"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 78-91" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
पंक्ति १: पंक्ति १:
== सत्रहवां अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)==
+
==सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: सत्रहवां अध्याय: श्लोक 120-143 का हिन्दी अनुवाद </div>
+
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 78-91 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
743 नित्य आत्मसहायः-आत्माकी सदा सहायता करनेवाले, 744 देवासुरपतिः-देवताओं, और असुरोंके स्वामी, 745 पतिः-सबके स्वामी, 746 युक्तः-भक्तोंके उद्धारके लिये सदा उद्यत रहनेवाले, 747 युक्तबाहुः-सबकी रक्षाके लिये उपयुक्त भुजाओंवाले, 748 देवो दिविसुपर्वणः-स्वर्गमें जो महान् देवता इन्द्र हैं, उनके भी आराध्यदेव।। 749 आषाढ़ः-भक्तोंको सब कुछ सहन करनेकी शक्ति देनेवाले, 750 सुषाढः-उतम सहनशील, 751 ध्रुवः-अविचलस्वरूप, 752 हरिणः-शुद्धस्वरूप, 753 हरः-पापहारी, 754 आवर्तमानेभ्यो वपुः-स्वर्गलोकसे लौटनेवाले नूतन शरीर देनेवाले, 755 वसुश्रेष्ठः-श्रेष्ठ धनस्वरूप अर्थात् मुक्तिस्वरूप, 756 महापथः-सर्वोतम मार्गस्वरूप। 757 विमर्षः शिरोहारी-विवेकपूर्वक दुष्टोंका शिरष्छेद करनेवाले, 758 सर्वलक्षणलक्षितः-समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न, 759 अक्षः रथयोगी-रथसे सम्बन्ध रखनेवाला धुरीस्वरूप, 760 सर्वयोगी-सभी समयमें योगयुक्त, 761 महाबलः-अनन्त शक्तिसे सम्पन्न।।122।। 762 समाम्नायः-वेदस्वरूप, 763 असमाम्नायः-वेदभिन्न, स्मृति, इतिहास, पुराण और आगमरूप, 764 तीर्थदेवः-सम्पूर्ण तीर्थों के देवस्वरूप, 765 महारथः-त्रिपुरदाह के समय पृथ्वीरूपी विशाल रथ पर आरूढ़ होने वाले, 766 निर्जीवः-जड-प्रपंचस्वरूप, 767 जीवनः-जीवनदाता, 768 मन्त्रः-प्रणव आदि मन्त्रस्वरूप, 769शुभाक्षः-मंगलमयी दृष्टिवाले, 770 बहुकर्कषः-संहारकालमें अत्यन्त कठोर स्वभाववाले। 771 रत्नप्रभूतः-अनेक रत्नों के भण्डाररूप, 772 रत्नांगः-रत्नमय अंगवाले, 773 महार्णव-निपानवित्-महासागररूपी निपानों हौजों-को जाननेवाले, 774 मूलम्-संसाररूपी वृक्ष के कारण, 775 विशालः-अत्यन्त शोभायमान, 776अमृतः-अमृतस्व्रूप, 777 व्यक्ताव्यक्तः-साकार-निराकार स्वरूप, 778 तपोनिधिः-तपस्या के भण्डार। 