"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 65-77" के अवतरणों में अंतर

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== सत्रहवां अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)==
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==सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: सत्रहवां अध्याय: श्लोक 96-119 का हिन्दी अनुवाद </div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 65-77 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
544 लोकपालः- चतुर्दश भुवनोंका पालन करनेवाले, 545 अलोकः- लोकातीत, 546महात्मा-, 547 सर्वपूजितः- सबके द्वारा पूजित, 548शुक्लः- शुद्धस्वरूप, 549 त्रिशुक्लः- मन,वाणी और शरीर ये तीनों, 550 सम्पन्नः- सम्‍पूर्ण सम्पदाओंसे युक्त, 551शुचिः-परम पवित्र, 552 भूतनिशेवितः- समस्त प्राणियोंद्वारा सेवित। 553 आश्रमस्थः- चारों आश्रमोंमें धर्मस्वरूपसे स्थित रहनेवाले, 554 क्रियावस्थः-यज्ञादि क्रियाओंमें संलग्न, 555 विश्वकर्ममतिः-संसारकी रचनारूप कर्ममें कुशल, 556 वरः- सर्वश्रेष्ठ, 557 विशालशाखः-लंबी भुजाओंवाले, 558 ताम्रोष्ठः- लाल-लाल आठवाले, 559 अम्बुजालः-जलसमूह-सागररूप, 560 सुनिष्चलः- सर्वथा निश्चलरूप। 561 कपिलः- कपिल वर्ण, 562 कपिषः- पीले वर्णवाले, 563शुक्लः-श्वेत वर्णवाले, 564 आयुः-जीवनरूप, 565 परः-प्राचीन, 566 अपनः-अर्वाचीन, 567 गन्धर्वः-चित्ररथ आदि गन्धर्वरूप, 568 अदितिः- देवमाता अदितिस्वरूप, 569 ताक्ष्यं- विनतानन्दन गरूडरूप, 570 सुविज्ञेयः- सुगमतापूर्वक जानने योग्य, 571 सुषारदः-उत्‍तम वाणी बोलनेवाले। 572 परश्वधायुधः-फरसेका आयुधके रूपमें उपयोग करनेवाले परशुरामरूप, 573 देवः-महादेवस्वरूप, 574 अनुकारी-भक्तोंका अनुकरण करनेवाले, 575 सुबान्धवः- उत्‍तम बान्धवरूप, 576 तुम्बवीणः7 तूंबीकी वीणा बजानेवाले, 577 महाक्रोधः- प्रलयकालमें महान् क्रोध प्रकट करनेवाले, 578 उध्र्वरेताः-अस्खलितवीर्य, 579 जलेशयः- विष्णुरूपसे जलमें शयन करनेवाले। 580 उग्रः- प्रलयकालमें भयंकर रूप धारण करनेवाले, 581 वंशकरः-वंशप्रवर्तक, 582 वंश- वंशस्वरूप, 583 वंशनादः- श्रीकृष्णरूपसे वंशी बजानेवाले, 584 अनिन्दितः- निन्दारहित, 585 सर्वांगरूपः- सर्वांग पूर्णस्वरूपवाले, 586 मायावीः-, 587 सुहदः- हेतुरहित दयालु, 588 अनिलः- वायुस्वरूप,589 अनलः- अग्निस्वरूप। 590 बन्धनः- स्नेहबन्धनमें बांधनेवाले, 591 बन्धकर्ता- बन्धनरूप संसारके निर्माता, 592 सुबन्धनविमोचनः- मायाके सुदृढ़ बन्धनसे छुड़ानेवाले, 593 सयज्ञारिः- दक्षयज्ञ-शत्रुओंके साथी, 594 सकामारिः- कामविजयी योगियोंके साथी, 595 महादंष्टः- बड़ी-बड़ी दाढ़वाले नरसिंहरूप, 596 महायुधः-विशाल आयुधधारी। 