे दोनों योऋद्धा उदय कालीन सूर्य और चन्द्रमा के समान शोभा पा रहे थे।
बाणों द्वारा उन दोनों के कवच कट गये थे और सारे अंग रक्त से भीग गयश्े थे। उस दशा में वे कर्ण और भीमसेन केंचुल छोड़कर निकले हुए दो सर्पों के समान शोभा पाने लगे। जैसे दो व्याघ्र अपनी दाढ़ों से एक दूसरे पर चोट करते हैं, उसी प्रकार वे दोनों पुरुष व्याघ्र योद्धा परस्पर प्रहार कर रहे थे। वे दोनों वीर दो मेघों के समान बाण धारा की वर्षा कर रहे थे। जैसे दो हाथी अपने दाँतों से एक दूसरे पर आघात करते हैं, उसी प्रकार वे शत्रुदमन वीर अपने बाणों द्वारा उे दूसरे के शरीरों को विदीर्ण करते हुए सुशोभित हो रहे थे। रथियों में श्रेष्ठ भीम और कर्ण सिंहनाद करते, अत्यन्त हर्ष से उत्फुल्ल हो उठते और आपस में खेल सा करते हुए रथों द्वारा मण्डल गति से विचरने थे। जैसे गाय के लिये दो बलवान् साँड़ गरजते हुए लड़ जाते हैं, उसी प्रकार वे सिंह के समान पराक्रमी महान् बलशाली पुरुषसिंह कण और भीम क्रोध से लाल आँखें करके एक दूसरे को देखते हुए महापराक्रमी इन्द्र और बलि के समान युद्ध कर रहे थे।
राजन् ! उस रण क्षेत्र में महाबाहु भीमसेन अपनी भुजाओं से धनुष की टंकार करते हुए बिजली सहित मेघ के समान शोभा पा रहे थे। रथ के पहियों की घरघराहट जिसकी गम्भीर गर्जना थी और धनुष ही विद्युत के समान प्रकाशित हाता थात्र, भीमसेन रूपी उस महामेघ ने बाण रूपी जल की वर्षा से कर्ण रूपी पर्वत को ढक दिया। भरत नन्दन ! तदनन्तर अच्छी तरह चलाये हुए सहस्त्रों बाणों से भयुकर पराक्रमी पाण्डु पुत्र भीम ने कर्ण को आचछादित कर दिया। आपके पुत्रों ने वहाँ भीमसेन का यह अद्भुत पराक्रम देखा कि उन्होंने कंक पत्र युक्त सुन्दर पंख वाले बाणों से कर्ण को आच्छादित कर दिया। भीमसेन रण क्षेत्र मेें कुन्ती कुमार अर्जुन, यशस्वी श्रीकृष्ण, सात्यकि तथा दोनों चक्र रक्षक युधामन्यु एवं उत्तमौजा को आनन्दित करते हुए कर्ण के साथ युद्ध कर रहे थे। महाराज ! सुविख्यात भीमसेन के पराक्रम, बाहुबल और धैर्य को देखकर आपके सभी पुत्र उदास हो गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथ वध पर्व में भीमसेन का युद्ध विषयक एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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