"महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 77-92": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('==नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व== <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति ३: पंक्ति ३:


तदनन्तर कर्ण (सावधान होकर) शत्रुओं पर बहुत-से बाणसमूहों की वर्षा करने लगा। उस समय जैसे अस्ताचल की ओर जाते हुए सूर्यमण्डल और उसकी किरणें लाल हो जाती हैं, उसी प्रकार खून से लाल हुआ वह शरसमूहरूपी किरणों से सुशोभित हो रहा था। कर्ण की भुजाओं से छूटकर बडे़-बडे़ सर्पो के समान प्रकाशित होनेवाले बाणों को अर्जुन के हाथों से छूटे हुए तीखे बाणों ने सम्पूर्ण दिशाओं में फैलकर नष्ट कर दिया। तदनन्तर कर्ण धैर्य धारण करके कुपित सर्पों के समान भयंकर बाण छोड़ने लगा। उसने क्रोध में भरे हुए भुजंगमों के सदृश दस बाणों से अर्जुन को और छः से श्रीकृष्ण को भी घायल कर दिया। तब परम बुद्धिमान् किरीटधारी अर्जुन ने उस महासमर में कर्ण पर भयानक शब्द करने वाले, सर्पविष और अग्नि के समान तेजस्वी लोहनिर्मित तथा महारौद्रास्त्र अभिमंत्रित विशाल बाण छोड़ने का विचार किया। नरेश्वर ! उस समय काल अदृश्य रहकर ब्राह्माण के क्रोध से कर्ण के वध की सूचना देता हुआ उसकी मृत्यु का समय उपस्थित होने पर इस प्रकार बोला- अब भूमि तुम्हारे पहिये को निगलना ही चाहती है। नरवीर ! अब कर्ण के वध का समय आ पहुँचा था। महात्मा परशुराम ने कर्ण को जो भार्गवास्त्र प्रदान किया था, वह उस समय उसके मन से निकल गया- उसे उसकी याद न रह सकी। साथ ही, पृथ्वी उसके रथ के बायें पहिये को निगलने लगी।<br />
तदनन्तर कर्ण (सावधान होकर) शत्रुओं पर बहुत-से बाणसमूहों की वर्षा करने लगा। उस समय जैसे अस्ताचल की ओर जाते हुए सूर्यमण्डल और उसकी किरणें लाल हो जाती हैं, उसी प्रकार खून से लाल हुआ वह शरसमूहरूपी किरणों से सुशोभित हो रहा था। कर्ण की भुजाओं से छूटकर बडे़-बडे़ सर्पो के समान प्रकाशित होनेवाले बाणों को अर्जुन के हाथों से छूटे हुए तीखे बाणों ने सम्पूर्ण दिशाओं में फैलकर नष्ट कर दिया। तदनन्तर कर्ण धैर्य धारण करके कुपित सर्पों के समान भयंकर बाण छोड़ने लगा। उसने क्रोध में भरे हुए भुजंगमों के सदृश दस बाणों से अर्जुन को और छः से श्रीकृष्ण को भी घायल कर दिया। तब परम बुद्धिमान् किरीटधारी अर्जुन ने उस महासमर में कर्ण पर भयानक शब्द करने वाले, सर्पविष और अग्नि के समान तेजस्वी लोहनिर्मित तथा महारौद्रास्त्र अभिमंत्रित विशाल बाण छोड़ने का विचार किया। नरेश्वर ! उस समय काल अदृश्य रहकर ब्राह्माण के क्रोध से कर्ण के वध की सूचना देता हुआ उसकी मृत्यु का समय उपस्थित होने पर इस प्रकार बोला- अब भूमि तुम्हारे पहिये को निगलना ही चाहती है। नरवीर ! अब कर्ण के वध का समय आ पहुँचा था। महात्मा परशुराम ने कर्ण को जो भार्गवास्त्र प्रदान किया था, वह उस समय उसके मन से निकल गया- उसे उसकी याद न रह सकी। साथ ही, पृथ्वी उसके रथ के बायें पहिये को निगलने लगी।<br />
नरेन्द्र ! श्रेष्ठ ब्राह्माण शाप से उस समय उसका रथ डगमगाने लगा और उसका पहिया पृथ्वी में धँस गया। यह देख सूतपुत्र कर्ण समरांगण में व्याकुल हो उठा। जैसे सुन्दर पुष्पों से युक्त विशाल चैत्यवृक्ष वेदीसहित पृथ्वी धँस जाय, वही दशा उस रथ की भी हुई। ब्राह्माण के शाप से जब रथ डगमग करने लगा, परशुरामजी से प्राप्त हुआ अस्त्र भूल गया और घोर सर्पमुख बाण अर्जुन के द्वारा काट डाला गया, तब उस अवस्था में उन संकटों को सहन न कर सकने के कारण कर्ण खिन्न हो उठा और दोनों हाथ हिला-हिलाकर