महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 98 श्लोक 39-42
अष्टनवतितम (98) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
तात ! पाण्डव पक्ष के दूसरे जो जो विजयाभिलाषी क्षत्रिय युद्ध में मुहाने पर मेरे सामने आयेंगे, उन सबका मैं वध करूँगा। भरतश्रेष्ठ दुःशासन ! शस्त्रों के ज्ञाता गडंगान्दन भीष्म ने इस प्रकार मुझसे कहा है। अतः युद्धभूमि में सब प्रकार से भीष्म की रक्षा को ही मैं अपना मुख्य कर्तव्य मानता हूँ। यदि महायुद्ध में सिंह की रक्षा नहीं की जाय तो उसे एक भेडि़या मार सकता है, परंतु हम भेडि़ये के सदृश शिखण्डी हाथ से सिंह के समान भीष्म का वध नहीं होने देंगे। (अतः उनकी रक्षा के लिये सारी आवश्यक व्यवस्था करो।) मामा शकुनि, शल्य, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और विविंशति- ये सब लोग सावधान होकर गंडगानन्दन भीष्म की रक्षा करो। उनके सुरक्षित रहने पर ही हमारी विजय निश्चित है।
उस समय दुर्योधन की यह बात सुनकर उन सब वीरों ने रथ की विशाल सेना द्वारा गडंगानन्दन भीष्म को सब ओर से घेर लिया।
आपके सब पुत्र भी भीष्म को चारों ओर से घेरकर प्रसन्नतापूर्वक चले। वे उस समय भूलोक और स्वर्गलोक को भी कँपाते हुए पाण्डवों के मन में क्षोभ उत्पन्न कर रहे थे। वे समस्त कौरव महारथी सुशिक्षित रथों और हाथियों से भीष्म को घेरकर कवच आदि से सुसज्जित हो युद्ध के लिये खड़े हो गये। जिस प्रकार देवासुर-संग्राम के समय देवताओं ने वज्रधारी इन्द्र की रक्षा की थी, उसी प्रकार वे सब कौरव योद्धा महारथी भीष्म की रक्षा करने लगे। तब राजा दुर्योधन ने अपने भाईयों से पुनः इस प्रकार कहा- दुःशासन ! अर्जुन के रथ के बायें पहिये की रक्षा युधामन्यु और दाहिने पहिये की रक्षा उत्तमौजा करते है। इस प्रकार अर्जुन के ये दो रक्षक है और अर्जुन भी शिखण्डी की रक्षा करते है। अर्जुन से सुरक्षित और हम लोगों से उपेक्षित होकर शिखण्डी हमारे भीष्म को जिस प्रकार मार न सके, ऐसी व्यवस्था करो। बड़े भाई की यह बात सुनकर आपका पुत्र दुःशासन भीष्म को आगे करके सेना के साथ युद्ध के मैदान में गया। भीष्म को रथों के समूह से घिरा हुआ देख रथियों में श्रेष्ठ अर्जुन ने धृष्टद्युम्न से कहा- नरेश्वर ! पान्चालराजकुमार ! आज तुम पुरूषसिंह शिखण्डी को भीष्म के सामने उपस्थित करो। मैं उसकी रक्षा करूँगा।।
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