"महाभारत सभा पर्व अध्याय 43 श्लोक 20-25" के अवतरणों में अंतर
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− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: सभा पर्व: | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: सभा पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 20-25 का हिन्दी अनुवाद </div> |
− | ‘क्योंकि तुम संकट में पड़े हुए प्राणियों के सबसे बड़े सहारे और भयभीत मनुष्यों को अभय देने वाले हो।’ अपनी बुआ के ऐसा कहने पर यदुनन्दन श्रीकृष्ण ने कहा- | + | ‘क्योंकि तुम संकट में पड़े हुए प्राणियों के सबसे बड़े सहारे और भयभीत मनुष्यों को अभय देने वाले हो।’ अपनी बुआ के ऐसा कहने पर यदुनन्दन श्रीकृष्ण ने कहा- ‘देवी! धर्मज्ञे! तुम डरो मत। तुम्हें मुझ से कोई भय नहीं है। बुआ! तुम्हीं कहो, मैं तुम्हें कौन-सा वर दूँ? तुम्हारा कौन सा कार्य सिद्ध कर दूँ? ‘सम्भव हो या असम्भव, तुम्हारे वचन का मैं अवश्य पालन करूँगा।’ इस प्रकार आश्वासन मिलने पर श्रुतश्रवा यदुनन्दन श्रीकृष्ण से बोली- ‘महाबली यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण! तुम मेरे लिये शिशुपाल के सब अपराध क्षमा कर देना। प्रभो! यही मेरा मनोवांछित वर समझो’। श्रीकृष्ण ने कहा- बुआ! तुम्हारा पुत्र अपने दोषों के कारण मेरे द्वारा यदि वध के योग्य होगा, तो भी मैं इसेके सौ अपराध क्षमा करूँगा। तुम अपने मन में शोक न करो। भीष्मजी कहते हैं- वीरवर भीमसेन! इस प्रकार यह मन्दबुद्धि पापी राजा शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण के दिये हुए वरदान से उन्मत्त होकर तुम्हें युद्ध के लिये ललकार रहा है। |
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत शिशुपालवध पर्व में शिशुपालवृत्तान्त वर्ण विषयक तैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत शिशुपालवध पर्व में शिशुपालवृत्तान्त वर्ण विषयक तैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> |
०७:३५, २५ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
त्रिचत्वारिंश (43) अध्याय: सभा पर्व (शिशुपालवध पर्व)
‘क्योंकि तुम संकट में पड़े हुए प्राणियों के सबसे बड़े सहारे और भयभीत मनुष्यों को अभय देने वाले हो।’ अपनी बुआ के ऐसा कहने पर यदुनन्दन श्रीकृष्ण ने कहा- ‘देवी! धर्मज्ञे! तुम डरो मत। तुम्हें मुझ से कोई भय नहीं है। बुआ! तुम्हीं कहो, मैं तुम्हें कौन-सा वर दूँ? तुम्हारा कौन सा कार्य सिद्ध कर दूँ? ‘सम्भव हो या असम्भव, तुम्हारे वचन का मैं अवश्य पालन करूँगा।’ इस प्रकार आश्वासन मिलने पर श्रुतश्रवा यदुनन्दन श्रीकृष्ण से बोली- ‘महाबली यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण! तुम मेरे लिये शिशुपाल के सब अपराध क्षमा कर देना। प्रभो! यही मेरा मनोवांछित वर समझो’। श्रीकृष्ण ने कहा- बुआ! तुम्हारा पुत्र अपने दोषों के कारण मेरे द्वारा यदि वध के योग्य होगा, तो भी मैं इसेके सौ अपराध क्षमा करूँगा। तुम अपने मन में शोक न करो। भीष्मजी कहते हैं- वीरवर भीमसेन! इस प्रकार यह मन्दबुद्धि पापी राजा शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण के दिये हुए वरदान से उन्मत्त होकर तुम्हें युद्ध के लिये ललकार रहा है।
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