"महाभारत वन पर्व अध्याय 217 श्लोक 18-21": अवतरणों में अंतर

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==सप्‍तदशाधिकद्विशततम (217) अध्‍याय: वन पर्व (समस्या पर्व )==
==सप्‍तदशाधिकद्विशततम (217) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्‍तदशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 18-21 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्‍तदशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 18-21 का हिन्दी अनुवाद</div>
<center>अग्‍नि का अग्डि़रा को प्रथम पुत्र स्‍वीकार करना तथा  अगडि़रा से बृहस्‍पति की उत्‍पत्ति</center>
<center>अग्‍नि का अग्डि़रा को प्रथम पुत्र स्‍वीकार करना तथा  अगडि़रा से बृहस्‍पति की उत्‍पत्ति</center>
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मार्कण्‍डेयजी कहते हैं-राजन् । अडि़गरा का यह वचन सुनकर अग्रि देव ने वैसा ही किया । उन्‍हें अपना प्रथम पुत्र मान लिया । फिर अगडि़रा के भी बृहस्‍पति नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ । भरतनन्‍दन । अगडि़रा को अग्रि देव का प्रथम पुत्र जानकर सब देवता उनके पास आये और इसका कारण पूछने लगे । देवताओं के पूछने पर अगडि़रा ने उन्‍हें कारण बताया और देवताओं ने अ‍गडि़रा के उस कथन पर विश्‍वास करके उसे यथार्थ माना । अब मैं महान् कान्तिमान् विविध अग्रियों का, जो ब्राह्मण ग्रन्‍थोक्‍त विधि-वाक्‍यों में कर्मों द्वारा विभिन्न प्रयोजनों की सिद्धि के लिये विख्‍यात हैं, वर्णन करुंगा ।
मार्कण्‍डेयजी कहते हैं-राजन् । अडि़गरा का यह वचन सुनकर अग्रि देव ने वैसा ही किया । उन्‍हें अपना प्रथम पुत्र मान लिया । फिर अगडि़रा के भी बृहस्‍पति नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ । भरतनन्‍दन । अगडि़रा को अग्रि देव का प्रथम पुत्र जानकर सब देवता उनके पास आये और इसका कारण पूछने लगे । देवताओं के पूछने पर अगडि़रा ने उन्‍हें कारण बताया और देवताओं ने अ‍गडि़रा के उस कथन पर विश्‍वास करके उसे यथार्थ माना । अब मैं महान् कान्तिमान् विविध अग्रियों का, जो ब्राह्मण ग्रन्‍थोक्‍त विधि-वाक्‍यों में कर्मों द्वारा विभिन्न प्रयोजनों की सिद्धि के लिये विख्‍यात हैं, वर्णन करुंगा ।


इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तगर्त मार्कण्‍डेय समास्‍या पर्व में अगडि़रस के प्रसगड़ में दो सौ सत्रहवां अध्‍याय पूरा हुआ ।
इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तगर्त मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में अगडि़रस के प्रसगड़ में दो सौ सत्रहवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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१०:०९, ३० जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

सप्‍तदशाधिकद्विशततम (217) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्‍तदशाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 18-21 का हिन्दी अनुवाद
अग्‍नि का अग्डि़रा को प्रथम पुत्र स्‍वीकार करना तथा अगडि़रा से बृहस्‍पति की उत्‍पत्ति


मार्कण्‍डेयजी कहते हैं-राजन् । अडि़गरा का यह वचन सुनकर अग्रि देव ने वैसा ही किया । उन्‍हें अपना प्रथम पुत्र मान लिया । फिर अगडि़रा के भी बृहस्‍पति नामक पुत्र उत्‍पन्न हुआ । भरतनन्‍दन । अगडि़रा को अग्रि देव का प्रथम पुत्र जानकर सब देवता उनके पास आये और इसका कारण पूछने लगे । देवताओं के पूछने पर अगडि़रा ने उन्‍हें कारण बताया और देवताओं ने अ‍गडि़रा के उस कथन पर विश्‍वास करके उसे यथार्थ माना । अब मैं महान् कान्तिमान् विविध अग्रियों का, जो ब्राह्मण ग्रन्‍थोक्‍त विधि-वाक्‍यों में कर्मों द्वारा विभिन्न प्रयोजनों की सिद्धि के लिये विख्‍यात हैं, वर्णन करुंगा ।

इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तगर्त मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में अगडि़रस के प्रसगड़ में दो सौ सत्रहवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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