महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 17 श्लोक 78-91

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सत्रहवां अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: सत्रहवां अध्याय: श्लोक 120-143 का हिन्दी अनुवाद

743 नित्य आत्मसहायः-आत्माकी सदा सहायता करनेवाले, 744 देवासुरपतिः-देवताओं, और असुरोंके स्वामी, 745 पतिः-सबके स्वामी, 746 युक्तः-भक्तोंके उद्धारके लिये सदा उद्यत रहनेवाले, 747 युक्तबाहुः-सबकी रक्षाके लिये उपयुक्त भुजाओंवाले, 748 देवो दिविसुपर्वणः-स्वर्गमें जो महान् देवता इन्द्र हैं, उनके भी आराध्यदेव।। 749 आषाढ़ः-भक्तोंको सब कुछ सहन करनेकी शक्ति देनेवाले, 750 सुषाढः-उतम सहनशील, 751 ध्रुवः-अविचलस्वरूप, 752 हरिणः-शुद्धस्वरूप, 753 हरः-पापहारी, 754 आवर्तमानेभ्यो वपुः-स्वर्गलोकसे लौटनेवाले नूतन शरीर देनेवाले, 755 वसुश्रेष्ठः-श्रेष्ठ धनस्वरूप अर्थात् मुक्तिस्वरूप, 756 महापथः-सर्वोतम मार्गस्वरूप। 757 विमर्षः शिरोहारी-विवेकपूर्वक दुष्टोंका शिरष्छेद करनेवाले, 758 सर्वलक्षणलक्षितः-समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न, 759 अक्षः रथयोगी-रथसे सम्बन्ध रखनेवाला धुरीस्वरूप, 760 सर्वयोगी-सभी समयमें योगयुक्त, 761 महाबलः-अनन्त शक्तिसे सम्पन्न।।122।। 762 समाम्नायः-वेदस्वरूप, 763 असमाम्नायः-वेदभिन्न, स्मृति, इतिहास, पुराण और आगमरूप, 764 तीर्थदेवः-सम्पूर्ण तीर्थों के देवस्वरूप, 765 महारथः-त्रिपुरदाह के समय पृथ्वीरूपी विशाल रथ पर आरूढ़ होने वाले, 766 निर्जीवः-जड-प्रपंचस्वरूप, 767 जीवनः-जीवनदाता, 768 मन्त्रः-प्रणव आदि मन्त्रस्वरूप, 769शुभाक्षः-मंगलमयी दृष्टिवाले, 770 बहुकर्कषः-संहारकालमें अत्यन्त कठोर स्वभाववाले। 771 रत्नप्रभूतः-अनेक रत्नों के भण्डाररूप, 772 रत्नांगः-रत्नमय अंगवाले, 773 महार्णव-निपानवित्-महासागररूपी निपानों हौजों-को जाननेवाले, 774 मूलम्-संसाररूपी वृक्ष के कारण, 775 विशालः-अत्यन्त शोभायमान, 776अमृतः-अमृतस्व्रूप, 777 व्यक्ताव्यक्तः-साकार-निराकार स्वरूप, 778 तपोनिधिः-तपस्या के भण्डार। 779 आरोहणः-परम पदपर आरूढ़ होने के द्वारस्वरूप, 780 अधिरोहः-परम पदपर आरूढ़, 781शीलधारी-सुशीलसम्पन्न, 782 महायशा-महान् श्यषसे सम्पन्न, 783 सेनाकल्पः-सेना के आभूषणरूप, 784 महाकल्पः-बहुमूल्य अलंकारों से अलंकृत, 785 योगः-चितवृतियों के निरोधस्वरूप, 786 युगकरः-युगप्रवर्तक, 787 हरिः-भक्तों का दुःख हर लेनेवाले। 788 युगरूपः-युगस्वरूप, 789 महारूपः-महानपवाले, 790 महानागहनः-विशालकाय गजासुर का वध करनेवाले, 791 अवधः- मृत्युरहित, 792 न्यायनिर्वपणः-न्यायोचित दान करनेवाले, 793 पादः-शरण लेनेयोग्य पद्यते भक्तैः इति पादः, 794 पण्डितः-ज्ञानी, 795 अचलोपमः-पर्वत के समान अवचिल। 