"गीता प्रबंध -अरविन्द पृ. 200": अवतरणों में अंतर
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उपकरण में तब वैयक्तिक इच्छा या संकल्प का अरोप नहीं होता; यह दीख पड़ता है कि जो कुछ हो रहा है वह सब विराट् पुरूष की सर्वज्ञ पूर्वदृष्टि और उनकी सर्वसमर्थ अमोघ शक्ति में पहले ही क्रियान्वित हो चुका है और मनुष्य का अहंकार भगवान् के संकल्प के कार्यो को बदल नहीं सकता । इसलिये अंतिम रूख वही होगा जो अर्जुन को आगे चलकर बताया गया है, ‘‘ सब कुछ मेरे द्वारा मेरी दिव्य इच्छा और पूर्वज्ञान में पहले ही किया जा चुका है, तू , हे अर्जुन, केवल निमित्त बन जा, इस रूख का अंतिम परिणाम यह होगा कि वैयक्तिक संकल्प भगवान् के संकल्प के साथ पूर्ण रूप से एक हो जायेगा , जीव के अंदर ज्ञान की वृद्धि होने लगेगी और उसकी प्रकृति , जो उपकरणमात्र है, सर्वथा निर्दोष होकर भागवत शक्ति और ज्ञान के अनुकूल बन जायेगी । परातपर पुरूष , विराट् पुरूष और व्यष्टि पुरूष को इस परम एकता की संतुलित अवस्था में अंतःकरण के अंदर आत्म - समर्पण से प्राप्त पूर्ण और निरपेक्ष समता रहेगा, मन भागवत प्रकाश और शक्ति का निष्क्रिय स्त्रोतमार्ग हो जायेगा और हमारी सक्रिय सत्ता जगत् में दिव्य ज्योति और शक्ति के कार्य के लिये एक बलशाली अमोघ यंत्र हो जायेगी। | उपकरण में तब वैयक्तिक इच्छा या संकल्प का अरोप नहीं होता; यह दीख पड़ता है कि जो कुछ हो रहा है वह सब विराट् पुरूष की सर्वज्ञ पूर्वदृष्टि और उनकी सर्वसमर्थ अमोघ शक्ति में पहले ही क्रियान्वित हो चुका है और मनुष्य का अहंकार भगवान् के संकल्प के कार्यो को बदल नहीं सकता । इसलिये अंतिम रूख वही होगा जो अर्जुन को आगे चलकर बताया गया है, ‘‘ सब कुछ मेरे द्वारा मेरी दिव्य इच्छा और पूर्वज्ञान में पहले ही किया जा चुका है, तू , हे अर्जुन, केवल निमित्त बन जा, इस रूख का अंतिम परिणाम यह होगा कि वैयक्तिक संकल्प भगवान् के संकल्प के साथ पूर्ण रूप से एक हो जायेगा , जीव के अंदर ज्ञान की वृद्धि होने लगेगी और उसकी प्रकृति , जो उपकरणमात्र है, सर्वथा निर्दोष होकर भागवत शक्ति और ज्ञान के अनुकूल बन जायेगी । परातपर पुरूष , विराट् पुरूष और व्यष्टि पुरूष को इस परम एकता की संतुलित अवस्था में अंतःकरण के अंदर आत्म - समर्पण से प्राप्त पूर्ण और निरपेक्ष समता रहेगा, मन भागवत प्रकाश और शक्ति का निष्क्रिय स्त्रोतमार्ग हो जायेगा और हमारी सक्रिय सत्ता जगत् में दिव्य ज्योति और शक्ति के कार्य के लिये एक बलशाली अमोघ यंत्र हो जायेगी। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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०७:३२, २२ सितम्बर २०१५ का अवतरण
नति एक प्रकार की धार्मिक समता का आधार है, यह भगवान् की इच्छा के अधीन होना है, विपरीत अवस्थाओं को धैर्य के साथ सहन करना है, सब कुछ चुपचाप बरदाश्त करना है। गीता में यह नति तत्व एक अधिक विशाल रूप धारण करता है।और वहां इसका स्वरूप है समग्र सत्ता का भगवान् के प्रति पूर्ण समर्पण। यह केवल निष्क्रिय अधीनता नहीं है, बल्कि सक्रिय आत्म - दान है, यह समस्त वस्तुओं में विद्यमान भगवान् की इच्छा को देखना और स्वीकार करना भर नहीं है, बल्कि अपनी निजी इच्छा को कर्मो के प्रभु, भगवान् को दे देना है , ताकि साधक उनका उपकरण बन सके और वह भी भगवान् का एक सेवक बनने की भवना से नहीं , बल्कि अंत में कम - से - कम इस भावना से कि वह अपनी चेतना और अपने कर्म , दोनों का ही उनमें संपूर्ण संन्यास कर दें, ताकि उसकी सत्ता भगवान् की सत्ता के साथ एक हो जाये और उसकी नैव्र्यक्तिक प्रकृति यंत्रमात्र रह जाये और कुछ नहीं। वह हर फल को चाहे अच्छा हो या बुरा, प्रिय हो या अप्रिय , शुभ हो या अशुभ, यह जानकर स्वीकार करता है कि वह कर्मो के प्रभु भगवान् का है और अंत में यह अवस्था हो जाती है कि शोक और दुःख केवल सहन ही नहीं किये जाते , बल्कि उन्हें निर्वासित कर दिया जाता है और चित्त के अंदर पूर्ण समता प्रतिष्ठित हो जाती है।
उपकरण में तब वैयक्तिक इच्छा या संकल्प का अरोप नहीं होता; यह दीख पड़ता है कि जो कुछ हो रहा है वह सब विराट् पुरूष की सर्वज्ञ पूर्वदृष्टि और उनकी सर्वसमर्थ अमोघ शक्ति में पहले ही क्रियान्वित हो चुका है और मनुष्य का अहंकार भगवान् के संकल्प के कार्यो को बदल नहीं सकता । इसलिये अंतिम रूख वही होगा जो अर्जुन को आगे चलकर बताया गया है, ‘‘ सब कुछ मेरे द्वारा मेरी दिव्य इच्छा और पूर्वज्ञान में पहले ही किया जा चुका है, तू , हे अर्जुन, केवल निमित्त बन जा, इस रूख का अंतिम परिणाम यह होगा कि वैयक्तिक संकल्प भगवान् के संकल्प के साथ पूर्ण रूप से एक हो जायेगा , जीव के अंदर ज्ञान की वृद्धि होने लगेगी और उसकी प्रकृति , जो उपकरणमात्र है, सर्वथा निर्दोष होकर भागवत शक्ति और ज्ञान के अनुकूल बन जायेगी । परातपर पुरूष , विराट् पुरूष और व्यष्टि पुरूष को इस परम एकता की संतुलित अवस्था में अंतःकरण के अंदर आत्म - समर्पण से प्राप्त पूर्ण और निरपेक्ष समता रहेगा, मन भागवत प्रकाश और शक्ति का निष्क्रिय स्त्रोतमार्ग हो जायेगा और हमारी सक्रिय सत्ता जगत् में दिव्य ज्योति और शक्ति के कार्य के लिये एक बलशाली अमोघ यंत्र हो जायेगी।
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