चतुस्त्रिंश (34) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: चतुस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 62-74 का हिन्दी अनुवाद
यह सुनकर देवताओं ने उनसे कहा-देवेश ! आप जिसको इस कार्य में नियुक्त करेंगे,वही आपका सारथि होगा,इसमें संशय नहीं है। तब महादेवजी ने फिर कहा- ‘तुम लोग स्वयं ही सोच-विचारकर जो मुझसे भी श्रेष्ठतम हो,उसे मेरा सारथि बना दो,विलम्ब न करो। उन महात्मा के कहै हुए इस वचन को सुनकर सब देवता ब््राह्माजी के पास गये और उन्हें प्रसन्न करके इस प्रकार बोले-। ‘देव ! देवशत्रुओं का दमन करने के विषय में आपने जैसा कहा था,वैसा ही हमने किया है। भगवान् शंकर हम लोगों पर प्रसन्न हैं। ‘हमने उनके लिये विचित्र आयुधों से सम्पन्न रथ तैयार कर दिया है;परंतु उस उत्तम रथ पर कौन सारथि होकर बैठेगा ? यह हम नहीं जानते हैं। ‘अतः देवश्रेष्ठ प्रभो ! आप किसी को सारथि बनाइये। देव आपने हमें जो वचन दिया है,उसे सफल कीजिये। ‘भगवन् ! आपने पहले हम लोगों से कहा था कि मैं तुम लोगों का हित करूँगा। ‘अतः उसे पूर्ण कीजिये। ‘देव ! हमारा तैयार किया हुआ वह रेष्ठ रथ शत्रुओं को मार भगाने वाला और दुर्लभ है। पिनाकपाणि भगवान् शंकर को उस पद योद्धा बनाकर बैठा दिया गया है और वे दानवों को भयभीत करते हुए युद्ध के लिये उद्यत हैं। ‘इसी प्रकार चारों वेद उन महात्मा के उत्तम घोड़े हैं और पर्वतों सहित पृथ्वी उनका उत्तम रथ बनी हुई है। नक्षत्र-समुदाय रूपी ध्वज से युक्त तथा आवरण में सुयशोभित भगवान् शिव उस रथ पर भी योद्धा बनकर बैठे हुए हैं;परंतु कोई सारथि नहीं दिखाई देता। ‘देव ! उस रथ के लिये ऐसे सारथि का अनुसंधान करना चाहिये,जो इन सबसे बढ़कर हो;क्योंकि रथ,घोड़े और योद्धा इन सबकी प्रतिष्ठा सारथि पर ही निर्भर है। ‘पितामह ! कवच,शस्त्र और धनुष की सफलता भी सारथि पर ही निर्भर है। हम लोग आपके सिवा दूसरे किसी को वहाँ सारथि होने के योग्य नहीं देखते हैं। प्रभो ! क्योंकि आप सभी देवताओं से श्रेष्ठ और सर्वगुणसम्पन्न हैं। ‘देव ! आप ही इस जगत् में इन भागते हुए उपनिषद् सहित वेदरूपी अश्वों को नियन्त्रण में रख सकते हैं;अतः आप स्वयं ही सारथि हो जाइये।।बल,र्धर्य,पराक्रम और विनय इन सभी गुणों द्वारा जो भी रथ से भी श्रेष्ठ हो,उसे ही युद्ध के लिये सारथि बनाना चाहिये;दूसरा कोई ऐसा नहीं हैं जो भगवान शुकर से भी बढ़कर हो। ‘पितामह ! आप यक्षय सारथिकर्म कीजिये और हमें इस संकट से उबारिये। आप ही सबसे श्रेष्ठ हैं;आपसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है।। ‘वक्ताओं में श्रेष्ठ देवेश्वर ! आप सभी गुणों से श्रेष्ठ हैं;इसलिये देवद्रोहियों के वध और देवताओं की विजय के लिये तुरंत रथ पर आरूढ़ होकर इन उत्तम घोड़ों को काबू में रखिये। ‘देव ! आपके प्रसाद से देवताओं के लिये यह कण्टकरूप दैत्य मारे जायेंगे। महाबाहो ! आप दैत्यों के महरन् भय से हमारी रक्षा करें।।‘व्यग्रताशून्य महान् व्रतधारी प्रभो ! आप ही हमारे आश्रय तथा संरक्षक हैं;आप की कृपा से ही समस्त देवता स्वर्गलोक में पूजित होते हैं।। इस प्रकार देवताओं ने तीनों लोकों के ईश्वर पितामह ब्रह्माजी के आगे मस्तक टेककर उन्हें सारथि बनने के लिये प्रसन्न किया। यह बात हमारे सुनने में आयी है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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