महाभारत शल्य पर्व अध्याय 52 श्लोक 19-29
द्विपन्चाशत्तम (52) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
उसे अपनी कान्ति से सब ओर प्रकाश फैलाती देख गालव कुमार बड़े प्रसन्न हुए और उसके साथ एक रात निवास किया। सबेरा होते ही वह मुनि से बोली- ‘तपस्वी मुनियों में श्रेष्ठ ब्रह्मर्षि ! आपने जो शर्त की थी, उसके अनुसार मैं आपके साथ रह चुकी। आपका मंगल हो, कल्याण हो। अब आज्ञा दीजिये, मैं जाती हूं’ । यों कहकर वह वहां से चल दी। जाते-जाते उसने फिर कहा-‘जो अपने चित्त को एकाग्र कर इस तीर्थ में स्नान और देवताओं का तर्पण करके एक रात निवास करेगा, उसे अटठावन वर्षो तक विधिपूर्वक ब्रह्मचर्य पालन करने का फल प्राप्त होगा’। ऐसा कहकर वह साध्वी तपस्विनी देह त्यागकर स्वर्ग लोक में चली गयी और मुनि उसके दिव्य रूप का चिन्तन करते हुए बहुत दुखी हो गये । उन्होंने शर्त के अनुसार उसकी तपस्या का आधा भाग बड़े कष्ट से स्वीकार किया। फिर वे भी अपने शरीर का परित्याग करके उसी के पथ पर चले गये। भरतश्रेष्ठ ! वे उसके रूप पर बलात् आकृष्ट होकर अत्यन्त दुखाी हो गये थे । यह मैंने तुमसे वृद्ध कन्या के महान् चरित्र, ब्रह्मचर्य पालन तथा स्वर्ग लोक की प्राप्ति रूप सद्रति का वर्णन किया । वहीं रहकर शत्रुओं को संताप देने वाले बलरामजी ने शल्य के मारे जाने का समाचार सुना था। वहां भी मधुवंशी बलराम ने ब्राह्मणों को अनेक प्रकार के दान दे समन्तपन्चक द्वार से निकलकर ऋषियों से कुरुक्षेत्र के सेवन का फल पूछा ।। प्रभो ! उस यदुसिंह के द्वारा कुरुक्षेत्र के फल के विषय में पूछे जाने पर वहां रहने वाले महात्माओं ने उन्हें सब कुछ यथावत रूप से बताया ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सारस्वतोपाख्यान विषयक बावनवां अध्याय पूरा हुआ ।
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