779 आरोहणः-परम पदपर आरूढ़ होने के द्वारस्वरूप, 780 अधिरोहः-परम पदपर आरूढ़, 781शीलधारी-सुशीलसम्पन्न, 782 महायशा-महान् श्यषसे सम्पन्न, 783 सेनाकल्पः-सेना के आभूषणरूप, 784 महाकल्पः-बहुमूल्य अलंकारों से अलंकृत, 785 योगः-चितवृतियों के निरोधस्वरूप, 786 युगकरः-युगप्रवर्तक, 787 हरिः-भक्तों का दुःख हर लेनेवाले। 788 युगरूपः-युगस्वरूप, 789 महारूपः-महानपवाले, 790 महानागहनः-विशालकाय गजासुर का वध करनेवाले, 791 अवधः- मृत्युरहित, 792 न्यायनिर्वपणः-न्यायोचित दान करनेवाले, 793 पादः-शरण लेनेयोग्य पद्यते भक्तैः इति पादः, 794 पण्डितः-ज्ञानी, 795 अचलोपमः-पर्वत के समान अवचिल। 796 बहुमालः-बहुत-सी मालाएं धारण करनेवाले, 797 महामालः-महती-पैरोंतक लटकने-वाली माला धारण करनेवाले, 798शशी हरसुलोचनः-चन्द्रमा के समान सौम्य दृष्टियुक्त महादवे, 799 विस्तारो लवणः कूपः-विस्तृत क्षारसमुद्रस्वरूप, 800 त्रियुगः-सत्ययुग, त्रेता और द्वापर त्रिविध युगस्वरूप, 801 सफलोलदयः-जिसका अवताररूपमें प्रकट होना सफल हैं। 802 त्रिलोचनः-त्रिनेत्रधारी, 803 विषण्णंगः-अंगरहित अर्थात् सर्वथा निराकार, 804 मणिविद्धः-मणिका कुण्डल पहनने के लिये, छिदे हुए कर्णवाले, 805 जटाधरः-जटाधारी, 806 बिन्दुः-अनुस्वाररूप, 807 विसर्गः-विसर्जनीयस्वरूप, 808 सुमुखः-सुन्दर मुखवाले, 809 ष्षरः-अनुस्वाररूप, 810 सर्वायुधः-सम्पूर्ण आयुधों से युक्त, 811 सहः-सहनशील। 812 निवेदनः-सब प्रकार की वृति से रहित ज्ञान वाले, 813 सुखाजातः-सब वृतियों का लय होने पर सुखरूपसे प्रकट होने वाले, 814 सुगन्धारः- उतम गन्धसे युक्त, 815 महाधनुः-पिनाक नामक विषाल धनुष धारण करनेवाले, 816 भगवान् गन्धपाली-उतम गन्ध की रक्षा करनेवाले भगवान्, 817 सर्वकर्मणामुत्थानः-समस्त कर्मों के उत्थानस्वरूप। 818 मन्थानो बहुलो वायुः-विश्व को मथ डालनेमें समर्थ प्रलयकाल की महान् वायुस्वरूप, 819 सकलः-सम्पूर्ण कलाओंसे युक्त, 820 सर्वलोचनः-सबके द्रष्टा, 821 तलस्तालः-हाथ पर ही ताल देनेवाले, 822 करस्थली-हाथोंसे ही भोजनपात्र का काम लेनेवाले, 823संहननः-सुदृढ़ शरीरवाले, 824 महान्-श्रेष्ठतम्। 825 छत्रम्-छत्र के समान पाप-तापसे सुरक्षित रखनेवाले, 826 सुच्छत्रः-उतम छत्रस्वरूप, 827 विख्यातो लोकः- सुप्रसिद्ध लोकस्वरूप, 828 सर्वाश्रयः क्रमः-सबके आधारभूत गति, 829 मुण्डः-मुण्डित-मस्तक, 830 विरूपः-विकट रूपवाले, 831 विकृतः-सम्पूर्ण विपरीत क्रियाओं को धारण करनेवाले, 832 दण्डी-दण्डधारी, 833 कुण्डी-खप्परधारी, 834 विकुर्वणः-क्रियाद्वारा अलभ्य। 