"महाभारत सभा पर्व अध्याय 22 भाग-5": अवतरणों में अंतर
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द्वाविंश (22) अध्याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)
राजा के सताये हुए गोपगण भय तथा कामना से झुंड-के-झुंड एकत्र हो कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण को घेरकर संगठित होने लगे ।। राजन् ! इस प्रकार बल का संग्रह करके महाबली वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने उग्रसेन की सम्मति के अनुसार समस्त भाइयों सहित भोजराज कंस को मारकर पुनः उग्रसेन को ही मथुरा के राज्य पर अभिषिक्त कर दिया ।। राजन् ! जरासंध ने जब यह सुना कि श्रीकृष्ण ने कंस को युद्ध में मार डाला है, तब उसने कंस के पुत्र को शूरसेन देश का राजा बनाया ।। जनमेजय ! उसने बड़ी भारी सेना लेकर आक्रमण किया और वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण को हराकर अपनी पुत्री के पुत्र को वहाँ राज्य पर अभिषिक्त कर दिया। जनमेजय ! प्रतापी जरासंध महान् बल और सैनिक शक्ति से सम्पन्न था । वह उग्रसेन तथा वृष्णिवंश को सदा क्लेश पहुँचाया करता था । कुरूनन्दन ! जरासंध और श्रीकृष्ण के वैर का यही वृत्तान्त है। राजेन्द्र ! समृद्धिशाली जरासंध कृत्तिवासा और व्यम्बक नामों से प्रसिद्ध देवश्रेष्ठ महादेवजी को भूमण्डल के राजाओं की बलि देकर उनका यजन करना चाहता था और इसी मनोवांछित प्रयोजन की सिद्धि के लिये उसने अपने जीते हुए समस्त राजाओं को कैद में डाल रखा था। भरत श्रेष्ठ! यह सब वृत्तान्त तुम्हें यथावत् बताया गया। अब जिस प्रकार भीमसेन ने राजा जरासंध का वध किया वह प्रसंग सुनो।
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