महाभारत शल्य पर्व अध्याय 27 श्लोक 20-40
सप्तविंश (27) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
श्रीकृष्ण ! मैं सोचता हूं कि आज शत्रु दल का कोई भी योद्धा यहां मेरे हाथ से बचकर नहीं जा सकेगा। जो मदोन्मत्त वीर आज युद्ध छोड़ कर भाग नहीं जायेंगे, उन सब को, वे मनुष्य न होकर देवता या दैत्य ही क्यों न हों, मैं मार डालूंगा। आज मैं अत्यन्त कुपित हो गान्धारराज शकुनि को पैने बाणों से मरवा कर राजा युधिष्ठिर के दीर्घकालीन जागरण रूपी रोग को दूर कर दूंगा । दुराचारी सुबलपुत्र शकुनि ने द्यूतसभा में छल करके जिन रत्नों को हर लिया था, उन सब को मैं वापस ले लूंगा । आज हस्तिनापुर की वे सारी स्त्रियां भी युद्ध में पाण्डवों के हाथ से अपने पतियों और पुत्रों को मारा गया सुन कर फूट-फूट कर रोयेंगी। श्रीकृष्ण ! आज हम लोगों का सारा कार्य समाप्त हो जायगा। आज दुर्योधन अपनी उज्ज्वल राजलक्ष्मी और प्राणों को भी खो बैठेगा । वृष्णिनन्दन श्रीकृष्ण ! यदि वह मेरे भय से युद्ध से भाग न जाये, तो मेरे द्वारा उस मूढ़ दुर्योधन को आप मारा गया ही समझें । शत्रुदमन ! यह घुड़सवारों की सेना मेरे गाण्डीव धनुष की टंकार को नहीं सह सकेगी। आप घोड़े बढ़ाइये, मैं अभी इन सब को मारे डालता हूं। राजन् ! यशस्वी पाण्डुपुत्र अर्जुन के ऐसा कहने पर दशार्हकुलनन्दन श्रीकृष्ण ने दुर्योधन की सेना की ओर घोड़े बढ़ा दिये । मान्यवर ! उस सेना को देखकर तीन महारथी भीमसेन, अर्जुन और सहदेव युद्ध-सामग्री से सुसज्जित हो दुर्योधनके वध की इच्छा से सिंहनाद करते हुए आगे बढ़े । उन सब को बड़े वेग से धनुष उठाये एक साथ आक्रमण करते देख सुबल पुत्र शकुनि रणभूमि में आततायी पाण्डवों की ओर दौड़ा । आपका पुत्र सुदर्शन भीम का सामना करने लगा। सुशर्मा और शकुनि ने किरीटधारी अर्जुन के साथ युद्ध छेड़ दिया । नरेश्वर ! घोड़े की पीठ पर बैठा हुआ आप का पुत्र दुर्योधन सहदेव के सामने आया। उसने बड़े यत्न से सहदेव के मस्तक पर शीघ्रतापूर्वक प्रास का प्रहार किया । आपके पुत्र द्वारा ताडि़त होकर सहदेव फुफकारते हुए विषधर सर्प के समान लंबी सांस खींचते हुए रथ के पिछले भाग में बैठ गये। उनका सारा शरीर लहूलुहान हो गया । प्रजानाथ ! थोड़ी देर में सचेत होने पर क्रोध में भरे हुए सहदेव दुर्योधन पर पैने बाणों की वर्षा करने लगे । कुन्तीपुत्र अर्जुन ने भी युद्ध में पराक्रम करके घोड़ों की पीठों से शूरवीरों के मस्तक काट गिराये । पार्थ ने अपने बहुसंख्यक बाणों द्वारा घुड़सवारों की उस सेना को छिन्न-भिन्न कर डाला तथा समस्त घोड़ों को धराशायी करके त्रिगर्तदेशीय रथियों पर चढ़ाई कर दी । तब वे त्रिगर्तदेशीय महारथी एक साथ होकर अर्जुन और श्रीकृष्ण को अपने बाणों की वर्षा से आच्छादित करने दगे ।प्रभो ! उस समय महायशस्वी पाण्डुनन्दन अर्जुन ने क्षुरप्र द्वारा सत्यकर्मा पर प्रहार करके उसके रथ की ईषा (हरसा) काट डाली। तत्पश्चात् उन महायशस्वी वीर ने शिला पर तेज किये हुए क्षुरप्र द्वारा उसके तपाये हुए सुवर्ण के कुण्डलों से विभूषित मस्तक को सहसा काट लिया । राजन् ! जैसे वन में भूखा सिंह किसी मृग को दबोच लेता है, उसी प्रकार अर्जुन ने समस्त योद्धाओं के देखते-देखते सत्येषु के भी प्राण हर लिये ।
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