835 हर्यक्षः-सिंहस्वरूप, 836 ककुभः-सम्पूर्ण दिशास्वरूप, 837 वज्री-वज्रधारी, 838शतजिहवः-सैकड़ो जिहवावाले, 839 सहस्त्रपात् सहस्त्रमूर्धा-सहस्त्रों पैर और मस्तकवाले, 840 देवेन्द्रः-देवताओं के राजा, 841 सर्वदेवमयः-सम्पूर्ण देवस्वरूप, 842 गुरूः-सब के ज्ञानदाता। 843 सहस्त्रबाहुः-सहस्त्रों भुजाओंवाले, 844 सर्वांगः- समस्त अंगोसे सम्पन्न, 845शरण्यः-षरण लेने के योग्य, 846 सर्वलोककृत्-सम्पूर्ण लोकों के उत्पन्न करनेवाले, 847 पवित्रम्-परम पावन, 848 त्रिककुन्मन्त्रः-त्रिपदा गायत्रीरूप, 849 कनिष्ठः- अदिति के पुत्रोंमें छोटे, वामनरूपधारी विष्णु, 850 कृष्णपिगंलः-श्याम-गैरहरि-हर-मूर्ति।851 ब्रहादण्डविनिर्माता-ब्रहादण्ड का निर्माण करनेवाले, 852शतध्नीपाषशक्तिमान्-शतध्नी, पाश और शक्तिसे युक्त, 853 पद्यगर्भः-ब्रहास्वरूप, 854 महागर्भः-जगत्रूप गर्भ को धारण करने वाले होनसे महागर्भ, 855 ब्रहागर्भः-वेदको उदरमें धारण करनेवाले, 856 जलोभ्दवः-एकार्णव के जल में प्रकट होनेवाले। 857 गभस्तिः-सूर्यस्वरूप, 858 ब्रहाकृत्-वेदोंका आविष्कार करनेवाले, 859 ब्रहा-वेदाध्यायी, 860 ब्रहावित्-वेदार्थवेता, 861 ब्राहाणः-ब्रहानिष्ठ, 862 गतिः-ब्रहानिष्ठोंकी परमगति, 863 अनत्नरूपः-अनन्त रूपवाले, 864 नैकात्मा-अनेक शरीरधारी, 865 तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः-ब्रहाजी की अपेक्षा प्रचण्ड तेजस्वी। 866आत्मा-देश-काल-वस्तुकृत उपाधिसे अतीत स्वरूपवाले, 867 पशुपतिः-जीवोंके स्वामी, 868 वातरंहाः-वायुके समान वेगशाली, 869 मनोजवः-मनके समान वेगशाली, 870 चन्दनी-चन्दनचर्चित अंगवाले, 871 पद्यनालाग्रः-पद्यनाल के मूल विष्णुस्वरूप, 872 सुरभ्युतरणः- सुरभि को नीचे उतारनेवाले, 873 नरः-पुरूषरूप। 874 कर्णिकारमहास्त्रग्वी-करेनकी बहुत बड़ी माला धारण करनेवाले, 875 नीलमौलिः-मस्तकपर नीलमणिमय मुकुट धारण करनेवाले, 876 पिनाकधृत्-पिनाक धनुष को धारण करने वाले, 877 उमापतिः-उमा-ब्रहाविद्याके स्वामी, 878 उमाकान्तः-पार्वती के प्राण-प्रियतम, 879 जाहवीधृत्-गंगा को मस्तकपर धारण करनेवाले, 880 उमाधवः-पार्वतीपति। 881 वरो वराहः-श्रेष्ठ वराहरूपधारी भगवान् 882 वरदः-वरदाता, 883 वरेण्यः-स्वामी बनाने योग्य, 884 सुमहास्वनः-महान् गर्जना करनेवाले, 885 महाप्रसादः-भक्तोंपर महान् अनुग्रह करनेवाले, 886 दमनः-दुष्टों का दमन करनेवाले, 887शत्रुहा-शत्रुनाशक, 888श्वेतपिगंलः-अर्धनारीनरेश्वर वेश में श्वेत-पिंगल वर्णवाले। 