"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 186 श्लोक 19-40": अवतरणों में अंतर

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==षडशीत्यधिकशततम (186) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )==
==षडशीत्यधिकशततम (186) अध्याय: द्रोणपर्व (द्रोणवध पर्व )==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: षडशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-40 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: षडशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-40 का हिन्दी अनुवाद</div>



०५:२९, ८ जुलाई २०१५ का अवतरण

षडशीत्यधिकशततम (186) अध्याय: द्रोणपर्व (द्रोणवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षडशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-40 का हिन्दी अनुवाद

राजन्! वे शत्रुसैनिक तथा हम लोग आपस में कोई किसी को पहचान नहीं पाते थे। इसलिये नाम बताने से ही राजा लोग एक दूसरे के साथ युद्ध करते थे। महाराज! रथी लोग रथहीन हो जाने पर परस्कर भिड़कर एक दूसरे के केश, कवच और बाँहें पकड़कर जूझने लगे। बहुत से रथी घोड़े और सारथि के मारे जाने पर भय से पीड़ित हो ऐसे निश्चेष्ट हो गये थे कि जीवित होते हुए भी वहाँ मरे के समान दिखायी देते थे। कितने ही घोड़े और घुड़सवार वमरे हुए वर्वताकार हाथियों से सटकर प्राणशून्य दिखायी देते थे। उधर द्रोणाचार्य उस युद्धस्थल से उत्तर दिशा की ओर जाकर धूमरहित अग्नि के समान प्रज्वलित होते हुए रणभूमि में खड़े हो गये। प्रजानाथ! उन्हें युद्ध के मुहाने से हटकर एक किनारे आया देख उधर खड़ी हुई पाण्डवों की सेनाएँ थर-थर काँपने लगीं। भारत! तेज से प्रज्वलित हुए से श्रीसम्पन्न द्रोणाचार्य को वहाँ प्रकाशित होते देख शत्रु सैनिक थर्रा उठे। कितने ही वहाँ से भाग चले और बहुतेरे मन उदास किये खड़े रहे।। जैसे दानव इन्द्र को नहीं जीत सकते, वैसे ही शत्रु सैनिक शत्रुसेना को ललकारते हुए मदस्त्रावी गजराज के समान द्रोणाचार्य को जीतने का साहस नहीं कर सके। कुछ योद्धा लड़ने का उत्साह खो बैठे, कुछ मनस्वी वीर रोष में भर गये, कितने ही योद्धा उनका पराक्रम देख आश्चर्यचकित हो उठे और कितने ही अमर्ष के वशीभूत हो गये। कोई-कोई नरेश हाथ से हाथ मलने लगे। कुछ क्रोध से आतुर हो दाँतों से ओठ चबाने लगे। कुछ लोग अपने आयुधों को उछालने और धनुष की प्रत्यञ्चा खींचने लगे। दूसरे योद्धा अपनी भुजाओं को मसलने लगे तथा अन्य बहुत से महातेजस्वी वीर अपने प्राणों का मोह छोड़कर द्रोणाचार्य पर टूट पड़े। राजेन्द्र! पाञ्चाल सैनिक द्रोणाचार्य के बाणों द्वारा विशेषरूप से पीडि़त हो अधिक वेदना सहते हुए भी समरभूमि में डटे रहे। इस प्रकार संग्राम में विचरते हुए रणदुर्जय द्रोणाचार्य पर राजा विराट और द्रुपद ने एक साथ चढ़ाई की।। प्रजानाथ! तदनन्तर राजा द्रुपद के तीनों ही पौत्रों तथा चेदिदेशीय महाधनुर्धर योद्धाओं ने भी युद्धस्थल में द्रोणाचार्य पर ही आक्रमण गिया। तब द्रोणाचार्य ने तीन तीखे बाणों का प्रहार करके द्रुपद के तीनों पौत्रों के प्राण हर लिये। वे तीनों मरकर पृथ्वी पर गिर पड़े। तत्पश्चात् भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य ने युद्ध में चेदि, केकय, सृंजय तथा मत्स्य देश के सम्पूर्ण महारथियों को परास्त कर दिया। महाराज! इसके बाद राजा द्रुपद और विराटने द्रोणाचार्य पर समरागंण में क्रोधपूर्वक बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। क्षत्रियमर्दन द्रोणाचार्य ने अपने बाणों द्वारा उस बाणवर्षा को नष्ट करके विराट और द्रुपद दोनों को ढक दिया।। द्रोणाचार्य के द्वारा आच्छादित किये जाने पर क्रोध में भरे हुए वे दोनों नरेश अत्यन्त कुपित हो युद्ध के मुहाने पर बाणों द्वारा द्रोण को घायल करने लगे। महाराज! तबआचार्य द्रोण ने क्रोध और अमर्ष से युक्त हो दो अत्यन्त तीखे भल्लों द्वारा उन दोनों के धनुष काट डाले।। इससे कुपित हुए विराटने रणभूमि में द्रोणाचार्य के वध की इच्छा से दस तोमर और दस बाण चलाये। साथ ही क्रोध में भरे हुए राजा द्रुपद ने लोहे की बनी हुई स्वर्णभूषित भयंकर शक्ति, जो नागराज के समान प्रतीत होती थी, द्रोणाचार्य पर चलायी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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