"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 167 श्लोक 1-19": अवतरणों में अंतर

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१२:५०, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

सप्तषष्टयधिकशततम (167) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्षष्ट्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण के द्वारा सहदेव की पराजय, शल्य के द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय तथा अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन

संजय कहते हैं- प्रजानाथ! भरतनन्दन! द्रोणाचार्य को लक्ष्य करके आते हुए सहदेव को युद्धस्थल में वैकर्तन कर्ण ने रोका। सहदेव ने राधा पुत्र कर्ण को नौ बाणों से बींधकर झुकी हुई गाँठवाले दस बाणों द्वारा पुनः घायल कर दिया। कर्ण ने बदले में झुकी हुई गाँठवाले सौ बाण मारे और शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले वीर योद्धा की भाँति उसने उनके प्रत्यञ्चासहित धनुष को भी शीघ्र ही काट दिया। तदनन्तर प्रतापी माद्रीकुमार सहदेव ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर कर्ण को बीस बाणों से घायल कर दिया। वह अद्भुत सा कार्य हुआ। तब कर्ण ने झुकी हुई गाँठवाले बाणों से सहदेव के घोड़ों को मारकर एक भल्ल का प्रकार करके उनके सारथि को भी शीघ्र ही यमलोक पहुँचा दिया। रथहीन हो जाने पर सहदेव ने ढाल और तलवार हाथ में ले ली, परंतु कर्ण ने हँसते हुए से बाण मारकर उनकी उस तलवार के भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले। तब सहदेव ने अत्यन्त कुपित होकर एक सुवर्णजटित अत्यन्त भयंकर विशाल गदा सूर्यपुत्र कर्ण के रथ पर दे मारी। सहदेव के द्वारा चलायी हुई उस गदा को सहसा अपने ऊपर आती देख कर्ण ने बहुत से बाणों द्वारा उसे स्तम्भित कर दिया और पृथ्वी पर गिरा दिया। अपनी गदा को असफल होकर गिरी हुई देख सहदेव ने बड़ी उतावली के साथ कर्ण पर शक्ति चलायी, किन्तु उसने बाणों द्वारा उस शक्ति को भी काट डाला। महाराज! तब सहदेव अपने उस उत्तम रथ से शीघ्र ही वेगपूर्व कूद पड़े और युद्धस्थल में अधिरथ पुत्र कर्ण को सामने खड़ा देख रथ का एक चक्का लेकर उसके ऊपर चला दिया। उठे हुए कालचक्र के समान सहसा अपने ऊपर गिरते हुए उस रथचक्र को सूतनन्दन कर्ण ने कई हजार बाणों से काट गिराया। महामनस्वी सूतपुत्र कर्ण के द्वारा उस रथचक्र के नष्ट कर दिये जाने पर ईषादण्ड, जोते, नाना प्रकार के जूए, हाथी के कटे हुए अंग, मरे घोड़े और बहुत सी मृत मनुष्यों की लाशें कर्ण को लक्ष्य करके चलायीं, परंतु कर्ण ने अपने बाणों द्वारा उन सबकी धज्जियाँ उड़ा दी। तत्पश्चात् माद्रीकुमार सहदेव ने अपने आपको आयुधों से रहित समझकर कर्ण के बाणों से अवरुद्ध हो उस रणभूमि को त्याग दिया। भरतश्रेष्ठ! प्रजानाथ! मदनन्तर राधा पुत्र कर्ण ने दो घड़ी तक सहदेव का पीछा करके उनसे हँसते हुए इस प्रकार कहा-। 'ओ अधीर बालक! दू युद्धस्थल में विशिष्ट रथियों के साथ संग्राम न करना। माद्रीकुमार! अपने समान योद्धाओं के साथ युद्ध किया कर। मेरी इस बात पर संदेह न करना'।। तदनन्तर धनुष की नोक से उन्हें पीड़ा देते हुए कर्ण ने पुनः इस प्रकार कहा-'माद्री पुत्र! ये अर्जुन कौरवों के साथ रणभूमि में शीघ्रतापूर्वक युद्ध कर रहे हैं। तू उन्हीं के पास चला जा अथवा तेरा मन हो तो घर को लौट जा'। सहदेव से ऐसा कहकर रथियों मे श्रेष्ठ कर्ण पाञ्चालों और पाण्डवों की सेनाओं को द्ग्ध करता हुआ सा रथके द्वारा उनकी ओर वेगपूर्वक चल दिया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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