महाभारत शल्य पर्व अध्याय 28 श्लोक 41-60

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अष्टाविंश (28) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 41-60 का हिन्दी अनुवाद

अपने ऊपर आती हुई उस शक्ति को सुवर्णभूषित बाणों द्वारा मारकर सहदेव ने समरांगण में हंसते हुए से सहसा उसके तीन टुकड़े कर डाले । तीन टुकड़ों में कटी हुई वह सुवर्णभूषित शक्ति आकाश से गिरने वाली चमकीली बिजली के समान पृथ्वी पर बिखर गयी । उस शक्ति को नष्ट हुई देख और सुबल पुत्र शकुनि को भी भय से पीड़ित‍जान आपके सभी सैनिक भयभीत हो शकुनि सहित वहां से भाग खड़े हुए । उस समय विजय से उल्लसित होने वाले पाण्डवों ने बड़े जोर से सिंहनाद किया। इससे आपके सभी सैनिक प्रायः युद्ध से विमुख हो गये । उन सबको युद्ध से उदासीन देख प्रतापी माद्रीकुमार सहदेव ने अनेक सहस्त्र बाणों की वर्षा करके उन्हें युद्धस्थल में ही रोक दिया । इसके बाद गान्धार देश के हृष्टपुष्ट घोड़ों और घुड़सवारों से सुरक्षित तथा विजय के लिये दृढ़ संकल्प होकर रणभूमि में जाते हुए सुबल पुत्र शकुनि पर सहदेव ने आक्रमण किया । नरेश्वर ! शकुनि को अपना अवशिष्ट भाग मानकर सहदेव ने सुवर्णमय अंगो वाले रथ के द्वारा उसका पीछा किया ।। उन्होंने एक विशाल धनुष पर बलपूर्वक प्रत्यन्चा चढ़ा कर शिला पर तेज किये हुए गीध के पंखों वाले बाणों द्वारा शकुनि पर आक्रमण किया और जैसे किसी विशाल गजराज को अंकुशों से मारा जाय, उसी प्रकार कुपित हो उसको गहरी चोट पहुंचायी । बुद्धिमान सहदेव ने उस पर आक्रमण करके कुछ याद दिलाते हुए से इस प्रकार कहा-ओ मूढ़ ! क्षत्रिय धर्म में स्थित होकर युद्ध कर और पुरुष बन। खोटी बुद्धि वाले शकुनि ! तू सभा में पासे फेंक कर जूआ खेलते समय जो उस दिन बहुत खुश हो रहा था, आज उस दुष्कर्म का महान फल प्राप्त कर ले । जिन दुरात्माओं ने पूर्वकाल में हम लोगों की हंसी उड़ायी थी, वे सब मारे गये। अब केवल कुलांगर दुर्योधन और उसका मामा तू-ये दो ही बच गये हैं। जैसे मथ डालने वाले डंडे से मारकर पेड़ से फल तोड़ लिया जाता है, उसी प्रकार आज मैं क्षुर के द्वारा तेरा मस्तक काटकर तुझे मौत के हवाले कर दूंगा। महाराज ! ऐसा कहकर रणक्षेत्र में सिंह के समान पराक्रम दिखाने वाले महाबली सहदेव ने अत्यन्त कुपित हो बड़े वेग से उस पर आक्रमण किया । योद्धाओें में श्रेष्ठ सहदेव अत्यन्त दुर्जय वीर हैं। उन्होंने क्रोध से जलते हुए से पास जाकर अपने धनुष को बलपूर्वक खींचा और दस बाणों से शकुनि को घायल करके चार बाणों से उसके घोड़ों को भी बींध डाला। तत्पश्चात उसके छत्र, ध्वज और धनुष को भी काट कर सिंह के समान गर्जना की । सहदेव ने शकुनि के ध्वज, छत्र और धनुष को काट देने के पश्चात् उसके सम्पूर्ण मर्मस्थानों में बाणों द्वारा गहरी चोट पहुंचायी ।। महाराज ! तत्पश्चात् प्रतापी सहदेव ने पुनः शकुनि पर दुर्जय बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी । इससे सुबल पुत्र शकुनि को बड़ा क्रोध हुआ। उसने उस संग्राम में माद्रीकुमार सहदेव को सुवर्णभूषित प्रास के द्वारा मार डालने की इच्छा से अकेले ही उन पर तीव्र गति से आक्रमण किया ।। माद्रीकुमार ने शकुनि के उस उठे हुए प्रास को और उसकी दोनों सुन्दर गोल-गोल भुजाओं को भी युद्ध के मुहाने पर तीन भल्लों द्वारा एक साथ ही काट डाला और युद्धस्थल में उच्च स्वर से वेगपूर्वक गर्जना की ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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