597 बहुधा निन्दितः-दक्ष और उनके समर्थकोंद्वारा अनेक प्रकारसे निन्दित, 598 सर्वः-प्रलयकालमें सबका संहार करनेवाले, 599शकरः-कल्याणकारी, 600शकरः- भक्तोंको आनन्द देनेवाले, 601 अधनः-सांसारिक धनसे रहित, 602 अमरेषः-देवताओंके भी ईश्वर, 603 महादेवः- देवताओंके भी पूजनीय, 604 विश्वदेवः-सम्पूर्ण विश्वके आराध्यदेव, 605 सुरारिहाः- देवशत्रुओं वध करनेवाले। 606 अहिर्बुध्न्यः- शेषनागस्वरूप, 607 अनिलाभः-वायुके समान वेगवान्, 608 चेकितानः- अतिशय ज्ञानसम्पन्न, 609 हविः- हविष्यरूप, 610 अजैकपाद्-ग्यारह रूद्रोंमेंसे एक, 611 कापाल-दो कपालोंसे निर्मित कपालरूप अखिल के अधीश्वर, 612 त्रिशकुः-त्रिशकुरूप, 613 अजितः-किसीके द्वारा पराजित न होनेवाले, 614शिवः-कल्याणस्वरूप। 615 धन्वन्तरिः-महावैद्य धन्वन्तरिरूप, 616 धूमकेतुः-अग्निस्वरूप, 617 स्कन्दः-स्वामी कार्तिकेयस्वरूप, 618 वैश्रवणः- कुबेरस्वरूप, 619 धाता-सबको धारण करनेवाले, 620शक्रः-इन्द्रस्वरूप, 621 विष्णुः-सर्वव्यापी नारायणदेव, 622 मित्रः-बारह आदित्योंमेंसे एक, 623 त्वष्टा-प्रजापति विश्वकर्मा, 624 ध्रुवः-नित्यस्वरूप, 625 धरः-आठ वसुओंमेंसे एक वसु धरस्वरूप। 626 प्रभावः-उत्कृष्टभावसे सम्पन्न, 627 सर्वगो वायुः-सर्वव्यापी वायु-सूत्रात्मा, 628 अर्यमा-बारह आदित्योंमें एक आदित्य अर्यमारूप, 629 सविता-सम्पूर्ण जगत कि उत्पति करनेवाले, 630 रविः-सूर्य, 631 उषंगुः-सर्वदाहक किरणोंवाले सूर्यरूप, 632 विधाता-प्रजाका विशेषरूपसे धारण-पोषण करनेवाले, 633 मान्धाता-जीवको तृप्ति प्रदान करनेवाले, 634 भूतभावनः-समस्त प्राणियोंके उत्पादक। 635 विभुः-विविधरूपसे विद्यमान, 636 वर्णविभावी-श्वेत-पीत आदि वर्णोको विविधरूपसे व्यक्त करनेवाले, 637 सर्वकाम-गुणावहः-समस्त भोगों और गुणोंकी प्राप्ति करानेवाले 638 पद्यनाभः-अपनी भाभिसे कमलको प्रकट करनेवाले विष्णुरूप, 639 महागर्भः-विशाल ब्रहाण्डको उदरमे धारण करनेवाले, 640 चन्द्रवक्त्रः-चन्द्रमा-जैसे मनोहर मुखवाले, 641 अनिलः-वायुदेव, 642 अनलः-अग्निदेव। 643 बलवान्-शक्तिशाली, 644 उपशान्तः-शान्तस्वरूप, 645 पुराणः-पुराणस्वरूप, 646 पुण्यचंचुः-पुण्यके द्वारा जाननेमें आनेवाले, 647 ई-दयास्वरूप, 648 कुरूकर्ता- कुरूक्षेत्रके निर्माता, 649कुरूवासी-कुरूक्षेत्रनिवासी, 650 कुरूभूतः-कुरूक्षेत्रस्वरूप, 651 गुणौषधः-गुणोंको उत्पन्न करनेवाली ओषधिके समान ज्ञान, वैराग्य आदि गुणोंके उत्पादक। 652 सर्वाशयः-सबके आश्रय, 653 दर्भचारी-वेदीपर बिछे हुए-कुषोंपर रखे हुए हविष्यको भक्षण करनेवाले, 654 सर्वेषो प्राणिनां पतिः- समस्त प्राणियोंके स्वामी, 655 देवदेवः-देवताओंके भी देवता, 656 सुखासक्तः-अपने परमानन्दमय स्वरूपमें ही रत रहनेवाले, 657 सत्-सत्स्वरूप, 658 असत्-असत्स्वरूप, 659 सर्वरत्नवित्-सम्पूर्ण रत्नोंके ज्ञाता। 