796 बहुमालः-बहुत-सी मालाएं धारण करनेवाले, 797 महामालः-महती-पैरोंतक लटकने-वाली माला धारण करनेवाले, 798शशी हरसुलोचनः-चन्द्रमा के समान सौम्य दृष्टियुक्त महादवे, 799 विस्तारो लवणः कूपः-विस्तृत क्षारसमुद्रस्वरूप, 800 त्रियुगः-सत्ययुग, त्रेता और द्वापर त्रिविध युगस्वरूप, 801 सफलोलदयः-जिसका अवताररूपमें प्रकट होना सफल हैं। 802 त्रिलोचनः-त्रिनेत्रधारी, 803 विषण्णंगः-अंगरहित अर्थात् सर्वथा निराकार, 804 मणिविद्धः-मणिका कुण्डल पहनने के लिये, छिदे हुए कर्णवाले, 805 जटाधरः-जटाधारी, 806 बिन्दुः-अनुस्वाररूप, 807 विसर्गः-विसर्जनीयस्वरूप, 808 सुमुखः-सुन्दर मुखवाले, 809 ष्षरः-अनुस्वाररूप, 810 सर्वायुधः-सम्पूर्ण आयुधों से युक्त, 811 सहः-सहनशील। 812 निवेदनः-सब प्रकार की वृति से रहित ज्ञान वाले, 813 सुखाजातः-सब वृतियों का लय होने पर सुखरूपसे प्रकट होने वाले, 814 सुगन्धारः- उतम गन्धसे युक्त, 815 महाधनुः-पिनाक नामक विषाल धनुष धारण करनेवाले, 816 भगवान् गन्धपाली-उतम गन्ध की रक्षा करनेवाले भगवान्, 817 सर्वकर्मणामुत्थानः-समस्त कर्मों के उत्थानस्वरूप। 818 मन्थानो बहुलो वायुः-विश्व को मथ डालनेमें समर्थ प्रलयकाल की महान् वायुस्वरूप, 819 सकलः-सम्पूर्ण कलाओंसे युक्त, 820 सर्वलोचनः-सबके द्रष्टा, 821 तलस्तालः-हाथ पर ही ताल देनेवाले, 822 करस्थली-हाथोंसे ही भोजनपात्र का काम लेनेवाले, 823संहननः-सुदृढ़ शरीरवाले, 824 महान्-श्रेष्ठतम्। 825 छत्रम्-छत्र के समान पाप-तापसे सुरक्षित रखनेवाले, 826 सुच्छत्रः-उतम छत्रस्वरूप, 827 विख्यातो लोकः- सुप्रसिद्ध लोकस्वरूप, 828 सर्वाश्रयः क्रमः-सबके आधारभूत गति, 829 मुण्डः-मुण्डित-मस्तक, 830 विरूपः-विकट रूपवाले, 831 विकृतः-सम्पूर्ण विपरीत क्रियाओं को धारण करनेवाले, 832 दण्डी-दण्डधारी, 833 कुण्डी-खप्परधारी, 834 विकुर्वणः-क्रियाद्वारा अलभ्य। 835 हर्यक्षः-सिंहस्वरूप, 836 ककुभः-सम्पूर्ण दिशास्वरूप, 837 वज्री-वज्रधारी, 838शतजिहवः-सैकड़ो जिहवावाले, 839 सहस्त्रपात् सहस्त्रमूर्धा-सहस्त्रों पैर और मस्तकवाले, 840 देवेन्द्रः-देवताओं के राजा, 841 सर्वदेवमयः-सम्पूर्ण देवस्वरूप, 842 गुरूः-सब के ज्ञानदाता। 843 सहस्त्रबाहुः-सहस्त्रों भुजाओंवाले, 844 सर्वांगः- समस्त अंगोसे सम्पन्न, 845शरण्यः-षरण लेने के योग्य, 846 सर्वलोककृत्-सम्पूर्ण लोकों के उत्पन्न करनेवाले, 847 पवित्रम्-परम पावन, 848 त्रिककुन्मन्त्रः-त्रिपदा गायत्रीरूप, 849 कनिष्ठः- अदिति के पुत्रोंमें छोटे, वामनरूपधारी विष्णु, 850 कृष्णपिगंलः-श्याम-गैरहरि-हर-मूर्ति।851 ब्रहादण्डविनिर्माता-ब्रहादण्ड का निर्माण करनेवाले, 852शतध्नीपाषशक्तिमान्-शतध्नी, पाश और शक्तिसे युक्त, 853 पद्यगर्भः-ब्रहास्वरूप, 854 महागर्भः-जगत्रूप गर्भ को धारण करने वाले होनसे महागर्भ, 855 ब्रहागर्भः-वेदको उदरमें धारण करनेवाले, 856 जलोभ्दवः-एकार्णव के जल में प्रकट होनेवाले। 857 गभस्तिः-सूर्यस्वरूप, 858 ब्रहाकृत्-वेदोंका आविष्कार करनेवाले, 859 ब्रहा-वेदाध्यायी, 860 ब्रहावित्-वेदार्थवेता, 861 ब्राहाणः-ब्रहानिष्ठ, 862 गतिः-ब्रहानिष्ठोंकी परमगति, 863 अनत्नरूपः-अनन्त रूपवाले, 864 नैकात्मा-अनेक शरीरधारी, 865 तिग्मतेजाः स्वयम्भुवः-ब्रहाजी की अपेक्षा प्रचण्ड तेजस्वी। 