महाभारत वन पर्व अध्याय 83 श्लोक 72-97

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त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 72-97 का हिन्दी अनुवाद

वह मनुष्य ब्रह्मजी से निकट जाकर उनका दर्शन करने से शुद्ध, पवित्रचित्त एवं सब पापों से रहित होकर ब्रह्मलोक में जाता है। कपित का केदार भी अत्यन्त दुर्लभ है। वहां जाने से तपस्या द्वारा सब पाप नष्ट हो जाने के कारण मनुष्य को अन्तर्धानविद्या की प्राप्ति हो जाती है। राजेन्द्र ! तदनन्तर लोकविख्यात सरकतीर्थ में जाय। वहां कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को भगवान् शंकर का दर्शन करने से मनुष्य सब कामनाओं को प्राप्त कर लेता और स्वर्गलोक में जाता है। कुरूनन्दन ! सरक में तीन करोड़ तीर्थ हैं। राजन् वे सब तीर्थ रूद्रकोटि में, कूप में और कुण्डों में हैं। भरतशिरोमणे ! वहीं इलास्पदतीर्थ है जिस में स्नान और देवता-पितरो का पूजन करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और वाजपेययज्ञ का फल पाता है। महीपते ! वहां किदान ओर किंजप्य नामक तीर्थ भी है। भारत ! उनमें स्नान करने से मनुष्य दान और जप को असी फल पाता है। कलशीतार्थ में जल का आचमन करके ऋद्धालु और जितेन्द्रिय मानव अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता है। कुरूकुलश्रेष्ठ ! सरतीर्थ पूर्व में महात्मा नारद का तीर्थ है, जो अम्बाजन्म के नाम से विख्यात है। भारत ! उस तीर्थ में स्नान करके मनुष्य प्राणत्याग के पश्चात् नारदजी की आज्ञा के अनुसार परम उत्तम लोकों में जाता है। शुंकापक्ष की दशमी तिथि को पुण्डरीक तीर्थ में प्रवेश करे। राजन् वहां स्नान करने से मनुष्य को पुण्डरीकयाग का फल प्राप्त होता है।। तदनन्तर तीनों लोकों मे विख्यात त्रिविष्टपतीर्थ में जाय। वहां वैतरणी नामक पुण्यमयी पापनाशिनी नदी है। उसमें स्नान करके शूपाणि भगवान् शंकर की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से शुद्धचित्त हो परम गति को प्राप्त होता है। राजेन्द्र ! वहां से फलकीवन नामक उत्तम तीर्थ यात्रा करे। राजन् ! देवतालोग फलकीवन में सदा निवास करते हैं और अनेक सहस्त्र वर्षो तक वहां भारी तपस्या में लगे रहते हैं। भारत ! दृषद्वती में स्नान करके देवता-पितरों का तर्पण करते हैं। मनुष्य अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञों का फल पाता है। भरतसत्तम राजेन्द्र ! सर्वदेवतीर्थ में स्नान करने से मानव सहस्त्र गोदान का फल पाता है। भारत ! पणिखाततीर्थ में स्नान करके देवता-पितरों का तर्पण करने से मनुष्य अग्निष्टोम और अतिरात्रयज्ञों से मिनलेवाले फल को प्राप्त करता है; साथ ही वह राजसूय यज्ञ का फल पाता एवं ऋषिलोक में जाता है। राजेन्द्र ! तत्पश्चात् परम उत्तम मिश्रकतीर्थ में जाय। महाराज ! वहां महात्मा व्यास ने द्विजों के लिये सभी तीर्थो का सम्मिश्रण किया है; यह बात मेरे सुनने में आयी है। जो मनुष्य मिश्रकतीर्थ में स्नान करता है, उसका वह स्नान सभी तीर्थो में स्नान करने के समान है। तत्पश्चात् नियमपूर्वक रहते हुए मिताहारी होकर व्यासवन की यात्रा करे। वहां मनोजवतीर्थ में स्नान करके मनुष्य सहस्त्र गोदान का फल पाता है। मधुवटी में जाकर देवीतीर्थ में स्नान करके पवित्र हुआ मानव वहां देवता-पितरों की पूजा करके देवी की आज्ञा के अनुसार सहस्त्र गोदान का फल पाता है। भारत ! कौशिकी की दृषद्वेती के संगम में जो नियमित भोजन करते हुए स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। तत्पश्चात् व्यासस्थली में जाय, जहां परम बुद्धिमान् व्यास ने पुत्रशोक से संतप्त हो शरीर त्याग देने का विचार किया था। राजेन्द्र ! उस समय उन्हें देवताओं ने पुनः उठाया था, उस स्थल में जाने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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