"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 116 श्लोक 1-22" के अवतरणों में अंतर

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==षोडशाधिकशततम (116) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
 
==षोडशाधिकशततम (116) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद </div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
;कौरव-पाण्डव महारथियों के द्वन्द्धयुद्ध का वर्णन तथा भीष्म का पराक्रम
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कौरव-पाण्डव महारथियों के द्वन्द्धयुद्ध का वर्णन तथा भीष्म का पराक्रम
जय कहते हैं - महाराज! भीष्मजी को पराजित करने के लिए पराक्रमी अभिमन्यु ने विशाल सेनासहित आये हुए आपके पुत्र के साथ युद्ध आरम्भ किया। दुर्योधन ने रणक्षेत्र में झुकी हुई गांठवाले नौ बाणों से अभिमन्यू की छाती में गहरी चोट पहुंचायी। फिर कुपित होकर उसने उन्हें तीन बाण और मारे। तदनन्तर क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु ने रणक्षेत्र में दुर्योधन के रथ पर एक भयंकर शक्ति चलायी, जो मृत्यु की बहिन-सी प्रतीत होती थी। प्रजानाथ! उस भयंकर शक्ति का सहसा अपनी ओर आती देख आपके महारथी पुत्र दुर्योधन ने एक क्षुरप्र के द्वारा उसके दो टुकड़े कर डाले। उस शक्ति को गिरी हुई देख अत्यन्त क्रोध में भरे हुए अर्जुन कुमार ने दुर्योधन की छाती तथा भुजाओं में चोट पहुंचायी। भरत श्रेष्ठ! तदनन्तर भरतकुल के महारथी वीर अभिमन्यु ने पुनः दुर्योधन की छाती में दस भयानक बाण मारे। भरतनन्दन! उन दोनों का वह भयंकर युद्ध विचित्र और सम्पूर्ण इन्द्रियों को प्रसन्न करने वाला था। समस्त भूपाल उस युद्ध की प्रशंसा करते थे। भीष्म के वध और अर्जुन की विजय के लिये उस युद्ध के मैदान में सुभद्राकुमार अभिमन्यु और कुरूश्रेष्ठ दुर्योधनये दोनों वीर युद्ध कर रहे थे। दूसरी ओर शत्रुओं को संताप देने वाले ब्राह्मणशिरोमणि द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने कुपित हो युद्ध में अत्यन्त वेगशाली सात्यकिको लक्ष्य करके उनकी छाती में एक नाराचसे प्रहार किया। भारत! तब अनन्त आत्मबल से सम्पन्‍न सात्यकि ने भी गुरूपुत्र अश्वत्थामा के सम्पूर्णे मर्मस्थानों में नौ कंकपत्रयुक्त बाण मारे। अश्वत्थामा ने समर भूमि में सात्यकि को पहले नौ बाणों से घायल करके फिर तुरंत ही तीस बाणों द्वारा उनकी भुजाओं तथा छाती में गहरी चोट पहुंचायी। द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के द्वारा अत्यन्त घायल होकर महायशस्वी महाधनुर्धर सात्यकि ने तीन बाणों से उसे घायल कर दिया। महारथी पौरव ने युद्ध में महाधनुर्धर धृष्टकेतु को बाणों द्वारा आच्छादित करके उन्हें बारम्‍बारघायल किया। उसी प्रकार महारथी महाबाहु धृष्टकेतु ने युद्ध स्थल में तीस पैने बाणों द्वारा पौरवों को भी तुरंत ही घायल कर दिया। तब महारथी पौरव ने धृष्टकेतु के धनुष को काटकर बड़े जोर से सिंहनाद किया और उसे तीखे बाणों से बींध डाला। महाराज! धृष्टकेतु ने दूसरा धनुष लेकर तिहत्तर तीखे शिलीमुख बाणों द्वारा पौरव को गहरी चोट पहूंचायी। वे दोनों महाधनुर्धर, महाबली और महारथी वीर एक दूसरे को युद्ध में भारी बाण वर्षा द्वारा घायल कर रहे थे। भारत! दोनों ने एक दूसरे का धनुष काटकर घोड़ों को भी मार डाला और रथहीन हो दोनों ही एक दूसरे पर कुपित हो परस्पर खड़ग युद्ध के लिये आमने-सामने आये। उनके हाथों में सौ-सौ चन्द्र और तारका के चिन्हों से युक्त ऋषभ के चर्म की बनी हुई ढालें और चमकीले खड़ग शोभा पाते थे। राजन्! जैसे महान वन में एक सिंहनी के लिए दो सिंहलड़ते हों, उसी प्रकार चमकीले खड़ग लेकर धृष्टकेतु और पौरव दोनों विजय के लिये प्रयत्नशील हो एक दूसरे पर टूट पड़े। वे आगे बढने और पीछे हटने आदि विचित्र पैंतरे दिखाते एवं एक दूसरे को ललकारते हुए रणभूमि में विचरते थे।
