चतुर्थ (4) अध्याय :अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 40-62 का हिन्दी अनुवाद
शुभे ! तुमने और तुम्हारी माता ने अदला-बदली कर ली है, इसलिये तुम्हारी माता श्रेष्ठ ब्राह्माण पुत्र को जन्म देगी और भद्रे ! तुम भयंकर कर्म करने वाले क्षत्रिय की जननी होओगी । भाविनि ! माता के स्हने में पड़कर तुमन यह अच्छा काम नहीं किया। राजन् ! पति की यह बात सुनकर सुन्दरी सत्यवती शोक से संतप्त हो वृक्ष से कटी हुई मनोहर लता के समान मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। थोड़ी देर में जब उसे चेत हुआ, तब वह गाधिकुमारी अपने स्वामी भृगुभूषण ऋचीक के चरणों में सिर खाकर प्रणाम पूर्वक बोली- 'ब्रह्मावेत्ताओं में श्रेष्ठ ब्रह्मर्षे ! मैं आपकी पत्नी हूं, अत: आपसे कृपा-प्रसाद की भीख चाहती हूं । आप ऐसी कृपा करें जिससे मेरे गर्भ से क्षत्रिय पुत्र उत्पन्न न हो। मेरा पौत्र चाहे उग्रकर्मा क्षत्रियस्वभाव का हो जाय, परंतु मेरा पुत्र वैसा न हो । ब्रह्मान् ! मुझे यही वर दीजिये। तब उन महातपस्वी ऋषि ने अपनी पत्नी से कहा, 'अच्छा, ऐसा ही हो' तदनन्तर सत्यवती ने जमदग्निनामक शुभगुणसम्पन्न पुत्र को जन्म दिया। राजेन्द्र ! उन्हीं ब्रह्मार्षि के कृपा-प्रसाद से गाधि की यशस्विनी पत्नी ने ब्रहावादी विश्वामित्र को उत्पन्न किया। इसीलिये महातपस्वी विश्वामित्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्माणत्व को प्राप्त हो ब्राह्माणवंश के प्रवर्तक हुए। उन ब्रह्मावेत्ता तपस्वी के महामनस्वी पुत्र भी ब्रह्माणवंश की वृद्धि करने वाले और गोत्रकर्ता हुए। भगवान मधुच्छन्दा, शक्तिशाली देवरात, अक्षीण, शकुन्त, बभ्रु, कालपथ, विख्यात याज्ञवल्य, महाव्रती स्थूण, उलूक, यमदूत, सैन्धवायन ऋषि, भगवान वल्गुजंघ, महर्षि गालव, वज्रमुनि, विख्यात सालंकायन, लीलाढ्य, नारद, कूर्चामुख, वादूलि, मुसल, वक्षोग्रीव, आड्ंघ्रिक, नैकदृक, शिलायूप, शित, शुचिचक्रक, मारूतन्तव्य, वातघ्न, आश्वलायन, श्यामायन, गार्ग्य, जाबालि, सुश्रुत, कारीषि, संश्रुत्य, पर, पौरव, तन्तु, महर्षि कपिल, मुनिवर ताडकायन, उपगहन, आसुरायण ऋषि, मार्दमर्षि,हिरण्याक्ष, जंगारि, बाभ्रवायणि, भूति, विभूति, सूत, सुरकृत, अरालि, नाचिक, चाम्पेय, उज्जयन, नवतन्तु, बकनख, सेयन, यति, अम्भोरूह, चारूमत्स्य, शिरीषी, गार्दभि, उर्जयोनि, उदापेक्षी, और महर्षि नारदी- ये सभी विश्वामित्र के पुत्र एवं ब्रहावादी ऋषि थे। राजा युधिष्ठिर ! महातपस्वी विश्वमित्र यधपि क्षत्रिय थे तथापि ऋचीक मुनिने उनमें परम उत्कृष्ट ब्रहृातेज का आधान किया था। भरतश्रेष्ठ ! इस प्रकार मैंने तुम्हे सोम, सूर्य, और अग्नि के समन तेजस्वी विश्वामित्र के जम्न का सारा वृतान्त यथार्थरूप से बताया है। नृप श्रेष्ठ !अब फिर तुम्हें जहां-जहां संदेह हो उस-उस विषय की बात मुझसे की बात मुझसे पूछो। मैं तुम्हारें संशय का निवारण करूंगा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में विश्वामित्र का उपाख्यानविषयक चौथा अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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