धर्म की निंदा करने लगा। धर्मज्ञ पुरूषों ने सदा ही यह बात कही है कि धर्म परायण पुरूष की धर्म सदा रक्षा करता है। हम अपनी शक्ति और ज्ञान के अनुसार सदा धर्मपालन के लिये प्रयत्न करते रहते हैं, किंतु वह भी हमें मारता ही है, भक्तों की रक्षा नहीं करता; अतः में समझता हूँ, धर्म सदा किसी की रक्षा नहीं करता है। ऐसा कहता हुआ कर्ण अर्जुन के बाणों की मार से विचलित हो उठा, उसके घोडे़ और सारथि लड़खड़ाकर गिरने लगे और मर्म पर आघात होने से वह कार्य करने में शिथिल हो गया, तब बारंबार धर्म की निंदा करने लगा। तदनन्तर उसने तीन भयानक बाणों द्वारा युद्धस्थल में श्रीकृष्ण के हाथ में चोट पहुँचायी और अर्जुन को भी सात बाणों से बींध डाला। तत्पश्चात् अर्जुन ने इन्द्र के वज्र तथा अग्नि के समान प्रचण्ड वेगशाली सत्रह घोर बाण कर्ण पर छोडे़। वे भयानक वेगशाली बाण कर्ण को घायल करके पृथ्वी पर गिर पडे़। इससे कर्ण काँप उठा। फिर भी यथाशक्ति युद्ध की चेष्टा दिखाता रहा। उसने बलपूर्वक धैर्य धारण करके ब्रह्मास्‍त्र प्रकट किया। यह देख अर्जुन ने भी ऐन्दास्त्र को अभिमंत्रित किया। शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन ने गाण्डीव धनुष, प्रत्यंचा और बाणों को भी अभिमंत्रित करके वहाँ शरसमूहों की उसी प्रकार वर्षा आरम्भ कर दी, जैसे इन्द्र जल की वृष्टि करते हैं।
नरेन्द्र ! श्रेष्ठ ब्राह्माण शाप से उस समय उसका रथ डगमगाने लगा और उसका पहिया पृथ्वी में धँस गया। यह देख सूतपुत्र कर्ण समरांगण में व्याकुल हो उठा। जैसे सुन्दर पुष्पों से युक्त विशाल चैत्यवृक्ष वेदीसहित पृथ्वी धँस जाय, वही दशा उस रथ की भी हुई। ब्राह्माण के शाप से जब रथ डगमग करने लगा, परशुरामजी से प्राप्त हुआ अस्त्र भूल गया और घोर सर्पमुख बाण अर्जुन के द्वारा काट डाला गया, तब उस अवस्था में उन संकटों को सहन न कर सकने के कारण कर्ण खिन्न हो उठा और दोनों हाथ हिला-हिलाकर धर्म की निंदा करने लगा। धर्मज्ञ पुरूषों ने सदा ही यह बात कही है कि धर्म परायण पुरूष की धर्म सदा रक्षा करता है। हम अपनी शक्ति और ज्ञान के अनुसार सदा धर्मपालन के लिये प्रयत्न करते रहते हैं, किंतु वह भी हमें मारता ही है, भक्तों की रक्षा नहीं करता; अतः में समझता हूँ, धर्म सदा किसी की रक्षा नहीं करता है। ऐसा कहता हुआ कर्ण अर्जुन के बाणों की मार से विचलित हो उठा, उसके घोडे़ और सारथि लड़खड़ाकर गिरने लगे और मर्म पर आघात होने से वह कार्य करने में शिथिल हो गया, तब बारंबार धर्म की निंदा करने लगा। तदनन्तर उसने तीन भयानक बाणों द्वारा युद्धस्थल में श्रीकृष्ण के हाथ में चोट पहुँचायी और अर्जुन को भी सात बाणों से बींध डाला। तत्पश्चात् अर्जुन ने इन्द्र के वज्र तथा अग्नि के समान प्रचण्ड वेगशाली सत्रह घोर बाण कर्ण पर छोडे़। वे भयानक वेगशाली बाण कर्ण को घायल करके पृथ्वी पर गिर पडे़। इससे कर्ण काँप उठा। फिर भी यथाशक्ति युद्ध की चेष्टा दिखाता रहा। उसने बलपूर्वक धैर्य धारण करके ब्रह्मास्‍त्र प्रकट किया। यह देख अर्जुन ने भी ऐन्दास्त्र को अभिमंत्रित किया। शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन ने गाण्डीव धनुष, प्रत्यंचा और बाणों को भी अभिमंत्रित करके वहाँ शरसमूहों की उसी प्रकार वर्षा आरम्भ कर दी, जैसे इन्द्र जल की वृष्टि करते हैं।


{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 64-76|अगला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 93-110}}   
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 64-76|अगला=महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 90 श्लोक 93-110}}   