889 पीतात्मा-हिरण्यमय पुरूष, 890 परमात्मा-परमेश्वर, 891 प्रयतात्मा-विशुद्धिचित, 892 प्रधानकृत्-जगत् के कारणभूत त्रिगुणमय प्रधान के अधिष्ठानस्वरूप, 893 सर्वपार्वमुखः-सम्पूर्ण दिशाओं की ओर मुखवाले, 894 युक्षः-त्रिनेत्रधारी, 895 धर्मसाधारणो वरः-धर्म-पालनके अनुसार वर देनेवाले। 896 चराचरात्मा-चराचर प्राणियोंके आत्मा, 897 सूक्ष्मात्मा-अति सूक्ष्मस्वरूप, 898 अमृतो गोवृशेश्वरः-निष्काम धर्म के स्वामी, 899 साध्यर्षिः- साध्य देवताओं के आचार्य, 900 आदित्यो वसुः- अदितिकुमार वसु, 901 विवस्वान् सवितामृतः-किरणोंसे सुशोभित एवं जगत को उत्पन्न करनेवाले अमृतस्वरूप सूर्य। 902 व्यासः-पुराण-इतिहास आदिके स्त्रष्टा वेदव्यासस्वरूप, 903 सर्गःसुसंक्षेपो विस्तारः-संक्षिप्त और विस्तृत सृष्टिस्वरूप, 904 पर्ययो नरः-सब ओरसे व्याप्त करनेवाले वैश्वानरस्वरूप, 905 ऋतुः-ऋतुरूप, 906 संवत्सरः-संवत्सरूप, 907 मासः-मासरूप, 908 पक्षः-पक्षरूप, 909 संख्यासमापनः-पूर्वोक्त ऋतु आदिकी संख्या समाप्त करनेवाले पर्व संक्रान्ति,दर्ष,पूर्णमासादि रूप। 910 कलाः, 911 काष्ठाः-, 912 लवाः, 913 मात्राः-इत्यादि कालावयवस्वरूप, 914 मुहूर्ताहःक्षपाः-मुहूर्त, दिन और रात्रिरूप, 915 क्षणाः-क्षणरूप, 916 विश्वक्षेत्रम्-ब्रहाण्डरूपी वृक्षके आधार, 917 प्रजाबीजम्-प्रजाओंके कारणरूप, 918 लिंगम्-महतत्वस्वरूप, 919 आद्यो निर्गमः-सबसे पहले प्रकट होनेवाले। 920 सत्-सत्स्वरूप, 921 असत्-असत्वरूप, 922 व्यक्तम्-साकाररूप, 923 अव्यक्तम्-निराकाररूप, 924 पिता, 925 माता, 926 पितामहः- 927 स्वर्गद्वारम्-स्वर्गके साधनस्वरूप, 928 प्रजाद्वारम्-प्रजाके कारण, 929 मोक्षद्वारम्-मोक्षके साधनस्वरूप, 930 त्रिविष्टपम्-स्वर्गके साधनस्वरूप।
+
394 बीजाध्यक्षः- कारणोंके अध्यक्ष, 395 बीजकर्ता- कारणोंके उत्पादक, 396 अध्यायत्मनुगतः- अध्यात्मशास्त्रका अनुसरण करनेवाले, 397 बलः- बलवान्, 398 इतिहासः- महाभारत आदि इतिहासस्वरूप, 399 संकल्पः- कल्प-यज्ञोंके प्रयोग और विधिके विचारके साथ मीमांसा और न्यायका समूह, 400 गौतमः- तर्कशास्त्रके प्रणेता मुनिस्वरूप, 401 निशाकरः- चन्द्रमारूप। 402 दम्भः- शत्रुओंका दमन करनेवाले, 403 अदम्भः- दम्भरहित, 404 वैदम्भः- दम्भरहित पुरूषोंके आत्मीय, 405 वषय- भक्तपराधीन, 406 वशकरः7 दूसरोंको वशमें करनेकी शक्ति रखनेवाले, 407 कलिः- कलि नामक युग, 408 लोककर्ता- जगत कि सृष्टि करनेवाले, 409 पशुपतिः- पशुओं-जीवोंके स्वामी, 410 महाकर्ता- पंच महाभूतादि सृष्टिकी रचना करनेवाले, 411 अनौषधः- अन्न आदि ओषधियोंके सेवनसे रहित। 