"महाभारत वन पर्व अध्याय 69 श्लोक 21-40": अवतरणों में अंतर

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==एकोनसप्ततितम (69) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)==
==एकोनसप्ततितम (69) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 21-20 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद</div>


‘मां ! यदि तुम मेरा कुछ भी प्रिय करना चाहती हो तो मेरे लिये शीघ्र किसी सवारी की व्यवस्था कर दो। मैं विदर्भदेश जाना चाहती हूं। ‘राजन् ! तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर दमयन्ती की मौसी ने प्रसन्नतापूर्वक अपने पुत्र की राय लेकर सुन्दरी दमयन्ती को पालकी पर बिठा कर विदा किया। उसकी रक्षा के लिये बहुत बड़ी सेना दी। भरतश्रेष्ठ ! राजमाता ने दमयन्ती के साथ खाने-पीने की तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों की इच्छी व्यवस्था कर दी। तदनन्तर वहां से विदा हो वह थोड़े दिनों में विदर्भदेश की राजधानी में जा पहुंची। उसके आगमन से माता-पिता आदि सभी बन्धु-बान्धव बडे़ प्रसन्न हुए और सबने उसका स्वागत किया। राजन् ! समस्त बन्धु-बान्धवों, दोनों बच्चों, माता-पिता और सम्पूर्ण सखियों को सकुशल देखकर यशस्विनी देवी दमयन्ती ने उत्तम विधि के साथ देवताओं और ब्राह्मणों का पूजन किया। राजा भीम अपनी पुत्री को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए । उन्होंने एक हजार गौ, एक गांव तथा धन देकर सुदेव ब्राह्मण को संतुष्ट किया। युधिष्ठिर ! भाविनी दमयन्ती ने उस रात में पिता के घर में विश्राम किया। सबेरा होने पर उसने माता से कहा- दमयन्ती बोली -मां ! यदि मुझे जीवित देखना चाहती हो तो मैं तुमसे सच कहती हूं, नरवीर महाराज नल की खोज कराने का पुनः प्रयत्न करो’। दमयन्ती के ऐसा कहने पर महारानी की आंखें आंसुओं से भर आयीं। वे अत्यन्त दुखी हो गयीं और तत्काल उसे कोई उत्तर न दे सकीं। तब महारानी की यह दशनीय अवस्था देख उस समय सारे अन्तःपुर में हाहाकार मच गया। सब -के-सब फूट-फूटकर रोने लगे। तदनन्तर महाराज भीम से उनकी पत्नी ने कहा-‘प्राणनाथ ! आपकी पुत्री दमयन्ती अपने पति के लिये निरन्तर शोक में डूबी रहती है। ‘नरेश्रष्ठ ! उसने लाज छोड़कर स्वयं अपने मुंह से कहा है, अतः आपके सेवक पुण्यश्लोक महाराज नल का पता लगाने का प्रयत्न करें’। महारानी प्रेरित हो राजा भीमने अपने अधीनस्थ ब्राह्मण को यह कहकर सब दिशाओं में भेजा कि ‘आपलोग नल को ढूंढ़ने की चेष्टा करें’।
‘मां ! यदि तुम मेरा कुछ भी प्रिय करना चाहती हो तो मेरे लिये शीघ्र किसी सवारी की व्यवस्था कर दो। मैं विदर्भदेश जाना चाहती हूं। ‘राजन् ! तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर दमयन्ती की मौसी ने प्रसन्नतापूर्वक अपने पुत्र की राय लेकर सुन्दरी दमयन्ती को पालकी पर बिठा कर विदा किया। उसकी रक्षा के लिये बहुत बड़ी सेना दी। भरतश्रेष्ठ ! राजमाता ने दमयन्ती के साथ खाने-पीने की तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों की इच्छी व्यवस्था कर दी। तदनन्तर वहां से विदा हो वह थोड़े दिनों में विदर्भदेश की राजधानी में जा पहुंची। उसके आगमन से माता-पिता आदि सभी बन्धु-बान्धव बडे़ प्रसन्न हुए और सबने उसका स्वागत किया। राजन् ! समस्त बन्धु-बान्धवों, दोनों बच्चों, माता-पिता और सम्पूर्ण सखियों को सकुशल देखकर यशस्विनी देवी