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जय कहते हैं - महाराज! भीष्मजी को पराजित करने के लिए पराक्रमी अभिमन्यु ने विशाल सेनासहित आये हुए आपके पुत्र के साथ युद्ध आरम्भ किया। दुर्योधन ने रणक्षेत्र में झुकी हुई गांठवाले नौ बाणों से अभिमन्यू की छाती में गहरी चोट पहुंचायी। फिर कुपित होकर उसने उन्हें तीन बाण और मारे। तदनन्तर क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु ने रणक्षेत्र में दुर्योधन के रथ पर एक भयंकर शक्ति चलायी, जो मृत्यु की बहिन-सी प्रतीत होती थी। प्रजानाथ! उस भयंकर शक्ति का सहसा अपनी ओर आती देख आपके महारथी पुत्र दुर्योधन ने एक क्षुरप्र के द्वारा उसके दो टुकड़े कर डाले। उस शक्ति को गिरी हुई देख अत्यन्त क्रोध में भरे हुए अर्जुन कुमार ने दुर्योधन की छाती तथा भुजाओं में चोट पहुंचायी। भरत श्रेष्ठ! तदनन्तर भरतकुल के महारथी वीर अभिमन्यु ने पुनः दुर्योधन की छाती में दस भयानक बाण मारे। भरतनन्दन! उन दोनों का वह भयंकर युद्ध विचित्र और सम्पूर्ण इन्द्रियों को प्रसन्न करने वाला था। समस्त भूपाल उस युद्ध की प्रशंसा करते थे। भीष्म के वध और अर्जुन की विजय के लिये उस युद्ध के मैदान में सुभद्राकुमार अभिमन्यु और कुरूश्रेष्ठ दुर्योधनये दोनों वीर युद्ध कर रहे थे। दूसरी ओर शत्रुओं को संताप देने वाले ब्राह्मणशिरोमणि द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने कुपित हो युद्ध में अत्यन्त वेगशाली सात्यकिको लक्ष्य करके उनकी छाती में एक नाराचसे प्रहार किया। भारत! तब अनन्त आत्मबल से सम्पन्‍न सात्यकि ने भी गुरूपुत्र अश्वत्थामा के सम्पूर्णे मर्मस्थानों में नौ कंकपत्रयुक्त बाण मारे। <br />
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अश्वत्थामा ने समर भूमि में सात्यकि को पहले नौ बाणों से घायल करके फिर तुरंत ही तीस बाणों द्वारा उनकी भुजाओं तथा छाती में गहरी चोट पहुंचायी। द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के द्वारा अत्यन्त घायल होकर महायशस्वी महाधनुर्धर सात्यकि ने तीन बाणों से उसे घायल कर दिया। महारथी पौरव ने युद्ध में महाधनुर्धर धृष्टकेतु को बाणों द्वारा आच्छादित करके उन्हें बारम्‍बारघायल किया। उसी प्रकार महारथी महाबाहु धृष्टकेतु ने युद्ध स्थल में तीस पैने बाणों द्वारा पौरवों को भी तुरंत ही घायल कर दिया। तब महारथी पौरव ने धृष्टकेतु के धनुष को काटकर बड़े जोर से सिंहनाद किया और उसे तीखे बाणों से बींध डाला। महाराज! धृष्टकेतु ने दूसरा धनुष लेकर तिहत्तर तीखे शिलीमुख बाणों द्वारा पौरव को गहरी चोट पहूंचायी। वे दोनों महाधनुर्धर, महाबली और महारथी वीर एक दूसरे को युद्ध में भारी बाण वर्षा द्वारा घायल कर रहे थे। भारत! दोनों ने एक दूसरे का धनुष काटकर घोड़ों को भी मार डाला और रथहीन हो दोनों ही एक दूसरे पर कुपित हो परस्पर खड़ग युद्ध के लिये आमने-सामने आये। उनके हाथों में सौ-सौ चन्द्र और तारका के चिन्हों से युक्त ऋषभ के चर्म की बनी हुई ढालें और चमकीले खड़ग शोभा पाते थे। राजन्! जैसे महान वन में एक सिंहनी के लिए दो सिंहलड़ते हों, उसी प्रकार चमकीले खड़ग लेकर धृष्टकेतु और पौरव दोनों विजय के लिये प्रयत्नशील हो एक दूसरे पर टूट पड़े। वे आगे बढने और पीछे हटने आदि विचित्र पैंतरे दिखाते एवं एक दूसरे को ललकारते हुए रणभूमि में विचरते थे। पौरव ने अपने महान खड़ग से धृष्टकेतु की कनपटी पर क्रोधपूर्वक प्रहार किया और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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०७:४७, २५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

