"महाभारत वन पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-19": अवतरणों में अंतर

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बृहदश्व मुनि कहते हैं-युधिष्ठिर ! जैसे पक्षी आकश में उड़ता है, उसी प्रकार बाहुक (बडे़ वेग से) शीघ्रतापूर्वक कितनी ही नदियों, पर्वतों, वनों और सरोवरों को लांघता हुआ आगे बढ़ने लगा। जब रथ इस प्रकार तीव्र गति से दौड़े रहा था, उसी समय शत्रुओं के नगरों को जीतनेवाले राजा ऋतुपर्ण ने देखा, उनका उत्तरीय वस्त्र नीचे गिर गया। उस समय वस्त्र गिर जानेपर उन महामना नरेश ने बड़ी उतावली के साथ नल से कहा-‘महामते ! इन वेगशाली घोड़ों को (थोड़ी देर के लिये) रोक लो। मैं अपनी गिरी हुई चादर लूंगा। जबतक यह वार्ष्‍णेय उतरकर मेरे उत्तरीय वस्त्र को ला दे, तबतक रथको रोके रहो’। यह सुनकर नल ने उसे उत्तर दिया-महाराज ! आपका वस्त्र बहुत दूर गिरा है। मैं उस स्थान से चार कोस आगे आ गया हूं। अब फिर वह नहीं लाया जा सकता’। राजन् ! नल के ऐसा कहने पर राजा ऋतुपर्ण चुप हो गये। अब वे एक वन में एक बहेड़े के वृक्ष के पास आ पहुंचे, जिसमें बहुत से फल लगे थे। उस वृक्ष को देखकर राजा ऋतुपर्ण ने तुरन्त ही बाहुक से कहा-‘सूत ! तुम देखो, मुझमें भी गणना करके (हिसाब लगाने) की कितनी अद्भुत शक्ति है। ‘बाहुक ! इस वृक्षपर जितने पत्ते और फल हैं, उन सबको मैं बताता हूं। पेड़ के नीचे जो पत्ते और फल गिर हुए हैं, उनकी संख्या एक सौ अधिक है; अर्थात् नीचे गिर हुए पत्तों और फलों की संख्या वृक्ष की दोनों शाखाओं में पांच करोड़ पत्ते है। तुम्हारी इच्छा हो ता इन दोनों शाखाओं तथा इसकी अन्य प्रशाखाओं (को काटकर उन) के पत्ते गिन लो। इसी प्रकार इन शाखाओं में दो हजार पंचानवे फल लगे हुए हैं। यह सुनकर बाहुकने रथ खड़ा करके राजा से कहा-‘शत्रुसूदन नरेश ! आप जो कह रहे हैं, वह संख्या परोक्ष है। मैं इतने बहेड़े के वृक्ष को काटकर उसके फलों की संख्या परोक्ष करूंगा। महाराज ! आपकी आंखों के सामने इन बहेड़ें को काटूंगा। इस प्रकार गणना कर लेने पर वह संख्या परोक्ष नहीं रह जायगी। बिना ऐसा किये मैं तो नहीं समझ सकता कि (फलों की) संख्या इतनी है या नहीं। ‘जनेश्वर ! यदि वार्ष्‍णेय दो घड़ीतक भी इन घोड़ों की लगाम संभाले तो मैं आपके देखते-देखते इसके फलों को गिन लूंगा’। तब राजा ने सारथि से कहा-‘यह विलम्ब करने का समय नहीं है।’ बाहुक बोला-‘मैं प्रयत्नपूर्वक शीघ्र ही गणना समाप्त कर दूंगा। आप दो घड़ी तक प्रतीक्षा कीजिये। अथवा यदि आपको बड़ी जल्दी हो तो यह विदर्भदेश का मंगलमय मार्ग है, वार्ष्‍णेय को सारथि बनाकर चले जाइये’। कुरूनन्दन ! तब ऋतुपर्ण ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा-‘बाहुक ! तुम्हीं इन घोड़ों को हांक सकते हो। इस कला में पृथ्वी पर तुम्हारे जैसा दूसरा कोई नहीं है। घोड़ों के रहस्य को जाननेवाले बाहुक ! तुम्हारे ही प्रयत्न मैं विदर्भदेश की राजधानी में पहुंचना चाहता हूं। देखों, तुम्हारी शरण में आया हूं। इस कार्य में विघ्न न डालो।  