866आत्मा-देश-काल-वस्तुकृत उपाधिसे अतीत स्वरूपवाले, 867 पशुपतिः-जीवोंके स्वामी, 868 वातरंहाः-वायुके समान वेगशाली, 869 मनोजवः-मनके समान वेगशाली, 870 चन्दनी-चन्दनचर्चित अंगवाले, 871 पद्यनालाग्रः-पद्यनाल के मूल विष्णुस्वरूप, 872 सुरभ्युतरणः- सुरभि को नीचे उतारनेवाले, 873 नरः-पुरूषरूप। 874 कर्णिकारमहास्त्रग्वी-करेनकी बहुत बड़ी माला धारण करनेवाले, 875 नीलमौलिः-मस्तकपर नीलमणिमय मुकुट धारण करनेवाले, 876 पिनाकधृत्-पिनाक धनुष को धारण करने वाले, 877 उमापतिः-उमा-ब्रहाविद्याके स्वामी, 878 उमाकान्तः-पार्वती के प्राण-प्रियतम, 879 जाहवीधृत्-गंगा को मस्तकपर धारण करनेवाले, 880 उमाधवः-पार्वतीपति। 881 वरो वराहः-श्रेष्ठ वराहरूपधारी भगवान् 882 वरदः-वरदाता, 883 वरेण्यः-स्वामी बनाने योग्य, 884 सुमहास्वनः-महान् गर्जना करनेवाले, 885 महाप्रसादः-भक्तोंपर महान् अनुग्रह करनेवाले, 886 दमनः-दुष्टों का दमन करनेवाले, 887शत्रुहा-शत्रुनाशक, 888श्वेतपिगंलः-अर्धनारीनरेश्वर वेश में श्वेत-पिंगल वर्णवाले। 889 पीतात्मा-हिरण्यमय पुरूष, 890 परमात्मा-परमेश्वर, 891 प्रयतात्मा-विशुद्धिचित, 892 प्रधानकृत्-जगत् के कारणभूत त्रिगुणमय प्रधान के अधिष्ठानस्वरूप, 893 सर्वपार्वमुखः-सम्पूर्ण दिशाओं की ओर मुखवाले, 894 युक्षः-त्रिनेत्रधारी, 895 धर्मसाधारणो वरः-धर्म-पालनके अनुसार वर देनेवाले। 896 चराचरात्मा-चराचर प्राणियोंके आत्मा, 897 सूक्ष्मात्मा-अति सूक्ष्मस्वरूप, 898 अमृतो गोवृशेश्वरः-निष्काम धर्म के स्वामी, 899 साध्यर्षिः- साध्य देवताओं के आचार्य, 900 आदित्यो वसुः- अदितिकुमार वसु, 901 विवस्वान् सवितामृतः-किरणोंसे सुशोभित एवं जगत को उत्पन्न करनेवाले अमृतस्वरूप सूर्य। 902 व्यासः-पुराण-इतिहास आदिके स्त्रष्टा वेदव्यासस्वरूप, 903 सर्गःसुसंक्षेपो विस्तारः-संक्षिप्त और विस्तृत सृष्टिस्वरूप, 904 पर्ययो नरः-सब ओरसे व्याप्त करनेवाले वैश्वानरस्वरूप, 905 ऋतुः-ऋतुरूप, 906 संवत्सरः-संवत्सरूप, 907 मासः-मासरूप, 908 पक्षः-पक्षरूप, 909 संख्यासमापनः-पूर्वोक्त ऋतु आदिकी संख्या समाप्त करनेवाले पर्व संक्रान्ति,दर्ष,पूर्णमासादि रूप। 910 कलाः, 911 काष्ठाः-, 912 लवाः, 913 मात्राः-इत्यादि कालावयवस्वरूप, 914 मुहूर्ताहःक्षपाः-मुहूर्त, दिन और रात्रिरूप, 915 क्षणाः-क्षणरूप, 916 विश्वक्षेत्रम्-ब्रहाण्डरूपी वृक्षके आधार, 917 प्रजाबीजम्-प्रजाओंके कारणरूप, 918 लिंगम्-महतत्वस्वरूप, 919 आद्यो निर्गमः-सबसे पहले प्रकट होनेवाले। 920 सत्-सत्स्वरूप, 921 असत्-असत्वरूप, 922 व्यक्तम्-साकाररूप, 923 अव्यक्तम्-निराकाररूप, 924 पिता, 925 माता, 926 पितामहः- 927 स्वर्गद्वारम्-स्वर्गके साधनस्वरूप, 928 प्रजाद्वारम्-प्रजाके कारण, 929 मोक्षद्वारम्-मोक्षके साधनस्वरूप, 930 त्रिविष्टपम्-स्वर्गके साधनस्वरूप।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।