महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 69 श्लोक 1-16

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उनहत्तरवाँ अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

महाभारत: अनुशासनपर्व: उनहत्तरवाँ अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

गोदानकी महिमा तथा गौओं और ब्राह्माणों की रक्षा से पुण्‍य की प्राप्ति युधिष्ठिर ने कहा- महाप्रज्ञ कुरूश्रेष्ठ। आप दान की उत्तम विधि का फिर से वर्णन कीजिये। विशेषतः भूमिदान का महत्व बताइये। केवल क्षत्रिय राजा ही यज्ञ करने वाले ब्राह्माण को पृथ्वी का दान कर सकता है और उसी से ब्राह्माण विधि पूर्वक भूमि का प्रतिग्रह ले सकता है। दूसरा कोई यह दान नहीं कर सकता। दान के फल की इच्छा रखने वाले सभी वर्णों के लोग जो दान कर सके तथा वेद में जिस दान का वर्णन हो, उसकी मेरे समक्ष व्याख्या कीजिये। भीष्मजी बोले- युधिष्ठिर । गाय भूमि और सरस्वती- ये तीनों नाम वाली हैं- इन तीनों वस्तुओं का दान करना चाहिए। ये तीनों वस्तऐं मनुष्यों की सम्पूर्ण कामनाऐं पूर्ण करने वाली है। जो ब्राह्माण हमारे शिष्य को धर्मानुकूल ब्राम्ही सरस्वती (वेदवानी) का उपदेश करता है, वह भूमिदान तथा गौदान के समान फल का भागी होता है। इस प्रकार गोदान की प्रशंसा की गई है। उससे बढकर कोई दान नहीं है। युधिष्ठिर । गोदान का फल निकट भविष्य में मिलता है तथा वे गौऐं शीघ्र अभीष्ट अर्थ की सिद्वि करती हैं। गौऐं सम्पूर्ण प्राणियों की माताऐं कहलाती हैं। वे सब को सुख देने वाली हैं। जो अपने अभ्युदय की इच्छा रखता हो, उसे गौओं को सदा दाहिने करके चलना चाहिये। गौआों को लात न मारे। उनके बीच से होकर न निकलें। वे मंगल की आधारभूत देवियां है, अतः उनकी सदा ही पूजा करनी चाहिये। देवताओं ने भी यज्ञ के लिये भूमि जोतते समय बैलों को डंडे आदि से हांका था। अतः पहले यज्ञ के लिये बैलों को जोतना या हांकना श्रेयस्कर माना गया है। उससे भिन्न कर्म के लिये बैलों को जोतना या डंडे आदि से हांकना निन्दनीय है। विद्वान पुरूष को चाहिये कि जब गौऐं स्वछन्दता पूर्वक विचर रही हों अथवा किसी उपद्रव शून्य स्थान में बैठी हों तो उन्हें उद्वेग में न डालें। जब गौऐं प्यास से पीड़ित हों जल की इच्छा से अपने स्वामी की ओर देखती हैं (और वह उन्हें पानी नहीं पिलाता है) तब वे दोषपूर्ण दृष्टि से बन्धू-वान्धवों सहित उसका नाश कर देती हैं। जिनके गोबर से लीपने से देवताओं के मन्दिर और पितरों के श्राद्ध स्थान पवित्र होते हैं, उनसे बढ़कर पावन और क्या हो सकता है? एक वर्ष तक प्रतिदिन स्‍वयं भोजन से पहले दूसरे की गाय को एक मुट्ठी घास खिलाता है, उसका वह व्रत समस्त कामनाओं का पूर्ण करने वाला होता है। वह अपने लिये पुत्र, यश, धन और सम्पत्ति प्राप्त करता है तथा अशुभ कर्म और दुःस्वप्न का नाश कर देता है। युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह। किन लक्षणों वाली गौओं का दान करना चाहिये और किन का दान नहीं करना चाहिये? कैसे ब्राह्माण को गाय देनी चाहिये और कैसे ब्राह्माण को गाय नहीं देनी चाहिये? । भीष्मजी ने कहा- राजन। दुराचरी, पापी, लोभी, असत्यवादी तथा देवयज्ञ और श्राद्ध कर्म न करने वाले ब्राह्माण को किसी तरह गौ नहीं देनी चाहिये। जिसके बहुत से पुत्र हों, जो क्षत्रिय और अग्निहोत्री ब्राह्माण हो और गौओं के लिये याचना कर रहा हो, ऐसे पुरूष को दस गौओं का दान करना वाला दाता उत्तम लोकों को पाता है। जो गौदान ग्रहण करके धर्माचरण करता है, उसके धर्म का जो कुछ भी फल होता है, उस सम्पूर्ण धर्म के एक अंश का भागी दाता भी होता है, क्योंकि उसी के लिये उसके गौदान में प्रवृति हुई थी । जो जन्म देता है, जो भय से बचाता है तथा जो जीविका देता है- ये तीनों ही पिता के तुल्य हैं। गुरूजनों की सेवा सारे पापों का नाश कर देती है। अभिमान महान यश को नष्ट कर देता है। तीन पुत्र पुत्र हीनता के दोष के निबारण कर देते हैं और दूध देने वाली दस गौऐं हो तो जीविका के अभाव को दूर कर देती हैं। जो विदान्तनिष्ट, वहुज्ञ ज्ञानानन्द से तृप्त, जीतिन्द्रिय, शिष्ट, मन को वश में रखने वाला, यत्नशील, समस्त प्राणियों के प्रति सदा प्रिय वचन बोलने वाला, भूख के भय से अनुचित कर्म न करने वाला, मृदुल, शान्त, अतिथि प्रेमी, सब पर समान भाव रखने वाला और स्त्री पुत्र आदि कुटम्ब से युक्त हो उस ब्राह्माण की जीविका का अवश्‍य प्रबन्ध करना चाहिये।शुभ पात्र को गौदान करने से जो लाभ होते हैं, उसका धन ले लेने पर उतना ही पाप लगता है; अतः किसी भी अवस्था में ब्राह्माणों के धन का अपहरण न करें तथा उनकी स्त्रियों का संसर्ग दूर से ही त्याग दें। जहां ब्राह्माणों की स्त्रियों अथवा उनके धन का अपहरण होता हो, वहां शक्ति रहते हुए जो उन सवकी रक्षा करते हैं, उन्हें नमस्कार है। जो उनकी रक्षा नहीं करते, वे मुर्दों के समान हैं। सूर्य पुत्र यमराज ऐसे लोगों का वध कर डालते हैं, पतिदिन उन्हें यातना देते और डांटते-फटकारते हैं और नरक से उन्हें कभी छुटकारा नहीं देते हैं। इसी प्रकार गौओं के संरक्षण और पीड़न से भी शुभ और अशुभ की प्राप्ति होती है। विशेषतः ब्राह्माणों और गौओं के अपने द्वारा सुरक्षित होने पर पुण्य और मारे जाने पर पाप होता है।।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें गोदान का माहत्म्यविषयक उनहत्तरवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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