660 कैलासगिरिवासी-कैलास पर्वतपर निवास करनेवाले, 661 हिमवद्गिरिसंश्रयः-हिमालयपर्वतके निवासी, 662 कूलहारी-प्रबल प्रवाहरूपसे नदियोंके तटोंका अपहरण करनेवाले, 663 कूलकर्ता-पुष्कर आदि बड़े-बड़े सरोवरोंका निर्माण करनेवाले, 664 बहुविद्यः- बहुत-सी विद्याओंके ज्ञाता, 665 बहुप्रदः-बहुत अधिक देनेवाले। 666 वणिजो-वैषयरूप, 667 वर्धकी-संसाररूपी वृक्षको काटनेवाले बढ़ई, 668 वृक्षः-संसाररूप वृक्षस्वरूप, 669 बकुलः-मौलकिसरी वृक्षस्वरूप, 670 चन्दनः-चन्दन वृक्षस्वरूप, 671 छदः-छितवन वृक्षस्वरूप, 672 सारग्रीवः-सुदृढ़ कण्ठवाले, 673 महाजत्रुः-बहुत बड़ी हंसुलवाले, 674 अलोलः-अचंचल, 675 महौषधः-महान् औषधस्वरूप। 676 सिद्धार्थकारी-आश्रितजनोंको सफलमनोरथ करनेवाले, 677 सिद्धार्थः-वेदकी व्याख्यासे निर्णीत उत्कृष्ट सिद्धान्तस्वरूप, 678 सिंहनादः-सिंहके समान गर्जना करनेवाले, 679 सिंहदंटः-सिंहके समान दाड़वाले, 680 सिंहगः-सिंहपर आरूढ़ होकर चलनेवाले, 681 सिंहवाहनः-सिंहपर सवारी करनेवाले। 682 प्रभावात्मा-उत्कृष्ट सतास्वरूप, 683 जगत्कालस्थालः-प्रलयकालमें जगत्का संहार करनेवाले कालके स्थान, 684 लोकहितः-लोकहितैषी, 685 तरूः-तारनेवाले, 686 सारंगः-चातकस्वरूप, 687 नवचक्रांगः-नूतन हंसरूप, 688 केतुमाल-ध्वजा-पताकाओंकी मालाओंसे अलंकृत, 689 सभावनः-धर्मस्थानकी रक्षा करनेवाले।। 690 भूतालयः-सम्पूर्ण भूतोंके घर, 691 भूतपतिः-सम्पूर्ण प्राणियोंके स्वामी, 692 अहोरात्रम्-दिन-रात्रिस्वरूप, 693 अनिन्दितः-निन्दारहित। 694 सर्वभूतानां वाहिता-सम्पूर्ण भूतोंका भार वाहन करनेवाले, 695 सर्वभूतानां निलयं-समस्त प्राणियोंके निवासस्थान, 696 विभुः-सर्वव्यापी, 697 भवः-सतारूप, 698 अमोघः-कभी असफल न होनेवाले, 699 संयतः-संयमशील, 700 अश्व-उच्चैःश्रवा आदि उत्‍तम अश्वरूप, 701 भोजनः-अन्नदाता, 702 प्राणधारणः-सबके प्राणोंकी रक्षा करनेवाले। 703 धृतिमान्-धैर्यशाली, 704 मतिमान्-बुद्धिमान्, 705 दक्षः-चतुर, 706 सत्कृतः-सबके द्वारा सम्मानित, 707 युगाधिपः-युगके स्वामी, 708 गोपालिः-इन्द्रियोंके पालक, 709 गोपतिः-गौओंके स्वामी, 710 ग्रामः-समूहरूप, 711 गोचर्मवसनः-गोचर्ममय वस्त्र धारण करनेवाले, 712 हरिः-भक्तोंका दुःख हर लेनेवाले। 713 हिरण्यबाहुः-सुनहरी कान्तिवाली सुन्दर भुजाओंसे सुशोभित, 714 गुहापालः प्रवेशिनाम्-गुफाके भीतर प्रवेष करनेवाले योगियोंकी गुफाके रक्षक, 715 प्रकृष्टारिः-काम,क्रोध आदि शत्रुओंको क्षीण कर देनेवाले, 716 महाहर्षः-परमानन्दस्वरूप, 717 जितकामः-कामविजयी, 718 जितेन्द्रियः-इन्द्रियविजयी। 719 गान्धारः-गान्धार नामक स्वरूप, 720 सुवासः-कैलास नामक सुन्दर स्थानमें वास करनेवाले, 721 तपःसक्तः- तपस्यामें संलग्न 722 रतिः-प्रीतिरूप, 723 नरः-विराट् पुरूष, 724 महागीतः-जिनके माहात्मयका वेद-शास्त्रोद्वारा गान किया गया है ऐसे महान् देव, 725 महानृत्यः-प्रकाण्ड़ ताण्ड़व करनेवाले, 726 अप्सरोगणसेवितः-अप्सराओंके समुदायसे सेवित। 