महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 157 श्लोक 1-20

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सप्तपण्चाशदधिकशततम (157) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: सप्तपण्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


सोमदत की मूर्छा, भीम के द्वारा बाहीक का वध, धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनिके सात रथियों एवं पांच भाइयों का संहार तथा द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय

संजय उवाच संजय कहते हैं- राजन् ! द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा के द्वारा द्रुपद और कुन्तीभोज के पुत्रों तथा सहस्त्रों राक्षसों को मारा गया देख युधिष्ठिर, भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न तथा युयुघान ने भी सावधान होकर युद्ध में ही मन लगाया । भारत ! युद्धस्थल में सात्यकि को देखकर सोमदत पुनः कुपित हो उठे और उन्होंने बडी भारी बाणवर्षा करके सात्यकि को आच्छादित कर दिया । फिर तो विजय की अभिलाषा रखनेवाले आपके और शत्रुपक्ष के सैनिकों में अत्यन्त भयंकर घोर युद्ध छिड गया ।। सोमदत को आते देख भीमसेन ने सात्यकि की सहायता के लिये शिलापर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले दस बाणों-द्वारा उन्हें घायल कर दिया । सोमदत ने भी वीर भीमसेन को सौ बाणों से वेघकर बदला चुकाया। इधर सात्यकि ने भी अत्यन्त कुपित हो पुत्रशोक में डूबे हुए, नहुषनन्दन ययातिकी भांति वृध्दता के गुणों से युक्त बूढे सोमदत को वज्र को भी मार गिरानेवाले दस तीखे बाणों से बींघ डाला । फिर शक्ति से इन्हें विदीर्ण करके सात बाणों द्वारा पुनः गहरी चोट पहुंचायी। तत्पश्‍चात् सात्यकिके लिये भीमसेन ने सोमदत के मस्तक पर नूतन, सुदृढ एवं भयंकर परिघ का प्रहार किया । इसी समय सात्यकि ने भी युद्धस्थल में कुपित हो सोम-दत की छाती पर सुन्दर पंखवाले, अग्नि के समान तेजस्वी, उतम और तीखे बाण का प्रहार किया । वे भयंकर परिघ और बाण वीर सोमद तके शरीर पर एक ही साथ गिरे। इससे महारथी सोमदत मूर्छित होकर गिर पडे । अपने पुत्र के मूर्च्छित होनेपर बाहीक ने वर्षा ऋतु में वर्षा करनेवाले मेघ के समान बाणों की वृष्टि करते हुए वहां सात्यकि पर धावा किया । भीमसेन ने सात्यकि के लिये महात्मा बाहीक को पीडित करते हुए युद्ध के मुहाने पर उन्हें नौ बाणों से घायल कर दिया । तब महाबाहू प्रतीपपुत्र बाहीक ने अत्यन्त कुपित हो भीमसेन की छाती में अपनी शक्ति धंसा दी, मानो देवराज इन्द्र ने किसी पर्वत पर वज्र मारा हो । इस प्रकार शक्ति से आहत होकर भीमसेन कांप उठे और मूर्च्छित हो गये। फिर सचेत होनेपर बलवान् भीम ने उनपर गदा का प्रहार किया । पाण्डुपुत्र भीमसेन द्वारा चलायी हुई उस गदा ने बाहीक का सिर उडा दिया। वे वज्र के मारे हुए पर्वतराज की भांति मरकर पृथ्वी पर गिर पडे । नरश्रेष्ठ ! वीर बाहीक के मारे जाने पर श्रीरामचन्द्रजी के समान पराक्रमी आपके दस पुत्र भीमसेन को पीडा देने लगे । उनके नाम इस प्रकार है- नागदत, द्दढरथ(द्दढरथाश्रय), महाबाहु, अयोभुज(अयोबाहु), द्दढ(द्दढक्षत्र), सुहस्त, विरजा, प्रमाथी, उग्र(उग्रश्रवा) और अनुनायी (अग्रयायी) । उनको सामने देखकर भीमसेन कुपित हो उठे। उन्होंने प्रत्येक के लिये एक-एक करके भारसाधन में समर्थ दस बाण हाथ में लिये और उन्हें उनके मर्म-स्‍थानों पर चलाया । उन बाणों से घायल होकर आपके पुत्र अपने प्राणों से हाथ धो बैठे और पर्वतशिखर से प्रचण्ड वायु द्वारा उखाडे हुए वृक्षों के समान तेजोहीन होकर रथों से नीचे गिर पडे । आपके उन पुत्रों को दस नाराचों द्वारा मारकर भीमसेन ने कर्ण के प्यारे पुत्र वृषसेन पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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