"भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 71": अवतरणों में अंतर
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१०:५९, २२ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण
अर्जुन की दुविधा और विषाद
24.एवमुक्ता हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तम्।।
हे भारत (धृतराष्ट्र), गुडाकेश (अर्जुन) के ऐसा कहने पर हषीकेश (कृष्ण) ने उस श्रेष्ठ रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाकर खड़ा कर दिया।
25.भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् ।
डवाच पार्थ पश्येतान्समवेतान्कुरूनिति ।।
उसने भीष्म, द्रोण और सब राजाओं के सम्मुख खड़े होकर कहा: हे पार्थ (अर्जुन), इन सब इकट्ठे खड़े हुए कुरुओं को देखो।
26.तत्रापश्यत् स्थितान्पार्थः पितृनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्सखींस्तथा।।
वहाँ अर्जुन ने देखा कि उसके पिता, दादा, गुरु, मामा, भाई, पुत्र और पौत्र तथा मित्र भी खडे़ हुए थे।
27.श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।।
और उन दोनों सेनाओं में श्वसुर और मित्र भी खडे़ थे। जब कुन्ती के पुत्र अर्जुन ने इन सब इष्ट-बन्धुओं को इस प्रकार खडे़ देखा तो,
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