पञ्चनवतितम (95) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: पञ्चनवतितम अध्याय: श्लोक 19-39 का हिन्दी अनुवाद
द्रोणाचार्य बाणों द्वारा पाण्डवों की जिस जिस रथ सेना पर आक्रमण करते थे, धृष्टद्युम्न तत्काल बाणों की वर्षा करके उस-उस ओर से उन्हें लौटा देते थे। भारत । युद्ध में इस प्रकार विजय के लिये प्रयत्नशील हुए द्रोणाचार्य सेना धृष्टद्युम्न के पास पहुंचकर तीन भागों में बंट गयी
पाण्डव-योद्धाओं की मार खाकर कुछ सैनिक कृत वर्मा के पास चले गये, दूसरे जल संघ के पास भाग गये और शेष सभी योद्धा द्रोणाचार्य का ही अनुसरण करने लगे। रथियों में श्रेष्ठ द्रोण बारंबार अपनी सेनाओं को संगठित करते और महारथी धृष्टद्युम्न उनकी सब सेनाओं को छिन्न-भिन्न कर देते थे। जैसे वन में बिना रक्षक के पशुओं को बहुत-से हिंसक जन्तु मार डालते है, उसी प्रकार पाण्डव और संजय आप के सैनिकों का वध कर रहे थे। उस भयंकर संग्राम में सब लोग ऐसा मानने लगे कि काल ही धृष्टद्युम्न के द्वारा कौरव योद्धाओं को मोहित कर के उन्हें अपना ग्रास बना रहा है। जैसे दुष्ट राजा का राज्य दुर्भिक्ष, भांति-भांति की बीमारी और चोर-डाकुओं के उपद्रव के कारण उजाड़ हो जाता है, उसी प्रकार पाण्डव सैनिकों द्वारा विपत्ति में पडी़ हुई आप की सेना इधर-उधर खदेडी़ जा रही थी। योद्धाओं के अस्त्र-शस्त्रों और कवचों पर सूर्य की किरणें पडने से वहां आंखें चौंधिया जाती थी और सेना से इतनी धुल उठती थी कि उससे सब के नेत्र बंद हो जाते थे। जब पाण्डवों के द्वारा मारी जाती हुई कौरव सेना तीन भागों में बंट गयी, तब द्रोणाचार्य ने अत्यन्त कुपित होकर अपने बाणों द्वारा पाच्चालों का विनाश आरम्भ किया। पाच्चालों की उन सेनाओं को रौंदते और बाणों द्वारा उनका संहार करते हुए द्रोणाचार्य का स्वरुप प्रलयकाल की प्रज्वलि अग्नि के समान जान पड़ता था। प्रजानाथ। महारथी द्रोण ने उस युद्ध स्थल में शत्रुसेना के प्रत्येक रथ, हाथी, अश्व और पैदल सैनिक को एक-एक बाण से घायल कर दिया। भारत। प्रभो। उस समय पाण्डवों की सेना में कोई ऐसा वीर नहीं था, जो रणक्षैत्रों में द्रोणाचार्य के धनुष से छुटे हुए बाणों को धैर्यपूर्वक सह सका हो। भरतनन्दन। सूर्य के द्वारा अपनी किरणों से पकायी जाती हुई सी धृष्टद्युम्न की सेना द्रोणाचार्य के बाणों से संतप्त हो जहां तहां चक्कर काटने लगी। इसी प्रकार धृष्टद्युम्न के द्वारा खदेडी़ जाती हुई आप की सेना भी सब ओर से आग लग जाने के कारण प्रज्वलित हुए सूखे वन की भांति दग्ध हो रही थी। द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न के बाणों द्वारा सेनाओं के पीडि़त होने पर सब लोग प्राणों का मोह छोड़कर पूरी शक्ति से सब ओर युद्ध कर रहे थे। भरतभूषण। महाराज। वहां युद्ध करते हुए आपके और शत्रुओं के योद्धाओं में कोई ऐसा नहीं था, जिसने भय के कारण युद्ध का मैदान छोड़ दिया हो। उस समय विविंशति, चित्रसेन तथा महारथी विकर्ण-इन तीनों भाइयों ने कुन्ती पुत्र भीमसेन को घेर लिया। अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द तथा पराक्रमी अनुयायी थे। उत्तम कुल में उत्पन्न हुए तेजस्वी महारथी बाहीकराज ने सेना और मन्त्रियों सहित जाकर द्रौपदी पुत्रों को रोका। शिबिदेशीय राजा गोवासन ने कम से कम एक सहस्त्र योद्धा साथ लेकर काशिराज अभिभू के पराक्रमी पुत्र का सामना किया। प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी अजातशत्रु कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर का सामना मद्र देश के स्वामी राजा शल्य ने किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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