412 अक्षरम्- अविनाशी ब्रहा, 413 परमं ब्रहा-सर्वात्कृष्ट परमात्मा, 414 बलवत्- शक्तिशाली, 415शक्रः- इन्द्र, 416 नीतिः- न्यायस्वरूप, 417 अनीतिः- साम,दाम,दण्ड़,भेदसे रहित, 418शुद्धात्माः- शुद्धस्वरूप, 419शुद्धः- परम पवित्र, 420 मान्यः- सम्मानने योग्य, 421 गतागतः- गमनागमनशील संसारस्वरूप,। 422 बहुप्रसादः- भक्तोंपर अधिक कृपा करनेवाले, 423 सुस्वप्नः- सुन्दर स्वप्नवाले, 424 दर्पणः- दर्पणके समान स्वच्छ, 425 अमित्रजित्-बाहर-भीतरके शत्रुओंके जीतनेवाले, 426 वेदकारः- वेदोंका कर्ता, 427 मन्त्रकारः- मन्त्रोंका आविष्कार करनेवाले, 428 विद्वान् सर्वज्ञ, 429 समरमर्दनः- समरांगणमें शत्रुओंका संहार करनेवाले। 430 महामेघनिवासी- प्रलयकालिक महामेघोंमें निवास करनेवाले, 431 महाघोरः- प्रलय करनेवाले, 432 वशी- सबको वशमें रखनेवाले, 433 करः- संहारकारी, 434 अग्निज्वालः- अग्निकी ज्वालाके समान तेजवाले, 435 महाज्वालः- अग्निसे भी महान् तेजवाले, 436 अतिधूम्रः- कालग्निरूपसे सबके दाहकालमें अत्यन्त धूम्र वर्णवाले, 437 हुतः- आहुति पाकर प्रसन्न होनेवाले अग्निरूप, 438 हविः- घी-दूध आदि हवनीय पदार्थरूप। 439 वृषणः- कर्मफलकी वर्षा करनेवाले धर्मस्वरूप, 440शकर-कल्याणकारी, 441 नित्यं वर्चस्वी- सदा तेजसे जगमगासे रहनेवाले, 442 धूमकेतनः- अग्निस्वरूप, 443 नीलः- शमवर्ण श्रीहरि, 444 अंगलुब्धः- अपने श्रीअंगके सौन्दर्यपर स्वयं ही लुभाये रहनेवाले, 445शोभनः- शोभाशाली, 446 निरवग्रहः- प्रतिबन्धरहित। 447 स्वस्तिदः- कल्याणदायक, 448 स्वस्तिभावः- कल्याणमयी सता, 449 भागी- यज्ञमें भागलेनेवाले, 450 भागकरः- यज्ञके हविष्यका विभाजन करनेवाले, 451 लघुः- शीघ्रकारी, 452 उत्संग- संगरहित, 453 महागः- महान् अंगवाले, 454 महागर्भपरायणः- हिरण्यगर्भके परम आश्रय। 455 कृष्णवर्णः- शमवर्ण विष्णुस्वरूप, 456 सुवर्णः- उत्त4म वर्णवाले, 457 सर्वदेहिनाम् इन्द्रियम्-समस्त देहधारियोंके इन्द्रियसमुदायरूप, 458 महापादः- लंबे पैरोवाले त्रिविक्रमस्वरूप, 459 महाहस्तः- लंबे हाथवाले, 460 महाकायः- विश्वरूप, 461 महायशा- महान् सुयशवाले।।85।। 462 महामूर्धा- महान् मस्तकवाले, 463 महामात्रः- विशाल नापवाले, 464 महानेत्रः- विशाल नेत्रोंवाले, 465 निशालयः- निशा अर्थात् अविद्याके लयस्थान, 466 महान्तकः- मृत्युकी भी मृत्यु, 467 महाकर्णः- बड़े-बड़े कानवाले, 468 महोष्ठः- लंबे ओठवाले, 469 महाहनुः- पुष्ट एवं बड़ी ठोड़ीवाले। 