महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 113 श्लोक 43-52

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त्रयोदशाधिकशततम (113) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: त्रयोदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 43-52 का हिन्दी अनुवाद

उस समय प्रतापी भीमसेन ने अपने सारथी विशोक को अत्यन्त क्षत-विक्षत हुआ देख तीन बाणों से मद्रराज शल्य की भुजाओं तथा छाती में प्रहार किया। भगदत, वीरवर, कृतवर्मा तथा अन्य महाधनुर्धर वीरों को उन्होंने तीन-तीन सीधे जाने वाले सायकों द्वारा समर भूमि में मारा और सिंह के समान गर्जना की। तब उन सभी महाधनुर्धरों ने एक साथ प्रयत्न करके तीखे अग्रभाग वाले तीन-तीन बाणों द्वारा युद्ध कुशल पाण्डुपुत्र भीम के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुंचायी। उनके द्वारा अत्यन्त घायल होने पर भी महाधनुर्धर भीमसेन बादलों की बरसायी हुई जल-धाराओं से पर्वत की भांति तनिक भी व्यथित एवं विचलित नहीं हुए। राजन! तब क्रोध में भरे हुए पाण्डवों के महारथी महायशस्वी भीमसेन ने मद्रराज शल्य को तीन और कृपाचार्य को नौ बाणों द्वारा सब ओर से अत्यन्त घायल करके प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत्त को सैकड़ों बाणों द्वारा समरभूमि में बींध डाला। तत्पश्चात सिद्धहस्त पुरूष की भांति भीमसेन ने अत्यन्त तीखे क्षुरप्र के द्वारा महामना कृतवर्मा के बाण सहित धनुष को काट डाला। तब शत्रुओं को संताप देने वाले कृतवर्मा ने दूसरा धनुष लेकर भीमसेन की दोनों भौहों के मध्य भाग में नाराच के द्वारा प्रहार किया। तत्पश्चात् भीमसेन ने समरागण में लोहे के बने हुए नौ बाणों से राजा शल्य को बेधकर तीन बाणों से भगदत्त को, आट से कृतवर्मा को और दो-दो बाणों द्वारा कृपाचार्य आदि रथियों को बींध डाला।
राजन! फिर उन्होंने भी अपने तीखे बाणों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया। उन महारथियों द्वारा सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से पीड़ित किये जाने पर भी भीमसेन उन्हें तिनकों के समान मानकर व्यथारहित हो विचरण करने लगे। रथियों में श्रेष्ठ उन वीरों ने भी व्यग्रतारहित हो भीमसेन सैकड़ों और हजारों की संख्या में तीखे बाण चलाये। महामते! उस समर भूमि में वीर महारथी भगदत ने भीमसेन पर स्वर्णमय दण्ड से विभूषित एक महावेगशालिनी शक्ति चलायी। सिन्धु देश के राजा महाबाहु जयद्रथ ने तोमर और पट्टिश चलाया। राजन! कृपाचार्य ने शतघ्नीसका प्रयोग किया तथा राजा शल्य ने युद्ध स्थल में एक बाण मारा। इनके सिवा दूसरे धनुर्धर वीरों ने भी भीमसेन को लक्ष्य करके बलपूर्वक पांच-पांच बाण चलाये। परंतु वायुपुत्र भीमसेन ने एक क्षुरप्र से जयद्रथ के चलाये हुए तोमर के दो टुकड़े कर दिये। फिर तीन बाण मारकर पट्टिश को तिल के डंठल के समान टूक-टूक कर डाला तत्पश्चात् कंकपत्रयुक्त नौ बाणों द्वारा शतध्नी का को छिन्न-भिन्न कर दिया। इसके बाद महारथी भीमसेन ने मद्रराज शल्य के चलाये हुए बाण को काटकर रणक्षेत्र में भगदत्त की चलायी हुई शक्ति के भी सहसा टुकड़े-टुकड़े कर डाले।
तदनन्तर झुकी हुई गांठ वाले बहुत-से बाणों द्वारा अन्यान्य योद्धाओं के चलाये हुए भयंकर शरसमूहों को भी युद्ध की श्लाहघा रखने वाल भीमसेन ने काटकर एक-एक के तीन-तीन टुकड़े कर दिये। इस प्रकार शत्रुओं के अस्त्र-शस्त्रों का निवारण करके भीमसेन ने उन सभी महाधनुर्धर वीरों को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। तब उस महासमर में महारथी भीमसेन को, जो समर भूमि में सायकों द्वारा शत्रुओं का संहार करते हुए उनके साथ युद्ध कर रहे थे, देखकर रथ के द्वारा अर्जुन भी वहीं आ पहुंचे। उन दोनों महामनस्वी पाण्डव बन्धुओं को एकत्र हुआ देख आपकी सेना के श्रेष्ठ पुरूषों ने वहां अपनी विजय की आशा त्याग दी। भरतनन्दन! उस रणक्षेत्र में भीम जिनके साथ युद्ध कर रहे थे।
आपके पक्ष के उन दस महारथी वीरों के सामने भीष्म के वध की इच्छा रखने वाले अर्जुन भी शिखण्डी को आगे किये आ पहुंचे। राजन! जो लोग रणक्षेत्र में भीमसेन के साथ युद्ध करते हुए खड़े थे, उन सबको अर्जुन ने भीम का प्रिय करने की इच्छा से अच्छी तरह घायल कर दिया। तब राजा दुर्योधन ने अर्जुन और भीमसेन दोनों के वध के लिये सुशर्मा को भेजा। भेजते समय उसने कहा- ‘सुशर्मन्! तुम विशाल सेना के साथ शीघ्र जाओ और अर्जुन तथा भीमसेन इन दोनों पाण्डु कुमारों को मार डालो। दुर्योधन की यह बात सुनकर प्रस्थला के स्वामी त्रिगर्तराज सुशर्मा ने रणक्षेत्र में धावा करके भीमसेन और अर्जुन दोनों धनुर्धर वीरों को अनेक सहस्त्र रथों द्वारा सब ओर से घेर लिया। उस समय अर्जुन का शत्रुओं के साथ घोर युद्ध होने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भीमसेन का पराक्रमविषयक एक सौ तेरहवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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