727 महाकेतुः-धर्मरूप महान् ध्वजावाले, 728 महाधातुः-सुवर्णस्वरूप, 729 नैकसानुचरः-मेरूगिरिके अनेक शिखरोंपर विचरण करनेवाले, 730 चलः-किसीकी पकड़में नहीं आनेवाले, 731 आवेदनीयः-प्रार्थना करनेयोग्य, 732 आदेश-आज्ञा प्रदान करनेवाले, 733 सर्वगन्धसुखावहः-सम्पूर्ण गन्धादि विषयोके सुखकी प्राप्ति करानेवाले। 734 तोरणः-मुक्तिद्वारस्वरूप, 735 तारणः-तारनेवाले, 736 वातः-वायुरूप, 737 परिधिः-ब्रहाण्डका घेरारूप, 738 पतिखेचरः-आकाशचारीकी स्वामी, 739 वर्धनःसंयोगः- वृद्धिका हेतुभूत स्त्री-पुरूषका संयोग, 740 वृद्धः-गुणोंमें बढ़ा-चढ़ा, 741 अतिवृद्धः-सबसे पुरातन होनेके कारण अतिवृद्ध, 742 गुणाधिकः-ज्ञान-ऐश्वर्य आदि गुणोंके द्वारा सबसे अधिकतर।
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286 लोहिताक्षः- रक्तनेत्र, 287 महाक्षः- बड़े नेत्रवाले, 288 विजयाक्षः- विजयशील रथवाले, 289 विषारदः- विद्वान्, 290 संग्रहः- संग्रह करनेवाले, 291 निग्रहः- उदण्डोको दण्ड देनेवाले, 292 कर्ता-सबके उत्पादक, 293 सर्पचीन-निवासनः- सर्पमय चीर धारण करनेवाले। 294 मुख्यः- सर्वश्रेष्ठ, 295 अमुख्यः- जिससे बढ़कर मुख्य दूसरा कोई न हो वह, 296 देहः- देहस्वरूप, 297 सर्वकामदः- सम्पूर्ण कामनाओंके दाता, 299 सर्वकालप्रसादः- सम्पन्न, 300 सुबलः- उत्त7म बलसे सम्पन्न, 301 बलरूपधृक्- बल और रूपके आधार, 302 सर्वकामवरः- 303 सर्वदः- सब कुछ देनेवाले, 304 र्वतोमुखः- सब और मुखवाले, 305 आकाशनिर्विरूपः- आकाशकी भांति जिनसे नाना प्रकारके रूप प्रकट होते है वे, 306 निपाती- पापियोंको नरकमें गिरानेवाले, 307 अवश- जिनके उपर किसी का वश नहीं चलता वे, 308 खगः- आकाशगामी। 309 रौद्ररूपः- भयंकर रूपधारी, 310 अंशु- किरणस्वरूप, 311 आदित्यः- अदितिपुत्र, 312 बहुरश्मि- असंख्य किरणोवाले, सूर्यरूप, 313 सुवर्चसी-उत्त म तेजसे सम्पन्न, 314 वसुवेगः- वायुके समान वेगवाले, 315 महावेगः- वायुसे भी अधिक वेगशाली, 316 मनोवगेः- मनके समान वेगवाले, 317 निशाचरः- रात्रिमें विचरनेवाले। 318 सर्ववासी- सम्पूीर्ण प्राणियोंमें आत्मारूपसे निवास करनेवाले, 319 श्रियावासी- लक्ष्मीके साथ निवास करनेवाले विष्णुरूप, 320 उपदेशकरः- जिज्ञासुओंको तत्वका और काशीमें मरे हुए जीवोंको तारकमन्त्रका उपदेश करनेवाले, 321 अकरः- कर्तृत्वके अभिमानसे रहित, 322 मुनिः- मननशील, 323 आत्मनिरालोकः- देह आदिकी उपाधिसे अलग होकर आलोचना करनेवाले, 324 सम्भग्नः- सम्यक् रूपसे सेवित, 325 सम्भग्नः- हजारोंका दान करनेवाले। 