470 महानासः- बड़ी नासिकावाले, 471 महाकम्बुः- बड़े कण्ठवाले, 472 महाग्रीवः- विशाल ग्रीवासे युक्त, 473श्मशानभाक्-श्मशान भूमिमें क्रीड़ा करनेवाले 474 महावक्षाः- विशाल वक्षःस्थलवाले, 475 महोरस्कः- चौड़ी छातीवाले, 476 अन्तरात्मा- सबके अन्तरात्मा, 477 मृगालयः- मृग-शिशुको अपनी गोदमें लिये रहनेवाले। 478 लम्बनः- अनेक ब्रहाण्डोके आश्रय, 479 लम्बितोष्ठः- प्रलयकालमें सम्पूर्ण विश्वको अपना ग्रास बनानेके लिये ओठोंको फैलाये रखनेवाले, 480 महामायः- महामायावी, 481 पयोनिधिः- क्षीरसागररूप, 482 महादन्तः- बड़े-बडे दाढ़वाले, 484 महामायः- विशाल महामायवाले, 485 महामुखः- बहुत बड़े मुखवाले। 486 महानखः- बड़े-बड़े नखवाले नृसिंह, 487 महारोमा-विशाल रोमवाले वराहरूप, 488 महाकोषः- बहुत बड़े पेटवाले, 489 महाजटः- बड़ी-बड़ी जटावाले, 490 प्रसन्नः- आनन्दमग्न, 491 प्रसादः- प्रसन्नताकी मूर्ति, 492 प्रत्ययः- ज्ञानस्वरूप, 493 गिरिसाधनः- पर्वतको युद्धका साधन बनानेवाले। 494 स्नेहनः- प्रजाओंके प्रति पिताकी भांति स्नेह रखनेवाले, 495 अस्नेहनः- आसक्तिसे रहित, 496 महामुनिः- अत्यन्त मननशील, 497 वृक्षाकारः-संसारवृक्षस्वरूप, 498 अजितः- किसीसे पराजित न होनेवाले, 499 वृक्षकेतुः- वृक्षके समान उंची ध्वजावाले, 500 अनलः- अग्निस्वरूप, 501 वायुवाहनः- वायुका वाहनके रूपमें उपयोग करनेवाले। 502 गण्डली- पहाड़ोकी गुफाओंमें छिपकर रहनेवाले, 503 मेरूधामा-मेरू-पर्वतको अपना निवासस्थान बनानेवाले, 504 देवाधिपतिः- देवताओंके स्वामी, 505 अथर्वशीर्ष जिनका मस्तक है वे, 506 सामास्यः- सामवेद जिनका मुख है वे, 507 ऋक्सहस्त्रामितेक्षणः- सहस्त्रों ऋचाएं जिनके नेत्र हैं।
  
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 17 श्लोक 96-119|अगला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 17 श्लोक 144-182}}
+
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 65-77|अगला=महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 92-105}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>

१०:२९, २३ जुलाई २०१५ का अवतरण

सप्तदश (17) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 78-91 का हिन्दी अनुवाद