बृहदश्व मुनि कहते हैं-युधिष्ठिर ! जैसे पक्षी आकश में उड़ता है, उसी प्रकार बाहुक (बडे़ वेग से) शीघ्रतापूर्वक कितनी ही नदियों, पर्वतों, वनों और सरोवरों को लांघता हुआ आगे बढ़ने लगा। जब रथ इस प्रकार तीव्र गति से दौड़े रहा था, उसी समय शत्रुओं के नगरों को जीतनेवाले राजा ऋतुपर्ण ने देखा, उनका उत्तरीय वस्त्र नीचे गिर गया। उस समय वस्त्र गिर जानेपर उन महामना नरेश ने बड़ी उतावली के साथ नल से कहा-‘महामते ! इन वेगशाली घोड़ों को (थोड़ी देर के लिये) रोक लो। मैं अपनी गिरी हुई चादर लूंगा। जबतक यह वार्ष्‍णेय उतरकर मेरे उत्तरीय वस्त्र को ला दे, तबतक रथको रोके रहो’। यह सुनकर नल ने उसे उत्तर दिया-महाराज ! आपका वस्त्र बहुत दूर गिरा है। मैं उस स्थान से चार कोस आगे आ गया हूं। अब फिर वह नहीं लाया जा सकता’। राजन् ! नल के ऐसा कहने पर राजा ऋतुपर्ण चुप हो गये। अब वे एक वन में एक बहेड़े के वृक्ष के पास आ पहुंचे, जिसमें बहुत से फल लगे थे। उस वृक्ष को देखकर राजा ऋतुपर्ण ने तुरन्त ही बाहुक से कहा-‘सूत ! तुम देखो, मुझमें भी गणना करके (हिसाब लगाने) की कितनी अद्भुत शक्ति है। ‘बाहुक ! इस वृक्षपर जितने पत्ते और फल हैं, उन सबको मैं बताता हूं। पेड़ के नीचे जो पत्ते और फल गिर हुए हैं, उनकी संख्या एक सौ अधिक है; अर्थात् नीचे गिर हुए पत्तों और फलों की संख्या वृक्ष की दोनों शाखाओं में पांच करोड़ पत्ते है। तुम्हारी इच्छा हो ता इन दोनों शाखाओं तथा इसकी अन्य प्रशाखाओं (को काटकर उन) के पत्ते गिन लो। इसी प्रकार इन शाखाओं में दो हजार पंचानवे फल लगे हुए हैं। यह सुनकर बाहुकने रथ खड़ा करके राजा से कहा-‘शत्रुसूदन नरेश ! आप जो कह रहे हैं, वह संख्या परोक्ष है। मैं इतने बहेड़े के वृक्ष को काटकर उसके फलों की संख्या परोक्ष करूंगा। महाराज ! आपकी आंखों के सामने इन बहेड़ें को काटूंगा। इस प्रकार गणना कर लेने पर वह संख्या परोक्ष नहीं रह जायगी। बिना ऐसा किये मैं तो नहीं समझ सकता कि (फलों की) संख्या इतनी है या नहीं। ‘जनेश्वर ! यदि वार्ष्‍णेय दो घड़ीतक भी इन घोड़ों की लगाम संभाले तो मैं आपके देखते-देखते इसके फलों को गिन लूंगा’। तब राजा ने सारथि से कहा-‘यह विलम्ब करने का समय नहीं है।’ बाहुक बोला-‘मैं प्रयत्नपूर्वक शीघ्र ही गणना समाप्त कर दूंगा। आप दो घड़ी तक प्रतीक्षा कीजिये। अथवा यदि आपको बड़ी जल्दी हो तो यह विदर्भदेश का मंगलमय मार्ग है, वार्ष्‍णेय को सारथि बनाकर चले जाइये’। कुरूनन्दन ! तब ऋतुपर्ण ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा-‘बाहुक ! तुम्हीं इन घोड़ों को हांक सकते हो। इस कला में पृथ्वी पर तुम्हारे जैसा दूसरा कोई नहीं है। घोड़ों के रहस्य को जाननेवाले बाहुक ! तुम्हारे ही प्रयत्न मैं विदर्भदेश की राजधानी में पहुंचना चाहता हूं। देखों, तुम्हारी शरण में आया हूं। इस कार्य में विघ्न न डालो।  


