"महाभारत आदि पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-6" के अवतरणों में अंतर
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जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रूरू की जिज्ञासा और पिता द्वारा उसकी पूर्ति | जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रूरू की जिज्ञासा और पिता द्वारा उसकी पूर्ति | ||
− | रूरू ने पूछा—द्विजश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ने सर्पों की हिंसा कैसे की? अथवा उन्होंने किस लिये यज्ञ में | + | रूरू ने पूछा—द्विजश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ने सर्पों की हिंसा कैसे की? अथवा उन्होंने किस लिये यज्ञ में सर्पों की हिंसा करवायी?।।1।। |
− | विप्रवर ! | + | विप्रवर ! परमबुद्धिमान महात्मा आस्तीक ने किसलिये सर्पों को उस यज्ञ से बचाया था? यह सब मैं पूर्णरूप से सुनना चाहता हूँ।।2।। |
− | ऋषि ने कहा— ‘रूरो ! तुम कथा वाचक ब्राह्मणों के मुख से आस्तीक का | + | ऋषि ने कहा— ‘रूरो ! तुम कथा वाचक ब्राह्मणों के मुख से आस्तीक का महान चरित्र सुनोगे।’ऐसा कहकर सहस्त्र पादमुनि अन्तर्धान हो गये।।3।। |
− | उग्रश्रवाजी कहते हैं—तदनन्तर रूरू वहाँ अद्दश्य हुए मुनि की खोज में उस वन के भीतर सब | + | उग्रश्रवाजी कहते हैं—तदनन्तर रूरू वहाँ अद्दश्य हुए मुनि की खोज में उस वन के भीतर सब ओर दौड़ता रहा और अन्त में थककर पृथ्वी पर गिर पड़ा।।4।। |
− | गिरने पर उसे बड़ी भारी मूर्च्छा ने दबा लिया। उसकी चेतना नष्ट सी हो गयी। महर्षि के | + | गिरने पर उसे बड़ी भारी मूर्च्छा ने दबा लिया। उसकी चेतना नष्ट- सी हो गयी। महर्षि के यथार्थ वचन का बार-बार चिन्तन करते हुए होश में आने पर रूरू घर लौट आया। उस समय उसने पिता से वे सब बातें कह सुनायीं और पिता से भी आस्तीक का उपाख्यान पूछा। रूरू के पूछने पर पिता ने सब कुछ बता दिया।।5-6।। |
०८:१९, २ जुलाई २०१५ का अवतरण
बारहवाँ अध्याय: आदिपर्व (पौलोमपर्व)
जनमेजय के सर्पसत्र के विषय में रूरू की जिज्ञासा और पिता द्वारा उसकी पूर्ति
रूरू ने पूछा—द्विजश्रेष्ठ ! राजा जनमेजय ने सर्पों की हिंसा कैसे की? अथवा उन्होंने किस लिये यज्ञ में सर्पों की हिंसा करवायी?।।1।। विप्रवर ! परमबुद्धिमान महात्मा आस्तीक ने किसलिये सर्पों को उस यज्ञ से बचाया था? यह सब मैं पूर्णरूप से सुनना चाहता हूँ।।2।। ऋषि ने कहा— ‘रूरो ! तुम कथा वाचक ब्राह्मणों के मुख से आस्तीक का महान चरित्र सुनोगे।’ऐसा कहकर सहस्त्र पादमुनि अन्तर्धान हो गये।।3।। उग्रश्रवाजी कहते हैं—तदनन्तर रूरू वहाँ अद्दश्य हुए मुनि की खोज में उस वन के भीतर सब ओर दौड़ता रहा और अन्त में थककर पृथ्वी पर गिर पड़ा।।4।। गिरने पर उसे बड़ी भारी मूर्च्छा ने दबा लिया। उसकी चेतना नष्ट- सी हो गयी। महर्षि के यथार्थ वचन का बार-बार चिन्तन करते हुए होश में आने पर रूरू घर लौट आया। उस समय उसने पिता से वे सब बातें कह सुनायीं और पिता से भी आस्तीक का उपाख्यान पूछा। रूरू के पूछने पर पिता ने सब कुछ बता दिया।।5-6।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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