दमयन्ती ने उत्तम विधि के साथ देवताओं और ब्राह्मणों का पूजन किया। राजा भीम अपनी पुत्री को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए । उन्होंने एक हजार गौ, एक गांव तथा धन देकर सुदेव ब्राह्मण को संतुष्ट किया। युधिष्ठिर ! भाविनी दमयन्ती ने उस रात में पिता के घर में विश्राम किया। सबेरा होने पर उसने माता से कहा- दमयन्ती बोली -मां ! यदि मुझे जीवित देखना चाहती हो तो मैं तुमसे सच कहती हूं, नरवीर महाराज नल की खोज कराने का पुनः प्रयत्न करो’। दमयन्ती के ऐसा कहने पर महारानी की आंखें आंसुओं से भर आयीं। वे अत्यन्त दुखी हो गयीं और तत्काल उसे कोई उत्तर न दे सकीं। तब महारानी की यह दशनीय अवस्था देख उस समय सारे अन्तःपुर में हाहाकार मच गया। सब -के-सब फूट-फूटकर रोने लगे। तदनन्तर महाराज भीम से उनकी पत्नी ने कहा-‘प्राणनाथ ! आपकी पुत्री दमयन्ती अपने पति के लिये निरन्तर शोक में डूबी रहती है। ‘नरेश्रष्ठ ! उसने लाज छोड़कर स्वयं अपने मुंह से कहा है, अतः आपके सेवक पुण्यश्लोक महाराज नल का पता लगाने का प्रयत्न करें’। महारानी प्रेरित हो राजा भीमने अपने अधीनस्थ ब्राह्मण को यह कहकर सब दिशाओं में भेजा कि ‘आपलोग नल को ढूंढ़ने की चेष्टा करें’।
तत्पश्चात् विदर्भनरेश की आज्ञा से ब्राह्मण लोग प्रस्थित हो दमयन्ती के पास जाकर बोले-‘राजकुमारी ! हम सब नल का पता लगाने जा रहे हैं (क्या आप को कुछ कहना है ?)’ । तब भीकुमारी ने उन ब्राह्मणों से कहा-‘सब राष्ट्रों में घूम-घूमकर जनसमुदायक में आपलोग बार-बार मेरी यह बात बोलें- ‘ओ जुआरी प्रियतम ! तुम वन में सोयी हुई और अपने पति में अनुराग रखनेवाली मुझ प्यारी पत्नी को छोड़कर तथा मेरे आधे वस्त्र को फाड़कर कहां चले दिये ? ‘उसे तुमने जिस अवस्था में देखा था, उसी अवस्था में वह आज भी है और तुम्हारे आगमन की प्रतिक्षा कर रही है। आधे वस्त्र से अपने शरीर को ढंककर वह युवती तुम्हारी विराहग्नि में निरन्तर जल रही है।‘वीर भूमिपाल ! सदा तुम्हारे शोक से रोती हुई अपनी उस प्यारी पत्नी पर पुनः कृपा करो और मुझे मेरी बात का उत्तर दो’। ‘ब्राह्मणों ! यह तथा और भी बहुत-सी ऐसी बातें आप कहें, जिससे वे मुझपर कृपा करें । वायु की सहायता से प्रज्वलित आग सारे वन को जला डालती है (उसी प्रकार विरह की व्याकुलता मुझे जला रही है)।  
तत्पश्चात् विदर्भनरेश की आज्ञा से ब्राह्मण लोग प्रस्थित हो दमयन्ती के पास जाकर बोले-‘राजकुमारी ! हम सब नल का पता लगाने जा रहे हैं (क्या आप को कुछ कहना है ?)’ । तब भीकुमारी ने उन ब्राह्मणों से कहा-‘सब राष्ट्रों में घूम-घूमकर जनसमुदायक में आपलोग बार-बार मेरी यह बात बोलें- ‘ओ जुआरी प्रियतम ! तुम वन में सोयी हुई और अपने पति में अनुराग रखनेवाली मुझ प्यारी पत्नी को छोड़कर तथा मेरे आधे वस्त्र को फाड़कर कहां चले दिये ? ‘उसे तुमने जिस अवस्था में देखा था, उसी अवस्था में वह आज भी है और तुम्हारे आगमन की प्रतिक्षा कर रही है। आधे वस्त्र से अपने शरीर को ढंककर वह युवती तुम्हारी विराहग्नि में निरन्तर जल रही है।‘वीर भूमिपाल ! सदा तुम्हारे शोक से रोती हुई अपनी उस प्यारी पत्नी पर पुनः कृपा करो और मुझे मेरी बात का उत्तर दो’। ‘ब्राह्मणों ! यह तथा और भी बहुत-सी ऐसी बातें आप कहें, जिससे वे मुझपर कृपा करें । वायु की सहायता से प्रज्वलित आग सारे वन को जला डालती है (उसी प्रकार विरह की व्याकुलता मुझे जला रही है)।  


