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| '''अरिस्तोफ़ानिज़''' 1. (ल.ई.पू. 540 से ई.पू. 385) यूनानी प्रहसनकार। इसके पिता का नाम फ़िलिप्पस् और माता का ज़ेनोदोरा था तथा इसकी कुछ स्थावर संपत्ति इगिना में भी थी, जिसके कारण इसके मूल एथेंस निवासी होने में संदेह किया गया है। अरिस्तोफ़ानिज़ ने 18 वर्ष की आयु से ही नाटकरचना आरंभ कर दी थी। आरंभिक नाटकों में उसने अपना नाम नहीं दिया था। कहते हैं, इसने 54 नाटक लिखे थे जिनमें से इस समय केवल 11 मिलते हैं। लगभग मार्च मास में दियोनीसस् की रंगस्थली में एथेंस में जो नाट्य प्रतियोगिताएँ हुआ करती थीं उनमें अरिस्तोफ़ानिज़ को चार प्रथम, तीन द्वितीय तथा एक तृतीय पुरस्कार भिन्न-भिन्न अवसरों पर प्राप्त हुए थे। अपने प्रहसनों में अरिस्तोफ़ानिज़ ने एथेंस के बड़े से बड़े नेताओं की हँसी उड़ाई है अतएव उसको एक नेता क्लिओन् का कोपभाजन बनना पड़ा, पर अपने स्वतंत्र स्वभाव को उसने नहीं छोड़ा। सुकरात और यूरीपीदिस जैसे दार्शनिकों और नाटककारों को भी उसके परिहास का पात्र बनना पड़ा, तथापि उसके चित्त में किसी प्रकार की दुर्भावना नहीं थी। इसी कारण सुकरात का अनन्य भक्त अफ़लातून (प्लातोन्) अरस्तोिफ़ानिज़ से प्रेम करता था। | | '''अरिस्तोफ़ानिज़''' - (बीज़ांतियम्) ई.पू. 195 के आसपास सिकंदरिया के सुविख्यात पुस्तकालय का प्रधान अध्यक्ष। इस प्रकांड विद्वान् ने प्राय: सभी प्रमुख ग्रीक कवियों, नाटककारों और दार्शनिकों के ग्रंथों का संपादन किया था। कोशकार एवं वैयाकरण के रूप में भी इसकी विशेष ख्याति है। कुछ लोगों के मत में इसने ग्रीक भाषा के स्वरों (ऐक्सेंट्स) का आविष्कार किया था पर अन्य लोगों के मत में यह केवल उनका सुव्यवस्थापक था। प्राणिशास्त्र पर भी इसने पुस्तक लिखी थी। इसका जीवनकाल ई.पू. 257 से 180 तक माना जाता है।<ref>सं.ग्रं.-जे.ई. सैंडीज़ : ए हिस्ट्री ऑव क्लासिकल स्कॉलर्शिप, 3 जिल्द, 1908।</ref> |
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| यूनान के प्रहसनात्मक नाटकों का इतिहास तीन युगों में विभक्त है जो प्राचीन प्रहसन, मध्य प्रहसन और नवीन प्रहसन के युग कहलाते हैं। प्राचीन प्रहसन युग और मध्य प्रहसन युग के प्रहसनों में से केवल अरिस्तोफ़ानिज़ के प्रहसन ही आजकल मिलते हैं। उसके आजकल मिलनेवाले नाटकों के नाम और परिचय निम्नलिखित हैं। अकानस् (ई.पू. 425 में प्रस्तुत) जिसमें एथेंस के युद्धसमर्थक दल और सेनानायकों का परिहास किया गया था। इसपर प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था। हिप्पेस् (शूर सामंत) की रचना लगभग 424 ई.पू. में हुई और इसमें कवि ने क्लिओन तथा उस समय के जनतंत्र पर कटु आक्रमण किया। इसपर लेखक को प्रथम पुरस्कार और क्लिओन का कोप प्राप्त हुआ। नैफ़ैलाइ (मेघ) का समय ई.पू. 423 है। इसमें सुकरात की हँसी उड़ाई गई है। इसपर कवि को तृतीय पुरस्कार मिला था। स्फ़ेकैस् (बर्रे) लगभग ई.पू. 422 में दो पीढ़ियों के विचारभेद और न्यायालयों को परिहास का विषय बनाया गया है। एक दृश्य में दो कुत्तों को जूरी महोदय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। आईरीना (शांन्ति) ई.पू 421 प्रस्तुत किया गया था। इसमें युद्ध से व्यथित एक कृषक गुबरैले पर सवार होकर शांति की खोज में ओलिपस् की यात्रा करता है। इसपर कवि को तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। ओर्नीथैस् (चिड़ियां) का अभिनय ई.पू. 414 में हुआ था। इसमें दो महत्वाकांक्षी व्यक्ति चिड़ियों द्वारा अपने लिए आकाश में एक साम्राज्य स्थापना का प्रयत्न करते हैं। इस सुंदर कल्पना पर कवि को द्वितीय पुरस्कार मिला था। श्रीसिस्त्राता का समय ई.पू. 411 है। पैलोपीनीशिय युद्ध कुछ समय के लिए रुककर पुन: भड़क उठा था। अरिस्तोफ़ानिज़ इस युद्ध का विरोधी था। इस नाटक में स्त्रियों के द्वारा अपने पतियों को रत्यधिकार से वंचित करके शांति प्राप्त करने का वर्णन किया गया है। इसमें कवि के राजनीतिक विचारों की झलक मिलती है। थैस्मोफ़ोरियाज़ूसाई ई.पू. 