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०५:४१, १५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

द्विसप्ततितम (72) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

ऋतुपर्ण के उत्तरीय वस्त्र गिरने और बहेड़े के वृक्ष के फलों का गिनने के विषय में नल के साथ ऋतुपर्ण की बातचीत, ऋतुपर्ण से नल को द्यूतविद्या के रहस्य की प्राप्ति और उनके शरीर से कलियुग का निकलना

बृहदश्व मुनि कहते हैं-युधिष्ठिर ! जैसे पक्षी आकश में उड़ता है, उसी प्रकार बाहुक (बडे़ वेग से) शीघ्रतापूर्वक कितनी ही नदियों, पर्वतों, वनों और सरोवरों को लांघता हुआ आगे बढ़ने लगा। जब रथ इस प्रकार तीव्र गति से दौड़े रहा था, उसी समय शत्रुओं के नगरों को जीतनेवाले राजा ऋतुपर्ण ने देखा, उनका उत्तरीय वस्त्र नीचे गिर गया। उस समय वस्त्र गिर जानेपर उन महामना नरेश ने बड़ी उतावली के साथ नल से कहा-‘महामते ! इन वेगशाली घोड़ों को (थोड़ी देर के लिये) रोक लो। मैं अपनी गिरी हुई चादर लूंगा। जबतक यह वार्ष्‍णेय उतरकर मेरे उत्तरीय वस्त्र को ला दे, तबतक रथको रोके रहो’। यह सुनकर नल ने उसे उत्तर दिया-महाराज ! आपका वस्त्र बहुत दूर गिरा है। मैं उस स्थान से चार कोस आगे आ गया हूं। अब फिर वह नहीं लाया जा सकता’। राजन् ! नल के ऐसा कहने पर राजा ऋतुपर्ण चुप हो गये। अब वे एक वन में एक बहेड़े के वृक्ष के पास आ पहुंचे, जिसमें बहुत से फल लगे थे। उस वृक्ष को देखकर राजा ऋतुपर्ण ने तुरन्त ही बाहुक से कहा-‘सूत ! तुम देखो, मुझमें भी गणना करके (हिसाब लगाने) की कितनी अद्भुत शक्ति है। ‘बाहुक ! इस वृक्षपर जितने पत्ते और फल हैं, उन सबको मैं बताता हूं। पेड़ के नीचे जो पत्ते और फल गिर हुए हैं, उनकी संख्या एक सौ अधिक है; अर्थात् नीचे गिर हुए पत्तों और फलों की संख्या वृक्ष की दोनों शाखाओं में पांच करोड़ पत्ते है। तुम्हारी इच्छा हो ता इन दोनों शाखाओं तथा इसकी अन्य प्रशाखाओं (को काटकर उन) के पत्ते गिन लो। इसी प्रकार इन शाखाओं में दो हजार पंचानवे फल लगे हुए हैं। यह सुनकर बाहुकने रथ खड़ा करके राजा से कहा-‘शत्रुसूदन नरेश ! आप जो कह रहे हैं, वह संख्या परोक्ष है। मैं इतने बहेड़े के वृक्ष को काटकर उसके फलों की संख्या परोक्ष करूंगा। महाराज ! आपकी आंखों के सामने इन बहेड़ें को काटूंगा। इस प्रकार गणना कर लेने पर वह संख्या परोक्ष नहीं रह जायगी। बिना ऐसा किये मैं तो नहीं समझ सकता कि (फलों की) संख्या इतनी है या नहीं। ‘जनेश्वर ! यदि वार्ष्‍णेय दो घड़ीतक भी इन घोड़ों की लगाम संभाले तो मैं आपके देखते-देखते इसके फलों को गिन लूंगा’। तब राजा ने सारथि से कहा-‘यह विलम्ब करने का समय नहीं है।’ बाहुक बोला-‘मैं प्रयत्नपूर्वक शीघ्र ही गणना समाप्त कर दूंगा। आप दो घड़ी तक प्रतीक्षा कीजिये। अथवा यदि आपको बड़ी जल्दी हो तो यह विदर्भदेश का मंगलमय मार्ग है, वार्ष्‍णेय को सारथि बनाकर चले जाइये’। कुरूनन्दन ! तब ऋतुपर्ण ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा-‘बाहुक ! तुम्हीं इन घोड़ों को हांक सकते हो। इस कला में पृथ्वी पर तुम्हारे जैसा दूसरा कोई नहीं है। घोड़ों के रहस्य को जाननेवाले बाहुक ! तुम्हारे ही प्रयत्न मैं विदर्भदेश की राजधानी में पहुंचना चाहता हूं। देखों, तुम्हारी शरण में आया हूं। इस कार्य में विघ्न न डालो।


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