394 बीजाध्यक्षः- कारणोंके अध्यक्ष, 395 बीजकर्ता- कारणोंके उत्पादक, 396 अध्यायत्मनुगतः- अध्यात्मशास्त्रका अनुसरण करनेवाले, 397 बलः- बलवान्, 398 इतिहासः- महाभारत आदि इतिहासस्वरूप, 399 संकल्पः- कल्प-यज्ञोंके प्रयोग और विधिके विचारके साथ मीमांसा और न्यायका समूह, 400 गौतमः- तर्कशास्त्रके प्रणेता मुनिस्वरूप, 401 निशाकरः- चन्द्रमारूप। 402 दम्भः- शत्रुओंका दमन करनेवाले, 403 अदम्भः- दम्भरहित, 404 वैदम्भः- दम्भरहित पुरूषोंके आत्मीय, 405 वषय- भक्तपराधीन, 406 वशकरः7 दूसरोंको वशमें करनेकी शक्ति रखनेवाले, 407 कलिः- कलि नामक युग, 408 लोककर्ता- जगत कि सृष्टि करनेवाले, 409 पशुपतिः- पशुओं-जीवोंके स्वामी, 410 महाकर्ता- पंच महाभूतादि सृष्टिकी रचना करनेवाले, 411 अनौषधः- अन्न आदि ओषधियोंके सेवनसे रहित। 412 अक्षरम्- अविनाशी ब्रहा, 413 परमं ब्रहा-सर्वात्कृष्ट परमात्मा, 414 बलवत्- शक्तिशाली, 415शक्रः- इन्द्र, 416 नीतिः- न्यायस्वरूप, 417 अनीतिः- साम,दाम,दण्ड़,भेदसे रहित, 418शुद्धात्माः- शुद्धस्वरूप, 419शुद्धः- परम पवित्र, 420 मान्यः- सम्मानने योग्य, 421 गतागतः- गमनागमनशील संसारस्वरूप,। 422 बहुप्रसादः- भक्तोंपर अधिक कृपा करनेवाले, 423 सुस्वप्नः- सुन्दर स्वप्नवाले, 424 दर्पणः- दर्पणके समान स्वच्छ, 425 अमित्रजित्-बाहर-भीतरके शत्रुओंके जीतनेवाले, 426 वेदकारः- वेदोंका कर्ता, 427 मन्त्रकारः- मन्त्रोंका आविष्कार करनेवाले, 428 विद्वान् सर्वज्ञ, 429 समरमर्दनः- समरांगणमें शत्रुओंका संहार करनेवाले। 430 महामेघनिवासी- प्रलयकालिक महामेघोंमें निवास करनेवाले, 431 महाघोरः- प्रलय करनेवाले, 432 वशी- सबको वशमें रखनेवाले, 433 करः- संहारकारी, 434 अग्निज्वालः- अग्निकी ज्वालाके समान तेजवाले, 435 महाज्वालः- अग्निसे भी महान् तेजवाले, 436 अतिधूम्रः- कालग्निरूपसे सबके दाहकालमें अत्यन्त धूम्र वर्णवाले, 437 हुतः- आहुति पाकर प्रसन्न होनेवाले अग्निरूप, 438 हविः- घी-दूध आदि हवनीय पदार्थरूप। 439 वृषणः- कर्मफलकी वर्षा करनेवाले धर्मस्वरूप, 440शकर-कल्याणकारी, 441 नित्यं वर्चस्वी- सदा तेजसे जगमगासे रहनेवाले, 442 धूमकेतनः- अग्निस्वरूप, 443 नीलः- शमवर्ण श्रीहरि, 444 अंगलुब्धः- अपने श्रीअंगके सौन्दर्यपर स्वयं ही लुभाये रहनेवाले, 445शोभनः- शोभाशाली, 446 निरवग्रहः- प्रतिबन्धरहित। 447 स्वस्तिदः- कल्याणदायक, 448 स्वस्तिभावः- कल्याणमयी सता, 449 भागी- यज्ञमें भागलेनेवाले, 450 भागकरः- यज्ञके हविष्यका विभाजन करनेवाले, 451 लघुः- शीघ्रकारी, 452 उत्संग- संगरहित, 453 महागः- महान् अंगवाले, 454 महागर्भपरायणः- हिरण्यगर्भके परम आश्रय। 