"महाभारत वन पर्व अध्याय 225 श्लोक 36-39" के अवतरणों में अंतर

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==पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम (225) अध्‍याय: वन पर्व (समस्या पर्व )==
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==पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम (225) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )==
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 36-39 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 36-39 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<center>स्‍वाहा का मुनिपत्नियों के रुपों में अग्‍नि के साथ समागम, स्‍कन्‍द की उत्‍पति तथा उनके द्वारा क्रोध आदि  पर्वतों का विदारण  </center>
 
<center>स्‍वाहा का मुनिपत्नियों के रुपों में अग्‍नि के साथ समागम, स्‍कन्‍द की उत्‍पति तथा उनके द्वारा क्रोध आदि  पर्वतों का विदारण  </center>
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उन महात्‍मा ने उस समय अपनी चमचमाती हुई शक्ति चलायी और उसके द्वारा शवेत गिरि के भयानक शिखर को बड़े वेग से विदीर्ण कर डाला । इस प्रकार कार्तिकेय द्वारा शक्ति के आघात से विदीर्ण होकर शवेत पर्वत उन महात्‍मा के भय से डर गया और ( दूसरे ) पर्वतों के साथ इस पृथ्‍वी को छोड़कर आकाश में उड़ गया । इससे पृथ्‍वी को बड़ी पीड़ा हुई। वह सब ओर से फट गयी और पीडित हो कार्तिकेयजी की ही शरण में जाने पर पुन: बलवती हो शोभा पाने लगी । तत्‍पश्‍चात् पर्वतों ने भी उन्‍हीं के चरणों में मस्‍तक झुकाया और वे फिर पृथ्‍वी पर आ गये। तभी से लोग प्रत्‍येक मास के शुक्लपक्ष की पच्चमी को स्‍कन्‍द देव का पूजन करने लगे ।
 
उन महात्‍मा ने उस समय अपनी चमचमाती हुई शक्ति चलायी और उसके द्वारा शवेत गिरि के भयानक शिखर को बड़े वेग से विदीर्ण कर डाला । इस प्रकार कार्तिकेय द्वारा शक्ति के आघात से विदीर्ण होकर शवेत पर्वत उन महात्‍मा के भय से डर गया और ( दूसरे ) पर्वतों के साथ इस पृथ्‍वी को छोड़कर आकाश में उड़ गया । इससे पृथ्‍वी को बड़ी पीड़ा हुई। वह सब ओर से फट गयी और पीडित हो कार्तिकेयजी की ही शरण में जाने पर पुन: बलवती हो शोभा पाने लगी । तत्‍पश्‍चात् पर्वतों ने भी उन्‍हीं के चरणों में मस्‍तक झुकाया और वे फिर पृथ्‍वी पर आ गये। तभी से लोग प्रत्‍येक मास के शुक्लपक्ष की पच्चमी को स्‍कन्‍द देव का पूजन करने लगे ।
  
इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समास्‍या पर्व में आग्डि़रसोपाख्‍यान के प्रसग्ड़ में कुमारोत्‍पति विषयक दो सौ पचीसवां अध्‍याय पूरा हुआ ।
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इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में आग्डि़रसोपाख्‍यान के प्रसग्ड़ में कुमारोत्‍पति विषयक दो सौ पचीसवां अध्‍याय पूरा हुआ ।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०९:३७, ३० जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम (225) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 36-39 का हिन्दी अनुवाद
स्‍वाहा का मुनिपत्नियों के रुपों में अग्‍नि के साथ समागम, स्‍कन्‍द की उत्‍पति तथा उनके द्वारा क्रोध आदि पर्वतों का विदारण


उन महात्‍मा ने उस समय अपनी चमचमाती हुई शक्ति चलायी और उसके द्वारा शवेत गिरि के भयानक शिखर को बड़े वेग से विदीर्ण कर डाला । इस प्रकार कार्तिकेय द्वारा शक्ति के आघात से विदीर्ण होकर शवेत पर्वत उन महात्‍मा के भय से डर गया और ( दूसरे ) पर्वतों के साथ इस पृथ्‍वी को छोड़कर आकाश में उड़ गया । इससे पृथ्‍वी को बड़ी पीड़ा हुई। वह सब ओर से फट गयी और पीडित हो कार्तिकेयजी की ही शरण में जाने पर पुन: बलवती हो शोभा पाने लगी । तत्‍पश्‍चात् पर्वतों ने भी उन्‍हीं के चरणों में मस्‍तक झुकाया और वे फिर पृथ्‍वी पर आ गये। तभी से लोग प्रत्‍येक मास के शुक्लपक्ष की पच्चमी को स्‍कन्‍द देव का पूजन करने लगे ।

इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समस्‍या पर्व में आग्डि़रसोपाख्‍यान के प्रसग्ड़ में कुमारोत्‍पति विषयक दो सौ पचीसवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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