१२:३४, १७ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण

नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 77-92 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर कर्ण (सावधान होकर) शत्रुओं पर बहुत-से बाणसमूहों की वर्षा करने लगा। उस समय जैसे अस्ताचल की ओर जाते हुए सूर्यमण्डल और उसकी किरणें लाल हो जाती हैं, उसी प्रकार खून से लाल हुआ वह शरसमूहरूपी किरणों से सुशोभित हो रहा था। कर्ण की भुजाओं से छूटकर बडे़-बडे़ सर्पो के समान प्रकाशित होनेवाले बाणों को अर्जुन के हाथों से छूटे हुए तीखे बाणों ने सम्पूर्ण दिशाओं में फैलकर नष्ट कर दिया। तदनन्तर कर्ण धैर्य धारण करके कुपित सर्पों के समान भयंकर बाण छोड़ने लगा। उसने क्रोध में भरे हुए भुजंगमों के सदृश दस बाणों से अर्जुन को और छः से श्रीकृष्ण को भी घायल कर दिया। तब परम बुद्धिमान् किरीटधारी अर्जुन ने उस महासमर में कर्ण पर भयानक शब्द करने वाले, सर्पविष और अग्नि के समान तेजस्वी लोहनिर्मित तथा महारौद्रास्त्र अभिमंत्रित विशाल बाण छोड़ने का विचार किया। नरेश्वर ! उस समय काल अदृश्य रहकर ब्राह्माण के क्रोध से कर्ण के वध की सूचना देता हुआ उसकी मृत्यु का समय उपस्थित होने पर इस प्रकार बोला- अब भूमि तुम्हारे पहिये को निगलना ही चाहती है। नरवीर ! अब कर्ण के वध का समय आ पहुँचा था। महात्मा परशुराम ने कर्ण को जो भार्गवास्त्र प्रदान किया था, वह उस समय उसके मन से निकल गया- उसे उसकी याद न रह सकी। साथ ही, पृथ्वी उसके रथ के बायें पहिये को निगलने लगी।
नरेन्द्र ! श्रेष्ठ ब्राह्माण शाप से उस समय उसका रथ डगमगाने लगा और उसका पहिया पृथ्वी में धँस गया। यह देख सूतपुत्र कर्ण समरांगण में व्याकुल हो उठा। जैसे सुन्दर पुष्पों से युक्त विशाल चैत्यवृक्ष वेदीसहित पृथ्वी धँस जाय, वही दशा उस रथ की भी हुई। ब्राह्माण के शाप से जब रथ डगमग करने लगा, परशुरामजी से प्राप्त हुआ अस्त्र भूल गया और घोर सर्पमुख बाण अर्जुन के द्वारा काट डाला गया, तब उस अवस्था में उन संकटों को सहन न कर सकने के कारण कर्ण खिन्न हो उठा और दोनों हाथ हिला-हिलाकर धर्म की निंदा करने लगा। धर्मज्ञ पुरूषों ने सदा ही यह बात कही है कि धर्म परायण पुरूष की धर्म सदा रक्षा करता है। हम अपनी शक्ति और ज्ञान के अनुसार सदा धर्मपालन के लिये प्रयत्न करते रहते हैं, किंतु वह भी हमें मारता ही है, भक्तों की रक्षा नहीं करता; अतः में समझता हूँ, धर्म सदा किसी की रक्षा नहीं करता है। ऐसा कहता हुआ कर्ण अर्जुन के बाणों की मार से विचलित हो उठा, उसके घोडे़ और सारथि लड़खड़ाकर गिरने लगे और मर्म पर आघात होने से वह कार्य करने में शिथिल हो गया, तब बारंबार धर्म की निंदा करने लगा। तदनन्तर उसने तीन भयानक बाणों द्वारा युद्धस्थल में श्रीकृष्ण के हाथ में चोट पहुँचायी और अर्जुन को भी सात बाणों से बींध डाला। तत्पश्चात् अर्जुन ने इन्द्र के वज्र तथा अग्नि के समान प्रचण्ड वेगशाली सत्रह घोर बाण कर्ण पर छोडे़। वे भयानक वेगशाली बाण कर्ण को घायल करके पृथ्वी पर गिर पडे़। इससे कर्ण काँप उठा। फिर भी यथाशक्ति युद्ध की चेष्टा दिखाता रहा। उसने बलपूर्वक धैर्य धारण करके ब्रह्मास्‍त्र प्रकट किया। यह देख अर्जुन ने भी ऐन्दास्त्र को अभिमंत्रित किया। शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन ने गाण्डीव धनुष, प्रत्यंचा और बाणों को भी अभिमंत्रित करके वहाँ शरसमूहों की उसी प्रकार वर्षा आरम्भ कर दी, जैसे इन्द्र जल की वृष्टि करते हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।