"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 92 श्लोक 25-31": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}") |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति १२: | पंक्ति १२: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{सम्पूर्ण महाभारत}} | {{सम्पूर्ण महाभारत}} | ||
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत | [[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत भीष्मपर्व]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
०७:३६, २५ जुलाई २०१५ का अवतरण
एकनवतितम (91) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
तदनन्तर क्रूर घटोत्कच क्रोध से लाल आँखें करके दुर्योधन से बोला- ओ दुष्ट ! आज मैं अपने उन पितरों और माता के ऋण से उऋण हो जाऊँगा, जिन्हें तूने दीर्घकालतक वन में रहने के लिए विवश कर दिया था। तू बड़ा क्रूर है। दुर्बुद्धि नरेश ! तूने जो पाण्डवों को द्यूत में छलपूर्वक हराया था और जो एक ही वस्त्र धारण करने वाली द्रुपदकुमारी कृष्णा को रजस्वला-अवस्था में सभा के भीतर ले जाकर नाना प्रकार के क्लेश दिये थे तथा तेरा ही प्रिय करने की इच्छा वाले दुरात्मा सिन्धुराज ने मेरे पितरों की अवहेलना करके आश्रम में रहने वाली द्रौपदी का अपहरण किया था, कुलाधम ! यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं जाएगा तो इन अपमानों का और अन्य सब अत्याचारों का भी आज मैं बदला चुका लूँगा। ऐसा कहकर हिडिम्बाकुमार ने दाँतों से ओठ चबाते और जीभ से मुँह के कोनों को चाटते हुए अपने विशाल धनुष को खींचकर दुर्योधन पर बाणों की बड़ी भारी वृद्धि की। ठीक उसी तरह, जैसे वर्षा ऋतु में मेघ पर्वत के शिखर पर जल की धाराएँ गिराता है।
« पीछे | आगे » |