"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 209 भाग 1": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('==नवाधिकद्विशततम (29) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
==नवाधिकद्विशततम ( | ==नवाधिकद्विशततम (209) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)== | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: नवाधिकद्विशततम अध्याय: भाग 1 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: नवाधिकद्विशततम अध्याय: भाग 1 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
भगवान विष्णु का वराहरूप में प्रकट होकर देवताओं की रक्षा और दानवों का विनाश कर देना तथा नारद को अनुस्मृतिस्तोत्रका उपदेश और नारद द्वारा भगवान की स्तुति | |||
युधिष्ठिर ने पूछा – युद्ध में सच्चा पराक्रम प्रकट करनेवाले महाप्राज्ञ पितामह ! | युधिष्ठिर ने पूछा – युद्ध में सच्चा पराक्रम प्रकट करनेवाले महाप्राज्ञ पितामह ! भगवान श्रीकृष्ण अविनाशी ईश्वर हैं; मैं पूर्णरूप से इनके महत्व का वर्णन सुनना चाहता हूँ। पुरूषप्रवर ! इनका जो महान् तेज हैं, इन्होंने पूर्वकाल में जो महान् कर्म किया हैं, वह सब आप मुझे यथार्थरूप से बताइये। महाबली पितामह ! सम्पूर्ण जगत् के प्रभु होकर भी इन्होंने निमित्त से तिर्यग्योनि में जन्म ग्रहण किया; यह मुझे बताइये। भीष्म जी ने कहा – राजन् ! पहले की बात है, मैं शिकार खेलने के लिये वन में गया और मार्कण्डेय मुनि के आश्रमपर ठहरा । वहाँ मैने सहस्त्रों मुनियों को बैठे देखा। मेरे जानेपर उन महर्षियों ने मधुपर्क समर्पित करके मेरा आतिथ्य सत्कार किया । मैने भी उनका सत्कार ग्रहण करके उन सभी महर्षियों का अभिनन्दन किया। फिर महर्षि कश्यप ने मन को आनन्द प्रदान करनेवाली यह दिव्य कथा मुझे सुनायी । मैं उसे कहता हूँ, तुम एकाग्रचित होकर सुनो। पूर्वकाल में नरकासुर आदि सैकड़ों मुख्य-मुख्य दानव क्रोध और लोभ के वशीभूत हो बल के मदसे मतवाले हो गये थे। इनके सिवा और बहुत से रणदुर्मद दानव थे, जो देवताओं की उत्तम समृद्धि को सहन नहीं कर पाते थे। राजन् ! उन दानवों से पीडि़त हो देवता और देवर्षि कही चैन नही पाते थे। वे इधर-उधर लुकते छिपते फिरते थे। समूचे भूमण्डल में भयानक रूपधारी महाबली दानव फैल गये थे । देवताओं ने देखा, यह पृथ्वी दानवोंके पापभार से पीडि़त एवं आर्त हो उठी है। यह भार से व्याकुल, हर्ष और उल्लास से शून्य तथा दुखी हो रसातलल में डूब रही है । यह देखकर अदिति के सभी पुत्र भय से थर्रा उठे और ब्रह्राजी से इस प्रकार बोले। ‘ब्रह्रान् ! दानवलोग जो हमें इस प्रकार रौंद रहे हैं, इसे हम किस प्रकार सह सकेंगे ? तब स्वयम्भू ब्रह्राने उनसे इस प्रकार कहा-‘देवताओं ! इस विपत्ति को दूर करने के लिये मैने उपाय कर दिया है। ‘वे दानव वर पाकर बल और अभिमान् से मत हो उठे हैं । वे मूढ़ दैत्य अव्यक्तस्वरूप भगवान विष्णु को नहीं जानते, जो देवताओं के लिये भी दुर्धर्ष हैं । उन्होंने वराह रूप धारण कर रखा है । ‘वे सहस्त्रों घोर दैत्य और दानवाधम भूमि के भीतर पाताललोक में निवास करते हैं; भगवान वाराह वेगपूर्वक वहीं जाकर उन सबका विनाश कर देगें । यह सुनकर सभी श्रेष्ठ देवता हर्ष से खिल उठे। उधर महातेजस्वी भगवान विष्णु वाराहरूप धारण कर बड़े वेग से भूमि के भीतर प्रविष्ट हुए और दैत्यों के पास जा पहॅुचे। उस अलौकिक जन्तु को देखकर सब दैत्य एक साथ हो वेगपूर्वक उसका सामना करनेके लिये हठात् खड़े हो गये; क्योंकि वे काल से मोहित हो रहे थे। उन सबने कुपित होकर भगवान वाराह पर एक साथ धावा बोल दिया और उन्हें हाथों हाथ पकड़ लिया । पकड़कर वे वाराहदेव को चारों ओर से खीचने लगे। प्रभो ! यद्यपि वे विशालकाय दानवराज महान् बल और वीर्य से सम्पन्न थे, तो भी उन भगवान का कुछ बिगाड़ न सके। | ||