326 पक्षी- गरूड़रूपधारी, 327 पक्षरूपः- शुक्लपक्षस्वरूप, 328 अतिदीप्तः- अत्यन्त तेजस्वी, 329 विषाम्पतिः- प्रजाओंके स्वामी, 330 उन्मादः- प्रेममें उन्मत, 331 मदनः- कामदेवरूप, 332 कामः- कमनीय विषय, 333 अश्वत्थः- संसार-वृक्षरूप, 334 अर्थकरः- धनआदि देनेवाले, 335 यश- श्यषस्वरूप। 336 वामदेवः- वामदेव ऋषिस्वरूप, 337 वामः- पापियोंके प्रतिकूल, 338 प्राक्-सबके आदि, 339 दक्षिणः- कुशल, 340 वामनः- बलिको बांधनेवाले वामन रूपधारी, 341 सिद्धयोगी- सनत्कुमार आदि सिद्ध महात्मा, 342 महषिः- वसिष्ठ आदि, 343 सिद्धार्थः- आप्तकाम, 344 सिद्धसाधकः- सिद्ध और साधकरूप।345 भिक्षुः- संन्यासी, 346 भिक्षुरूपः- श्रीराम-कृष्ण आदिकी बालछविका दर्शन करनेके लिये भिक्षुरूप धारण करनेवाले, 347 विपणः- व्यवहारसे अतीत, 348 मृदुः- कोमल स्वभाववाले, 349 अव्ययः- अविनाशी, 350 महासेनः- देवसेनापति कार्तिकेयरूप, 351 विशाखः- कार्तिकेयके सहायक, 352शष्टिभागः- प्रभव आदि आठ भागों में विभक्त संवत्सररूप, 353 गवाम्पतिः- इन्द्रियोके स्वामी। 354 वज्रहस्तः- हाथमें वज्र धारण करनेवाले इन्द्ररूप, 355 विश्कम्भी-विस्तारयुक्त, 356 चमूस्तम्भनः- दैत्यसेनाको स्तब्ध करनेवाले, 357 वृतावृतकरः- युद्धमें रथके द्वारा मण्ड़ल बनाना वृत कहलाता है और शत्रुसेनाको विदीर्ण करके अक्षत शरीरसे लौट आना आवृत कहलाता है। इन दोनोंको कुशलतापूर्वक करनेवाले, 358 तालः- संसारसागरके तल प्रदेश-आधार-स्थान अर्थात् शुद्ध जाननेवाले, 359 मधुः- वसन्त ऋतुरूप, 360 मधुकलोचनः- मधुके समान पिंगल नेत्रवाले। 361 वाचस्पत्यः- पुरोहितका काम करनेवाले, 362 वाजसनः- शुक्ल यजुर्वेदकी माध्यन्दिनी शाखाके प्रवर्तक, 363 नित्यमाश्रमपूजितः- सदा आज्ञमोंद्वारा पूजित होनेवाले, 364 लोकचारी- सम्पूर्ण लोकोंमें विचरनेवाले, 365 सम्पूर्ण लोक का स्वामी, 366 सर्वचारी-सर्वत्र गमन करनेवाले, 367 विचारवित्- विचारोंके ज्ञाता। 368 ईशानः- नियन्ता, 369 ईश्वरः- सबके शासक, 370 कालः- कालस्वरूप, 371 निशाचारी- प्रलयकालकी रातमें विचननेवाले, 372 पिनाकवान्- पिनाक नामक धनुष धारण करनेवाले, 373 निमितस्थः- अन्तर्यामी, 374 निमितम्-निमित कारणरूप, 375 नन्दिः- ज्ञानसम्पतिरूप, 376 नन्दिकरः- ज्ञानरूपीसम्पति देनेवाले, 377 हरिः- विष्णुस्वरूप। 378 नन्दीश्वरः- नन्दी नामक पार्षदके स्वामी, 379 नन्दी- नन्दी नामक गणरूप, 380 नन्दनः- परम आनन्द प्रदान करनेवाले, 381 नन्दिवर्द्धनः- समृद्धि बढ़ानेवाले, 382 भगहारी- ऐश्वर्यका अपहरण करनेवाले, 383 निहन्ता- मृत्युरूपसे सबको मारनेवाले, 384 कालः- चौसठ कलाओंके निवासस्थल, 385 ब्रहा- लोकस्त्रष्ठा ब्रहा, 386 पितामहः- प्रजापतिके भी पिता। 387 चतुर्मुखः- चार मुखवाले, 388 महालिंगः- महालिंगस्वरूप, 389 चारूलिंगः- रमणीय वेशधारी, 390 लिंगाध्यक्षः- प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंके अध्यक्ष, 391 सुराध्यक्षः- देवताओंके अधिपति, 392 योगाध्यक्षः- योगके अध्यक्ष, 393 युगावहः- चारों युगोंके निर्वाहक।
