महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 116 श्लोक 23-42

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षोडशाधिकशततम (116) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-42 का हिन्दी अनुवाद

तब चेदिराज धृष्टकेतु ने भी समर में पुरूष रत्न पौरव के गले की हंसली पर तीखी धारवाले महान खड़ग से गहरी चोट पहूंचायी। महाराज! शत्रुओं का दमन करने वाले वे दोनों वीर उस महायुद्ध में परस्पर भिड़कर एक दूसरे के वेगपूर्वक किये हुए आघात से अत्यन्त घायल हो पृथ्वी पर गिर पड़े। तब आसके पुत्र जयत्सेन ने पौरव को अपने रथ पर बिठा लिया औैर उस रथ के द्वारा ही वह उसे समरागण से बाहर हटा ले गया। इसी प्रकार प्रतापी एवं पराक्रमी माद्रीकुमार सहदेव कुपित हो धृष्टकेतु को अपने रथ पर चढाकर समर भूमि से बाहर हटा ले गये। चित्रसेन ने पाण्डव दल के सुशर्मा नामक राजा को लोहे के बने हुए बहुत से बाणों द्वारा उन्हें पीड़ितकर दिया। प्रजानाथ! तब सुशर्मा ने रणभूमि में कुपित होकर आपके पुत्र चित्रसेन को दस-दस तीखे बाणों द्वारा दो बार घायल किया । राजन! चित्रसेन ने कुपित हो झुकी हुई गांठवाले तीस बाणों से रणक्षेत्र में सुशर्मा को गहरी चोट पहुंचायी। महाराज्! उसने समर में भीष्म के यश और सम्मान दोनों को बढाया। राजन! भीष्मजी के साथ युद्ध करने में अर्जुन की सहायता के लिये पराक्रम करने वाले सुभद्राकुमार अभिमन्यु ने राजकुमार वृहद्वल के साथ युद्ध किया। कोसल नरेश ने लोहे के बने हुए पांच बाणों से अर्जुन कुमार को घायल करके पुन:झुकी हुई गांठ वाले बीस बाणों द्वारा उन्हें क्षत-विक्षत कर दिया। तब सुभद्रा कुमार ने कोसल नरेश को लोहे के आठ बाणों से बींध डाला तो भी संग्राम में उसे विचलित न कर सका। इसके बाद उसने फिर अनेक बाणों द्वारा बृहदबल को घायल कर दिया। तदनन्तर अर्जुन कुमार ने कोसल नरेश का धनुष भी काट दिया और कंकपत्रयुक्त तीस सायकों द्वारा उन पर गहरा प्रहार किया। तब राजकुमार बृहदबल ने दूसरा धनुष लेकर समर भूमि में कुपित हो अर्जुन कुमार अभिमन्यु को बहुतेरे बाणोंद्वारा बींध डाला। परंतप! महाराज! इस प्रकार समरागण में क्रोधपूर्वक विचित्र युद्ध करने वाले उन दोनों वीरों में भीष्म के लिये बड़ा भारी युद्ध हुआ, मानो देवासुर संग्राम में राजा बलि और इन्द्र में द्वन्द्ध युद्ध हो रहा हो। तथा जैसे ब्रजधारी इन्द्र बड़े-बड़े पर्वतों को विदीर्ण कर डालते हैं, इसी प्रकार भीमसेन हाथियों की सेना के साथ युद्ध करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। भीमसेन के द्वारा मारे जाते हुए वे पर्वत सरीखे बहुसंख्यक गजराज (अपने चीत्कार से ) इस पृथ्वी को प्रतिध्वनित करते हुए एक साथ ही धराशायी हो जाते थे। कटे हुए कोयले की राशि के समान काले और गिरिराज के समान उंचे शरीरवाले वे हाथी पृथ्वीपर गिरकर इधर-उधर बिखरे हुए पर्वतों के समान शोभा पाते थे। महाधनुर्धर युधिष्ठिर ने विशाल सेना से सुरक्षित मद्रराज शल्य को उस युद्ध में सामने पाकर बाणों द्वारा अत्यन्त पीड़ितकर दिया। भीष्म की रक्षा के लिये पराक्रम करने वाले मद्रराज शल्य ने भी युद्ध में कुपित हो महारथी धर्मराज युधिष्ठिर को पीड़ितकिया। सिन्धुराज जयद्रथ ने झुकी हुई गांठवाले नौ तीखे सायकों द्वारा राजा विराट को घायल करके पुनः उन्हें तीस बाण मारे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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