455 कृष्णवर्णः- शमवर्ण विष्णुस्वरूप, 456 सुवर्णः- उत्त4म वर्णवाले, 457 सर्वदेहिनाम् इन्द्रियम्-समस्त देहधारियोंके इन्द्रियसमुदायरूप, 458 महापादः- लंबे पैरोवाले त्रिविक्रमस्वरूप, 459 महाहस्तः- लंबे हाथवाले, 460 महाकायः- विश्वरूप, 461 महायशा- महान् सुयशवाले।।85।। 462 महामूर्धा- महान् मस्तकवाले, 463 महामात्रः- विशाल नापवाले, 464 महानेत्रः- विशाल नेत्रोंवाले, 465 निशालयः- निशा अर्थात् अविद्याके लयस्थान, 466 महान्तकः- मृत्युकी भी मृत्यु, 467 महाकर्णः- बड़े-बड़े कानवाले, 468 महोष्ठः- लंबे ओठवाले, 469 महाहनुः- पुष्ट एवं बड़ी ठोड़ीवाले। 470 महानासः- बड़ी नासिकावाले, 471 महाकम्बुः- बड़े कण्ठवाले, 472 महाग्रीवः- विशाल ग्रीवासे युक्त, 473श्मशानभाक्-श्मशान भूमिमें क्रीड़ा करनेवाले 474 महावक्षाः- विशाल वक्षःस्थलवाले, 475 महोरस्कः- चौड़ी छातीवाले, 476 अन्तरात्मा- सबके अन्तरात्मा, 477 मृगालयः- मृग-शिशुको अपनी गोदमें लिये रहनेवाले। 478 लम्बनः- अनेक ब्रहाण्डोके आश्रय, 479 लम्बितोष्ठः- प्रलयकालमें सम्पूर्ण विश्वको अपना ग्रास बनानेके लिये ओठोंको फैलाये रखनेवाले, 480 महामायः- महामायावी, 481 पयोनिधिः- क्षीरसागररूप, 482 महादन्तः- बड़े-बडे दाढ़वाले, 484 महामायः- विशाल महामायवाले, 485 महामुखः- बहुत बड़े मुखवाले। 486 महानखः- बड़े-बड़े नखवाले नृसिंह, 487 महारोमा-विशाल रोमवाले वराहरूप, 488 महाकोषः- बहुत बड़े पेटवाले, 489 महाजटः- बड़ी-बड़ी जटावाले, 490 प्रसन्नः- आनन्दमग्न, 491 प्रसादः- प्रसन्नताकी मूर्ति, 492 प्रत्ययः- ज्ञानस्वरूप, 493 गिरिसाधनः- पर्वतको युद्धका साधन बनानेवाले। 494 स्नेहनः- प्रजाओंके प्रति पिताकी भांति स्नेह रखनेवाले, 495 अस्नेहनः- आसक्तिसे रहित, 496 महामुनिः- अत्यन्त मननशील, 497 वृक्षाकारः-संसारवृक्षस्वरूप, 498 अजितः- किसीसे पराजित न होनेवाले, 499 वृक्षकेतुः- वृक्षके समान उंची ध्वजावाले, 500 अनलः- अग्निस्वरूप, 501 वायुवाहनः- वायुका वाहनके रूपमें उपयोग करनेवाले। 502 गण्डली- पहाड़ोकी गुफाओंमें छिपकर रहनेवाले, 503 मेरूधामा-मेरू-पर्वतको अपना निवासस्थान बनानेवाले, 504 देवाधिपतिः- देवताओंके स्वामी, 505 अथर्वशीर्ष जिनका मस्तक है वे, 506 सामास्यः- सामवेद जिनका मुख है वे, 507 ऋक्सहस्त्रामितेक्षणः- सहस्त्रों ऋचाएं जिनके नेत्र हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।