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०६:२४, १५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

एकोनसप्ततितम (69) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: एकोनसप्ततितम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

‘मां ! यदि तुम मेरा कुछ भी प्रिय करना चाहती हो तो मेरे लिये शीघ्र किसी सवारी की व्यवस्था कर दो। मैं विदर्भदेश जाना चाहती हूं। ‘राजन् ! तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर दमयन्ती की मौसी ने प्रसन्नतापूर्वक अपने पुत्र की राय लेकर सुन्दरी दमयन्ती को पालकी पर बिठा कर विदा किया। उसकी रक्षा के लिये बहुत बड़ी सेना दी। भरतश्रेष्ठ ! राजमाता ने दमयन्ती के साथ खाने-पीने की तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों की इच्छी व्यवस्था कर दी। तदनन्तर वहां से विदा हो वह थोड़े दिनों में विदर्भदेश की राजधानी में जा पहुंची। उसके आगमन से माता-पिता आदि सभी बन्धु-बान्धव बडे़ प्रसन्न हुए और सबने उसका स्वागत किया। राजन् ! समस्त बन्धु-बान्धवों, दोनों बच्चों, माता-पिता और सम्पूर्ण सखियों को सकुशल देखकर यशस्विनी देवी दमयन्ती ने उत्तम विधि के साथ देवताओं और ब्राह्मणों का पूजन किया। राजा भीम अपनी पुत्री को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए । उन्होंने एक हजार गौ, एक गांव तथा धन देकर सुदेव ब्राह्मण को संतुष्ट किया। युधिष्ठिर ! भाविनी दमयन्ती ने उस रात में पिता के घर में विश्राम किया। सबेरा होने पर उसने माता से कहा- दमयन्ती बोली -मां ! यदि मुझे जीवित देखना चाहती हो तो मैं तुमसे सच कहती हूं, नरवीर महाराज नल की खोज कराने का पुनः प्रयत्न करो’। दमयन्ती के ऐसा कहने पर महारानी की आंखें आंसुओं से भर आयीं। वे अत्यन्त दुखी हो गयीं और तत्काल उसे कोई उत्तर न दे सकीं। तब महारानी की यह दशनीय अवस्था देख उस समय सारे अन्तःपुर में हाहाकार मच गया। सब -के-सब फूट-फूटकर रोने लगे। तदनन्तर महाराज भीम से उनकी पत्नी ने कहा-‘प्राणनाथ ! आपकी पुत्री दमयन्ती अपने पति के लिये निरन्तर शोक में डूबी रहती है। ‘नरेश्रष्ठ ! उसने लाज छोड़कर स्वयं अपने मुंह से कहा है, अतः आपके सेवक पुण्यश्लोक महाराज नल का पता लगाने का प्रयत्न करें’। महारानी प्रेरित हो राजा भीमने अपने अधीनस्थ ब्राह्मण को यह कहकर सब दिशाओं में भेजा कि ‘आपलोग नल को ढूंढ़ने की चेष्टा करें’। तत्पश्चात् विदर्भनरेश की आज्ञा से ब्राह्मण लोग प्रस्थित हो दमयन्ती के पास जाकर बोले-‘राजकुमारी ! हम सब नल का पता लगाने जा रहे हैं (क्या आप को कुछ कहना है ?)’ । तब भीकुमारी ने उन ब्राह्मणों से कहा-‘सब राष्ट्रों में घूम-घूमकर जनसमुदायक में आपलोग बार-बार मेरी यह बात बोलें- ‘ओ जुआरी प्रियतम ! तुम वन में सोयी हुई और अपने पति में अनुराग रखनेवाली मुझ प्यारी पत्नी को छोड़कर तथा मेरे आधे वस्त्र को फाड़कर कहां चले दिये ? ‘उसे तुमने जिस अवस्था में देखा था, उसी अवस्था में वह आज भी है और तुम्हारे आगमन की प्रतिक्षा कर रही है। आधे वस्त्र से अपने शरीर को ढंककर वह युवती तुम्हारी विराहग्नि में निरन्तर जल रही है।‘वीर भूमिपाल ! सदा तुम्हारे शोक से रोती हुई अपनी उस प्यारी पत्नी पर पुनः कृपा करो और मुझे मेरी बात का उत्तर दो’। ‘ब्राह्मणों ! यह तथा और भी बहुत-सी ऐसी बातें आप कहें, जिससे वे मुझपर कृपा करें । वायु की सहायता से प्रज्वलित आग सारे वन को जला डालती है (उसी प्रकार विरह की व्याकुलता मुझे जला रही है)।


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