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{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 52-64|अगला=महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 78-91}}
  
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 17 श्लोक 75-95|अगला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 17 श्लोक 120-143}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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१०:१६, २३ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 65-77 का हिन्दी अनुवाद

286 लोहिताक्षः- रक्तनेत्र, 287 महाक्षः- बड़े नेत्रवाले, 288 विजयाक्षः- विजयशील रथवाले, 289 विषारदः- विद्वान्, 290 संग्रहः- संग्रह करनेवाले, 291 निग्रहः- उदण्डोको दण्ड देनेवाले, 292 कर्ता-सबके उत्पादक, 293 सर्पचीन-निवासनः- सर्पमय चीर धारण करनेवाले। 294 मुख्यः- सर्वश्रेष्ठ, 295 अमुख्यः- जिससे बढ़कर मुख्य दूसरा कोई न हो वह, 296 देहः- देहस्वरूप, 297 सर्वकामदः- सम्पूर्ण कामनाओंके दाता, 299 सर्वकालप्रसादः- सम्पन्न, 300 सुबलः- उत्त7म बलसे सम्पन्न, 301 बलरूपधृक्- बल और रूपके आधार, 302 सर्वकामवरः- 303 सर्वदः- सब कुछ देनेवाले, 304 र्वतोमुखः- सब और मुखवाले, 305 आकाशनिर्विरूपः- आकाशकी भांति जिनसे नाना प्रकारके रूप प्रकट होते है वे, 306 निपाती- पापियोंको नरकमें गिरानेवाले, 307 अवश- जिनके उपर किसी का वश नहीं चलता वे, 308 खगः- आकाशगामी। 309 रौद्ररूपः- भयंकर रूपधारी, 310 अंशु- किरणस्वरूप, 311 आदित्यः- अदितिपुत्र, 312 बहुरश्मि- असंख्य किरणोवाले, सूर्यरूप, 313 सुवर्चसी-उत्त म तेजसे सम्पन्न, 314 वसुवेगः- वायुके समान वेगवाले, 315 महावेगः- वायुसे भी अधिक वेगशाली, 316 मनोवगेः- मनके समान वेगवाले, 317 निशाचरः- रात्रिमें विचरनेवाले। 318 सर्ववासी- सम्पूीर्ण प्राणियोंमें आत्मारूपसे निवास करनेवाले, 319 श्रियावासी- लक्ष्मीके साथ निवास करनेवाले विष्णुरूप, 320 उपदेशकरः- जिज्ञासुओंको तत्वका और काशीमें मरे हुए जीवोंको तारकमन्त्रका उपदेश करनेवाले, 321 अकरः- कर्तृत्वके अभिमानसे रहित, 322 मुनिः- मननशील, 323 आत्मनिरालोकः- देह आदिकी उपाधिसे अलग होकर आलोचना करनेवाले, 324 सम्भग्नः- सम्यक् रूपसे सेवित, 325 सम्भग्नः- हजारोंका दान करनेवाले। 326 पक्षी- गरूड़रूपधारी, 327 पक्षरूपः- शुक्लपक्षस्वरूप, 328 अतिदीप्तः- अत्यन्त तेजस्वी, 329 विषाम्पतिः- प्रजाओंके स्वामी, 330 उन्मादः- प्रेममें उन्मत, 331 मदनः- कामदेवरूप, 332 कामः- कमनीय विषय, 333 अश्वत्थः- संसार-वृक्षरूप, 334 अर्थकरः- धनआदि देनेवाले, 335 यश- श्यषस्वरूप। 