महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 96 श्लोक 1-18
षण्णवतितम (95) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
दोनों पक्षों के प्रधान वीरों का द्वन्द्व–युद्व
संजय कहते हैं-राजन् कौरवों और पाण्डवों में जिस प्रकार युद्व हुआ था, उस आश्रर्यमय संग्राम का मैं वर्णन करता हूं, ध्यान देकर सुनिये।
व्यूह के द्वार पर खड़े हुए द्रोणाचार्य के पास आकर पाण्डवगण उनकी सेना के व्यूह का भेदन करने की इच्छा से रणक्षैत्र में उनके साथ युद्ध करने लगे। द्रोणाचार्य भी महान् यश की अभिलाषा रखकर अपने व्यूह की रक्षा करते हुए बहुत-से सैनिकों को साथ लेकर समरागड़ण में कुन्ती पुत्रों के साथ युद्व में संलग्न हो गये। आपके पुत्र का हित चाहने वाले अवन्तीके राजकुमार विन्द और अनुविन्दने अत्यन्त कुपित हो राजा विराट को दस बाण मारे। महाराज्। राजा विराट ने समरभूमि में अनुचरों सहित खड़े हुए उन दोनों प्रराक्रमी वीरों के साथ पराक्रम पूर्वक युद्ध किया। जैसे वन में सिंह का दो मदस्त्रावी महान् हाथियों के साथ युद्ध हो रहा हो, उसी प्रकार विराट और विन्द-अनुविन्द में बड़ा भयंकर संग्राम होने लगा, जहां पानी की तरह खून बहाया जा रहा था। महाबली शिखण्डी ने युद्ध स्थल में वेगशाली बाहीक को मर्म स्थानों और हडिडयों को विदर्ण कर देने वाले भयंकर तीखे बाणों द्वारा गहरी चोट पहुंचायी। इससे बाहीक अत्यन्त कुपित हो उठे । उन्होंने शान पर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख से युक्त और झुकी हुई गाठं वाले नौ बाणों द्वारा शिखण्डी को घायल कर दिया। उन दोनों के उस युद्ध ने बड़ा भयंकर रुप धारण किया। उस में बाणों और शक्तियों का ही अधिक प्रहार हो रहा था। वह भीरु पुरुषों के हदय में भय और शूरवीरों के हदय में हर्ष की वृद्धि करने वाला था। उन दोनों भाइयों के छोड़े हुए बाणों से वहां आकाश और दिशाएं-सब कुछ व्याप्त हो गया। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। शिबिदेशीय गोवासन ने सेना सहित सामने जा काशिराज के महारथी पुत्र के साथ रणक्षैत्र में उसी प्रकार युद्ध किया, जैसे एक हाथी अपने प्रतिद्वन्द्वी दूसरे हाथी के साथ युद्ध करता है। क्रोध में भरे हुए बाहीक राज महारथी द्रौपदी पुत्रों के साथ रण-क्षेत्र में युद्ध करते हुए उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसे मन पांचों इन्द्रियों से युद्ध करता हुआ शुभोभित होता है। देहधारियों में श्रेष्ठ महाराज । द्रौपदी के पुत्र भी चारों ओर से बाण समूहों की वर्षा करते हुए वहां बाहीक राज के साथ उसी प्रकार बड़े वेग से युद्ध करने लगे, जैसे इन्द्रियों के विषय शरीर के साथ सदा जूझते रहते हैं। आपके पुत्र दु:शासन ने युद्ध स्थल में झुकी गांठ वाले नौ तीखे बाणों द्वारा वृष्ण्िावंशी सात्यकि को घायल कर दिया। बलवान् एवं महान् धनुर्धन दु:शासन के बाणों से अत्यन्त बिंध जाने के कारण सत्य पराक्रमी सात्यकि को तुरंत ही थोड़ी सी मूर्छा आ गयी। थोड़ी देर में स्वस्थ होने पर सात्यकि ने आप के महारथी पुत्र दु:शासन को कंक की पांख वाले दस बाणों द्वारा तुरंत ही घायल कर दिया। राजन्। वे दोनों एक दूसरे के बाणों से पीडि़त और अत्यन्त घायल हो समरागड़ण में दो लिखे हुए पलाश के वृक्षों की भांति शोभा पाने लगे। राजा कुन्तिभोज के बाणों से पीडि़त हो अत्यन्त क्रोध में भरा हुआ राक्षक अलम्बुष फूलों से लदे हुए पलाश वृक्ष के समान एक विशेष शोभा से सम्पन्न दिखायी देने लगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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