षोडशाधिकशततम (116) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

कौरव-पाण्डव महारथियों के द्वन्द्धयुद्ध का वर्णन तथा भीष्म का पराक्रम

जय कहते हैं - महाराज! भीष्मजी को पराजित करने के लिए पराक्रमी अभिमन्यु ने विशाल सेनासहित आये हुए आपके पुत्र के साथ युद्ध आरम्भ किया। दुर्योधन ने रणक्षेत्र में झुकी हुई गांठवाले नौ बाणों से अभिमन्यू की छाती में गहरी चोट पहुंचायी। फिर कुपित होकर उसने उन्हें तीन बाण और मारे। तदनन्तर क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु ने रणक्षेत्र में दुर्योधन के रथ पर एक भयंकर शक्ति चलायी, जो मृत्यु की बहिन-सी प्रतीत होती थी। प्रजानाथ! उस भयंकर शक्ति का सहसा अपनी ओर आती देख आपके महारथी पुत्र दुर्योधन ने एक क्षुरप्र के द्वारा उसके दो टुकड़े कर डाले। उस शक्ति को गिरी हुई देख अत्यन्त क्रोध में भरे हुए अर्जुन कुमार ने दुर्योधन की छाती तथा भुजाओं में चोट पहुंचायी। भरत श्रेष्ठ! तदनन्तर भरतकुल के महारथी वीर अभिमन्यु ने पुनः दुर्योधन की छाती में दस भयानक बाण मारे। भरतनन्दन! उन दोनों का वह भयंकर युद्ध विचित्र और सम्पूर्ण इन्द्रियों को प्रसन्न करने वाला था। समस्त भूपाल उस युद्ध की प्रशंसा करते थे। भीष्म के वध और अर्जुन की विजय के लिये उस युद्ध के मैदान में सुभद्राकुमार अभिमन्यु और कुरूश्रेष्ठ दुर्योधनये दोनों वीर युद्ध कर रहे थे। दूसरी ओर शत्रुओं को संताप देने वाले ब्राह्मणशिरोमणि द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने कुपित हो युद्ध में अत्यन्त वेगशाली सात्यकिको लक्ष्य करके उनकी छाती में एक नाराचसे प्रहार किया। भारत! तब अनन्त आत्मबल से सम्पन्‍न सात्यकि ने भी गुरूपुत्र अश्वत्थामा के सम्पूर्णे मर्मस्थानों में नौ कंकपत्रयुक्त बाण मारे।
अश्वत्थामा ने समर भूमि में सात्यकि को पहले नौ बाणों से घायल करके फिर तुरंत ही तीस बाणों द्वारा उनकी भुजाओं तथा छाती में गहरी चोट पहुंचायी। द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के द्वारा अत्यन्त घायल होकर महायशस्वी महाधनुर्धर सात्यकि ने तीन बाणों से उसे घायल कर दिया। महारथी पौरव ने युद्ध में महाधनुर्धर धृष्टकेतु को बाणों द्वारा आच्छादित करके उन्हें बारम्‍बारघायल किया। उसी प्रकार महारथी महाबाहु धृष्टकेतु ने युद्ध स्थल में तीस पैने बाणों द्वारा पौरवों को भी तुरंत ही घायल कर दिया। तब महारथी पौरव ने धृष्टकेतु के धनुष को काटकर बड़े जोर से सिंहनाद किया और उसे तीखे बाणों से बींध डाला। महाराज! धृष्टकेतु ने दूसरा धनुष लेकर तिहत्तर तीखे शिलीमुख बाणों द्वारा पौरव को गहरी चोट पहूंचायी। वे दोनों महाधनुर्धर, महाबली और महारथी वीर एक दूसरे को युद्ध में भारी बाण वर्षा द्वारा घायल कर रहे थे। भारत! दोनों ने एक दूसरे का धनुष काटकर घोड़ों को भी मार डाला और रथहीन हो दोनों ही एक दूसरे पर कुपित हो परस्पर खड़ग युद्ध के लिये आमने-सामने आये। उनके हाथों में सौ-सौ चन्द्र और तारका के चिन्हों से युक्त ऋषभ के चर्म की बनी हुई ढालें और चमकीले खड़ग शोभा पाते थे। राजन्! जैसे महान वन में एक सिंहनी के लिए दो सिंहलड़ते हों, उसी प्रकार चमकीले खड़ग लेकर धृष्टकेतु और पौरव दोनों विजय के लिये प्रयत्नशील हो एक दूसरे पर टूट पड़े। वे आगे बढने और पीछे हटने आदि विचित्र पैंतरे दिखाते एवं एक दूसरे को ललकारते हुए रणभूमि में विचरते थे। पौरव ने अपने महान खड़ग से धृष्टकेतु की कनपटी पर क्रोधपूर्वक प्रहार किया और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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