336 वामदेवः- वामदेव ऋषिस्वरूप, 337 वामः- पापियोंके प्रतिकूल, 338 प्राक्-सबके आदि, 339 दक्षिणः- कुशल, 340 वामनः- बलिको बांधनेवाले वामन रूपधारी, 341 सिद्धयोगी- सनत्कुमार आदि सिद्ध महात्मा, 342 महषिः- वसिष्ठ आदि, 343 सिद्धार्थः- आप्तकाम, 344 सिद्धसाधकः- सिद्ध और साधकरूप।345 भिक्षुः- संन्यासी, 346 भिक्षुरूपः- श्रीराम-कृष्ण आदिकी बालछविका दर्शन करनेके लिये भिक्षुरूप धारण करनेवाले, 347 विपणः- व्यवहारसे अतीत, 348 मृदुः- कोमल स्वभाववाले, 349 अव्ययः- अविनाशी, 350 महासेनः- देवसेनापति कार्तिकेयरूप, 351 विशाखः- कार्तिकेयके सहायक, 352शष्टिभागः- प्रभव आदि आठ भागों में विभक्त संवत्सररूप, 353 गवाम्पतिः- इन्द्रियोके स्वामी। 354 वज्रहस्तः- हाथमें वज्र धारण करनेवाले इन्द्ररूप, 355 विश्कम्भी-विस्तारयुक्त, 356 चमूस्तम्भनः- दैत्यसेनाको स्तब्ध करनेवाले, 357 वृतावृतकरः- युद्धमें रथके द्वारा मण्ड़ल बनाना वृत कहलाता है और शत्रुसेनाको विदीर्ण करके अक्षत शरीरसे लौट आना आवृत कहलाता है। इन दोनोंको कुशलतापूर्वक करनेवाले, 358 तालः- संसारसागरके तल प्रदेश-आधार-स्थान अर्थात् शुद्ध जाननेवाले, 359 मधुः- वसन्त ऋतुरूप, 360 मधुकलोचनः- मधुके समान पिंगल नेत्रवाले। 361 वाचस्पत्यः- पुरोहितका काम करनेवाले, 362 वाजसनः- शुक्ल यजुर्वेदकी माध्यन्दिनी शाखाके प्रवर्तक, 363 नित्यमाश्रमपूजितः- सदा आज्ञमोंद्वारा पूजित होनेवाले, 364 लोकचारी- सम्पूर्ण लोकोंमें विचरनेवाले, 365 सम्पूर्ण लोक का स्वामी, 366 सर्वचारी-सर्वत्र गमन करनेवाले, 367 विचारवित्- विचारोंके ज्ञाता। 368 ईशानः- नियन्ता, 369 ईश्वरः- सबके शासक, 370 कालः- कालस्वरूप, 371 निशाचारी- प्रलयकालकी रातमें विचननेवाले, 372 पिनाकवान्- पिनाक नामक धनुष धारण करनेवाले, 373 निमितस्थः- अन्तर्यामी, 374 निमितम्-निमित कारणरूप, 375 नन्दिः- ज्ञानसम्पतिरूप, 376 नन्दिकरः- ज्ञानरूपीसम्पति देनेवाले, 377 हरिः- विष्णुस्वरूप। 378 नन्दीश्वरः- नन्दी नामक पार्षदके स्वामी, 379 नन्दी- नन्दी नामक गणरूप, 380 नन्दनः- परम आनन्द प्रदान करनेवाले, 381 नन्दिवर्द्धनः- समृद्धि बढ़ानेवाले, 382 भगहारी- ऐश्वर्यका अपहरण करनेवाले, 383 निहन्ता- मृत्युरूपसे सबको मारनेवाले, 384 कालः- चौसठ कलाओंके निवासस्थल, 385 ब्रहा- लोकस्त्रष्ठा ब्रहा, 386 पितामहः- प्रजापतिके भी पिता। 387 चतुर्मुखः- चार मुखवाले, 388 महालिंगः- महालिंगस्वरूप, 389 चारूलिंगः- रमणीय वेशधारी, 390 लिंगाध्यक्षः- प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंके अध्यक्ष, 391 सुराध्यक्षः- देवताओंके अधिपति, 392 योगाध्यक्षः- योगके अध्यक्ष, 393 युगावहः- चारों युगोंके निर्वाहक।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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