महाभारत विराट पर्व अध्याय 16 श्लोक 38-42

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षोडश (16) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व))

महाभारत: विराट पर्व षोडशोऽध्यायः श्लोक 38-42 का हिन्दी अनुवाद


जिसका शरीर शुभ और हृष्ट-पुष्ट है, जिसका मुख अपने सौन्दर्य से कमल को पराजित कर रहा है तथा जिसकी मन्द मन्द गति हंस को और मुस्कान कुन्दपुष्पों की शोभा को तिरस्कृत कर रही है, वही यह नारी पदप्रहार के योग्य नहीं है। जिसके बत्तीसों दाँत मसूड़ों में दृढ़ता पूर्वक आबद्ध और उज्जवल हैं, जिसके केश चिकने और कोमल हैं, वैसी यह नारी लात मारने योग्य कदापि नहीं है। जिसकी हथेली में कमल, चक्र, ध्वजा, शंख, मन्दिर और मगर के चिन्ह हैं, वह शुभलक्षणा नारी पैरों से ठुकरायी जाय, यह कदापि उचित नहीं है।। जिसके शरीर में चार आवर्त हैं और व सब प्रदक्षिणभाव से सुशोभित हैं, जिसक अंग समान (सुडौल), शुभ लक्षणों सक सम्पन्न और स्किन्ध हैं, वह लात माने योग्य नहीं है। जिसके हाथों, पैरों और दाँतों में छिद्र दिखायी देते हैं, वह कमलदललोचना कन्या पैरों से ठोकर मारने योग्य कैसे हो सकती है ? यह समसत शुभ लक्ष्णों से सम्पन्न हैं। इसका मुख पूर्णचन्द के समान मनोहर है। यह सुन्दर रूपवाली सुमुखी नारी पैरों से ठुकराने योग्य नहीं है। यह देवांगना के समान सौभाग्यशालिनी, इन्द्राणी के समान शोभासम्पन्न तथा अप्सरा के समान युन्दर रूप धारण करने वाली है। यह लात मारने योग्य कदापि नहीं है। 1890 मनुष्य-जाति में तो ऐसी सती-साध्वी स्त्री सुलभ ही नहीं होती। इसके सम्पूर्ण अंग निर्दोष हैं। हम तो इसे मानवी नहीं; देवी मरनते हैं। वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! जब इस प्रकार द्रौपदी को देखकर सभासद् उसकी प्रशंसा कर रहे थे, उस समय कीचक के प्रति क्रोय कोन के कारण युधिष्ठिर के ललाट पर पसीना आ गया। तदनन्तर सुन्दरी द्रौपदी लंबी साँस खींचकर नीचा मुख किये भूमि पर खड़ी हो गयी और राजा युधिष्ठिर को कुछ कहने के लिये उद्यत देख वह स्वयं मौन रह गयी। तब उन कुरुनन्दन ने अपनी प्यारी रानी से इस प्रकार कहा- ‘सैरन्ध्री ! अब मू यहाँ न ठहर। रानी सुदेष्णा के महन में चली जा।।40।। ‘पति का अनुसरण करने वाली वीरपत्नियाँ सब क्लेश चुपचाप उठाती हैं, वे साध्वी देनियाँ पतिलोक पर विजय पा लेती हैं। ‘मैं समझता हूँ, तुम्हारे सूर्य के समान तेजस्वी पति गन्धर्वगण अभी क्रोध करने का अवसर नहीं देखते; इसीलिये तुम्हारे पास दौड़कर नहीं आ रहे हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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