महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 8 श्लोक 38-57
अष्टम (8) अध्याय: सौप्तिक पर्व
राजेन्द्र ! इस प्रकार युधामन्यु का वध करके वीर अश्वत्थामा ने अन्य महारथियों पर भी वहां सोते समय ही आक्रमण किया। वे सब भय से कांपने और छटपटाने लगे। परंतु जैसे हिंसाप्रधान यज्ञ में वध के कलये नियुक्त हुआ पुरूष पशुओं को मार उालता है, उसी प्रकार उसने भी उन्हें मार डाला । तदन्तर तलवार से युद्ध करने मेुं कुशल अश्वत्थामा ने हाथ में खड़ग लेकर प्रत्येक भाग में विभिन्न मार्गों से विचरते हुए वहां बारी-बारी से अन्य वीरों का भी वध कर डाला । इसी प्रकार खेमे में मध्य श्रेणी के रक्षक सैनिक भी थककर सो रहे थे। उनके अस्त्र-शस्त्र अस्त-व्यस्त होकर पड़े थे। उन सबको उस अवस्था में देखकर अश्वत्थामा ने क्षणभर में मार डाला । उसने अपनी अच्छी तलवार से योद्धाओं, घोड़ों और हाथियों भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले। उसके सारे अंग खून से लथपथ हो रहे थे, वह कालप्रेरित यमराज के समान जान पड़ता था । मारे जाने वाले योद्धाओं का हाथ-पैर हिलाना, उन्हें मारने के लिये तलवार को उठाना तथा उसके द्वारा सब ओर प्रहार करना- इन तीन कारणों से द्रोणपुत्र अश्वत्थामा खून से नहा गया था । वह खून से रँग गया था । जूझते हुए उस वीर की तलवार चमक रही थी । उस समय उसका आकार मानवेतर प्राणी के समान अत्यन्त भयंकर प्रतीत होता था । कुरूनन्दन ! जो जाग रहे थे, वे भी उस कोलाहल से किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे। परस्पर देखे जाते हुए वे सभी सैनिक अश्वत्थामा को देख-देखकर व्यथित हो रहे थे । वे शत्रुसूदन क्षत्रिय अश्वत्थामा का वह रूप देख उसे राक्षस समझकर आंखें मूँद लेते थे । वह भयानक रूपधारी द्रोणकुमार सारे शिविर में काल के समान विचरने लगा। उसने द्रौपदी के पॉंचों पुत्रों और मरने से बचे हुए सोमकों को देखा । प्रजानाथ ! धृष्टधुम्न को मारा गया सुनकर द्रौपदी के पांचों महारथी पुत्र उस शब्द से भयभीत हो हाथ में धनुष लिये आगे बढे । उन्होंने निर्भय से होकर अश्वत्थामा पर बाण समूहों की वर्षा आरम्भ कर दी। तदनन्तर वह कोलाहल सुनकर वीर प्रभद्रकगण जाग उठे। शिखण्डी भी उनके साथ हो लिया। उन सबने द्रोणपुत्र को पीड़ा देना आरम्भ किया । उन महारथियों को बाणों की वर्षा करते देख अश्वत्थामा उन्हें मार डालने की इच्छा से जोर-जोर से गर्जना करने लगा । तदनन्तर पिता के वध का स्मरण करके वह अत्यन्त कुपित हो उठा और रथ की बैठक से उतरकर सहस्त्रों चन्दाकार चिह्नों से युक्त चमकीली ढाल और सुवर्णभूपित दिव्य एवं निर्मल खड़ग लेकर युद्ध में बडी उतावली के साथ उनकी ओर दौड़ा । उस बलवान वीर ने द्रौपदी के पुत्रों पर आक्रमण करके उन्हें खड़ग से छिन्न-भिन्न कर दिया। राजन ! उस समय पुरूष सिंह अश्वत्थामा ने उस महासमर में प्रतिबंध को उसकी कोख में तलवार भोंककर मार डाला । वह मरकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । तत्पश्चात प्रतापी सुतसोम ने द्रोण कुमार को पहले प्रास से घायल करके फिर तलवार उठाकर उस पर धावा किया । नरश्रेष्ठ ! तब अश्वत्थामा ने तलवार सहित सुतसोम की बॉंह काटकर पुन: उसकी पसली में आघात किया । इससे उसकी छाती फट गयी और वह धराधायी हो गया । इसके बाद नकुल के पराक्रमी पुत्र शतानीक ने अपनी दोनों भुजाओं से रथचक्र को उठाकर उसके द्वारा बड़े वेग से अश्वत्थामा की छाती पर प्रहार किया ।
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