411 में प्रस्तुत किया गया था। इसमें महाकवि यूरोपीदिज़ को प्रहसन का क्षय बनाया गया है। बात्रकोई (मांडूक) ई.पू 405 में प्रस्तुत किया गया था। यह प्रहसन के रूप में इस्किलस् और यूरीपीदिज़ की आलोचना है और अरिस्तोफ़ानिज़ की श्रेष्ठ रचना है। इसपर प्रथम पुरस्कार मिलना ही था। ऐक्लेसियाज़ूसाई (ई.पू. 391) संभवतया अंतिस्थैनेस् अथवा अफ़लातून के साम्यवाद (विशेषकर स्त्री पुरुषों की समानता के पाषक साम्यवाद) की आलोचना है। अपेक्षाकृत यह एक शिथिल प्रहसन है। अंतिम उपलब्ध रचना प्लूतस् का समय ई.पू. 388 है। इसमें परंपरा के प्रतिकूल धन के देवता को नेत्रवान् बनाया गया है जो सब सज्जनों को धनवान बना देता है।
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| अरिस्तोफ़ानिज का प्रहसन किसी को नहीं छोड़ता। उसकी भाषा नितांत उच्छृंखल है। नग्न अश्लीलता की भी उसकी रचनाओं में कमी नहीं है। पर गीतों में कोमलता और माधुर्य भी पर्याप्त है। जिस प्रकार के प्रहसन उसने लिखे हैं उसके पूर्व और पश्चात् दूसरा कोई वैसे प्रहसन नहीं लिख सका।<ref>सं.ग्रं.-ओट्स ऐंड नील: दि कंप्लीट ग्रीक ड्रामा, 2 जिल्द, रैंडम हाउस, न्यूयॉर्क, 1938; मरे: ए हिस्ट्री ऑव एन्शेंट ग्रीक लिटरेचर, 1937; नौर्वुड-राइटर्स ऑव ग्रीस, 1935; बाउरा: एन्शेंट ग्रीक लिटरेचर, 1945। </ref>
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१०:४१, १ जून २०१८ के समय का अवतरण
लेख सूचना
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अरिस्तोफ़ानिज़
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पुस्तक नाम
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हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
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पृष्ठ संख्या
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236
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भाषा
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हिन्दी देवनागरी
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संपादक
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सुधाकर पाण्डेय
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प्रकाशक
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नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
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मुद्रक
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नागरी मुद्रण वाराणसी
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संस्करण
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सन् 1964 ईसवी
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उपलब्ध
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भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
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कॉपीराइट सूचना
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नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
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लेख सम्पादक
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श्री भोलानाथ शर्मा
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अरिस्तोफ़ानिज़ - (बीज़ांतियम्) ई.पू. 195 के आसपास सिकंदरिया के सुविख्यात पुस्तकालय का प्रधान अध्यक्ष। इस प्रकांड विद्वान् ने प्राय: सभी प्रमुख ग्रीक कवियों, नाटककारों और दार्शनिकों के ग्रंथों का संपादन किया था। कोशकार एवं वैयाकरण के रूप में भी इसकी विशेष ख्याति है। कुछ लोगों के मत में इसने ग्रीक भाषा के स्वरों (ऐक्सेंट्स) का आविष्कार किया था पर अन्य लोगों के मत में यह केवल उनका सुव्यवस्थापक था। प्राणिशास्त्र पर भी इसने पुस्तक लिखी थी। इसका जीवनकाल ई.पू. 257 से 180 तक माना जाता है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-जे.ई. सैंडीज़ : ए हिस्ट्री ऑव क्लासिकल स्कॉलर्शिप, 3 जिल्द, 1908।