"महाभारत श्रवण विधि श्लोक 44-64": अवतरणों में अंतर
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१४:५४, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण
महाभारत श्रवण विधि:
उस पर बैठा हुआ पुण्यात्मा पुरूष अग्नि तुल्य तेजस्वी मुकुट से अलंकृत तथा जाम्बु नद के आभूषणों से विभूषित होता है। उसका शरीर दिव्य चन्दन से चर्चित तथा दिव्य मालाओं से विभूषित होता है।दिव्य भोगों से सम्पन्न हो वह दिव्य लोकों में विचरता है।और देवताओं की कृपा से उत्कृष्ट शोभा-सम्पत्ति प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार बहुत वर्षोंतक वह स्वर्गलोक में सम्मान पूर्वक रहता है। तदनन्तर इक्कीस हजार वर्षों तक गन्धर्वो के साथ इन्द्र की रमणीय नगरी में रहकर देवेन्द्र के साथ ही वहां का सुख भोगता है। दिव्य रथों और विमानों पर आरूढ़ हो नाना प्रकार के लोको में विचरता और दिव्य नारियों से घिरा हुआ देवता की भांति वहां निवास करता है। राजन ! इसके बाद वह सूर्य,चन्द्रमा, शिव तथा भगवान विष्णु के लोक में जाता है। महाराज ! ठीक ऐसी ही बात है। इस विषय में कोई अन्यथा विचार नही करना चाहिय। मेरे गुरू का कथन है कि महाभारत को इस महिमा और फल पर श्रद्वा रखनी चाहिये। वाचक को उसके मन में जिस-जिस वस्तु की इच्छा हो वह सब देनी चाहिये। हाथी, घोडे, रथ पालकी तथा दूसरे-दूसरे वाहन विशेष रूप से देने चाहिये। कड़े, कुण्डल,यज्ञोपवीत, विचित्र वस्त्र और विशेषत: गन्ध अर्पित करके वाचक की देवता के समान पूजा करनी चाहिये। ऐसा करने वाला श्रोता भगवान् विष्णु के लोक में जाता है। राजन ! भरतश्रेष्ठ ! महाभारत की कथा प्रारम्भ हो जाने पर प्रत्येक पर्वत में क्षत्रियों की जाति,देश, सत्यता, माहात्म्य धर्म और वृत्ति को जानकर ब्राह्मणों को जो-जो वस्तुएं अर्पित करनी चाहिये, अब उनका वर्णन करूंगा। पहले ब्राह्मणों से स्वस्ति वाचन करा कर कथा वाचक का कार्य प्रारम्भ कराये। फिर पर्व समाप्त होने पर अपनी शक्ति के अनुसार उन ब्राह्मणों की पूजा करे। राजन! आदि पर्व की कथा के समय वाचक को नूतन वस्त्र पहना कर चन्दन आदि से उसकी पूजा कराये। राजन! तत्पश्चात् आस्तीक पर्व की कथा के समय ब्राह्मणों को मधु और घी से युक्त खीर भोजन कराये। उस भोजन में फल मूल की अधिकता होनी चाहिये। फिर गुड और भात दान करे। राजेन्द्र ! सभा पर्व आरम्भ होने पर ब्राह्मणों को पूओं कचौड़ियों और मिठाइयों के साथ खीर भोज कराये। वन पर्व में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को फल-मूलो द्वारा तृप्त करे । अरणीपर्व में पहुंचकर जल से भरे हुए घडों का दान करे। इतना ही नही, जिनको खाने से तृप्ति हो सके, ऐसे उत्तम-उत्तम जंगली मूल-फल और सभी अभीष्ट गुणों से सम्पन्न अन्न ब्रह्मणों को दान करे। भरतश्रेष्ठ ! विराट पर्व में भांति-भांति के वस्त्र करे तथा उद्योग पर्व में ब्राह्मणों को चन्दन और फूलों की माला से अलंकृत करके उन्हे सर्व गुण सम्पन्न अन्न भोजन कराये। राजेन्द्र ! भीष्म पर्व में उत्तम सवारी देकर अच्छी तरह छौंक-बघार कर तैयार किया हुआ सभी उत्तम गुणों युक्त भोजन दान करे। राजेन्द्र द्रोण पर्व में ब्राह्मणों को परम उत्तम भोजन कराये और उन्हे धनुष बाण तथा उत्तम खड़ग प्रदान करे। कर्ण पर्व में भी ब्राह्मणों को अच्छे ढंग से तैयार किया हुआ सबकी रूचि के अनुकूल उत्तम भोजन दे और अपने मन को वश में रखे।
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