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 208 श्लोक 24-36|अगला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 209 भाग 2}} | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 208 श्लोक 24-36|अगला=महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 209 भाग 2}} |
१२:०७, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
नवाधिकद्विशततम (209) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
भगवान विष्णु का वराहरूप में प्रकट होकर देवताओं की रक्षा और दानवों का विनाश कर देना तथा नारद को अनुस्मृतिस्तोत्रका उपदेश और नारद द्वारा भगवान की स्तुति
युधिष्ठिर ने पूछा – युद्ध में सच्चा पराक्रम प्रकट करनेवाले महाप्राज्ञ पितामह ! भगवान श्रीकृष्ण अविनाशी ईश्वर हैं; मैं पूर्णरूप से इनके महत्व का वर्णन सुनना चाहता हूँ। पुरूषप्रवर ! इनका जो महान् तेज हैं, इन्होंने पूर्वकाल में जो महान् कर्म किया हैं, वह सब आप मुझे यथार्थरूप से बताइये। महाबली पितामह ! सम्पूर्ण जगत् के प्रभु होकर भी इन्होंने निमित्त से तिर्यग्योनि में जन्म ग्रहण किया; यह मुझे बताइये। भीष्म जी ने कहा – राजन् ! पहले की बात है, मैं शिकार खेलने के लिये वन में गया और मार्कण्डेय मुनि के आश्रमपर ठहरा । वहाँ मैने सहस्त्रों मुनियों को बैठे देखा। मेरे जानेपर उन महर्षियों ने मधुपर्क समर्पित करके मेरा आतिथ्य सत्कार किया । मैने भी उनका सत्कार ग्रहण करके उन सभी महर्षियों का अभिनन्दन किया। फिर महर्षि कश्यप ने मन को आनन्द प्रदान करनेवाली यह दिव्य कथा मुझे सुनायी । मैं उसे कहता हूँ, तुम एकाग्रचित होकर सुनो। पूर्वकाल में नरकासुर आदि सैकड़ों मुख्य-मुख्य दानव क्रोध और लोभ के वशीभूत हो बल के मदसे मतवाले हो गये थे। इनके सिवा और बहुत से रणदुर्मद दानव थे, जो देवताओं की उत्तम समृद्धि को सहन नहीं कर पाते थे। राजन् ! उन दानवों से पीडि़त हो देवता और देवर्षि कही चैन नही पाते थे। वे इधर-उधर लुकते छिपते फिरते थे। समूचे भूमण्डल में भयानक रूपधारी महाबली दानव फैल गये थे । देवताओं ने देखा, यह पृथ्वी दानवोंके पापभार से पीडि़त एवं आर्त हो उठी है। यह भार से व्याकुल, हर्ष और उल्लास से शून्य तथा दुखी हो रसातलल में डूब रही है । यह देखकर अदिति के सभी पुत्र भय से थर्रा उठे और ब्रह्राजी से इस प्रकार बोले। ‘ब्रह्रान् ! दानवलोग जो हमें इस प्रकार रौंद रहे हैं, इसे हम किस प्रकार सह सकेंगे ? तब स्वयम्भू ब्रह्राने उनसे इस प्रकार कहा-‘देवताओं ! इस विपत्ति को दूर करने के लिये मैने उपाय कर दिया है। ‘वे दानव वर पाकर बल और अभिमान् से मत हो उठे हैं । वे मूढ़ दैत्य अव्यक्तस्वरूप भगवान विष्णु को नहीं जानते, जो देवताओं के लिये भी दुर्धर्ष हैं । उन्होंने वराह रूप धारण कर रखा है । ‘वे सहस्त्रों घोर दैत्य और दानवाधम भूमि के भीतर पाताललोक में निवास करते हैं; भगवान वाराह वेगपूर्वक वहीं जाकर उन सबका विनाश कर देगें । यह सुनकर सभी श्रेष्ठ देवता हर्ष से खिल उठे। उधर महातेजस्वी भगवान विष्णु वाराहरूप धारण कर बड़े वेग से भूमि के भीतर प्रविष्ट हुए और दैत्यों के पास जा पहॅुचे। उस अलौकिक जन्तु को देखकर सब दैत्य एक साथ हो वेगपूर्वक उसका सामना करनेके लिये हठात् खड़े हो गये; क्योंकि वे काल से मोहित हो रहे थे। उन सबने कुपित होकर भगवान वाराह पर एक साथ धावा बोल दिया और उन्हें हाथों हाथ पकड़ लिया । पकड़कर वे वाराहदेव को चारों ओर से खीचने लगे। प्रभो ! यद्यपि वे विशालकाय दानवराज महान् बल और वीर्य से सम्पन्न थे, तो भी उन भगवान का कुछ बिगाड़ न सके।
« पीछे | आगे » |