महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-20
अष्टचत्वारिंश अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
- श्वेतका महाभयंकर पराक्रम ओर भीष्म के द्वारा उसका वध
धृतराष्ट्र ने पूछा-संजय! इस प्रकार महान् धनुर्धर श्वेत के शल्य के रथ के समीप पहुंचने पर कौरवों तथा पाण्डवों ने क्या किया ? अथवा शान्तनुनन्दन भीष्म ने कौन-सा पुरूषार्थ किया ? मेरे पूछने के अनुसार ये सब बाते मुझसे कहो। संजय कहते है- राजन् ! पाण्डवपक्ष के लाखों क्षत्रिय शिरोमणी महारथी विराट-सेनापति शूरवीर श्वेत को आगे करके आपके पुत्र दुर्योधन को अपना बल दिखाते हुए शिखण्डी को सामने रखकर भीष्म के सुवर्णभूषित रथपर चढ़ आये। भारत ! वे महारथी श्वेत की रक्षा करना चाहते थे इसलिये उसे मारने की इच्छावाले योद्धाओं में श्रेष्ठ भीष्मपर उन्होनें धावा किया। उस समय बड़ाभयंकर युद्ध छिड़ गया। आपके और पाण्डवों के सैनिकों में जो महान् संहारकारी युद्ध जिस प्रकार हुआ, उसका उसी रूप में आप से वर्णन करता हूं। उस युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म ने बहुत से रथोंकी बैठकों को रथियों से शून्य कर दिया। वहां उन्होनें अत्यन्त अद्भूतकार्य किया। अपने बाणों द्वारा बहुत-से श्रेष्ठ रथियों को बहुत पीड़ादी। वे सूर्य के समान तेजस्वी थे। उन्होनें अपने सायकोद्वारा सूर्यदेव को भी आच्छादित कर दिया। जैसे सूर्य उदित होकर अन्धकारों को नष्ट कर देते है, उसी प्रकार वे सब ओर समरभूमि शत्रुसेनाओं का संहार कर रहे थे। राजन् ! उनके द्वारा चलाये हुए महान् वेग और बल से सम्पन्न तथा क्षत्रियों का विनाश करनेवाले लाखों बाणों ने रणभूमि में सैकड़ोंश्रेष्ठ वीरों के मस्तक काट गिराये। उन बाणों ने वज्र के मारे हुए पर्वतो की भॉति कांटेदार कवचो से सुसज्ज्ति हाथियों को भी धराशायी कर दिया। प्रजानाथ! उस समय रथ रथों से सटे हुए दिखायी देते थे। कितने ही घोडे़ अपने सहित रथ को लिये हुए दूर भागे जा रहे थे और उसपर मरा हुआ नवयुवक वीर रथी धनुष के साथ ही लटक रहा था। राजन् ! वे प्रचण्ड घोडे़ उस रथको लिये-दिये यत्र-तत्र घूम रहे थे। कमर में तलवार और पीठपर तरकस बांधे हुए सैकडों आहत वीर मस्तक कट जाने के कारण पृथ्वीपर गिरकर वीरोचित शय्याओं पर शयन कर रहे थे । एक दूसरे पर धावा करनेवाले कितने ही सैनिक गिर पड़ते और फिर उठकर खडे़ हो जाते थे। खडे़ होकर वे दौड़ते और परस्पर द्वन्द्वयुद्ध करने लगते थे और फिर आपस के प्रहारों से पीडित हो रहे थेऔरस्वयं भी अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुए विभिन्न भागों से इधर-उधर भाग-दौड़ रहे थे। मतवाले हाथी उन घोडों के पीछे पडे थे, जिनके सवार मारे गये थे। इसी प्रकार रथोंसहित रथी चारों और भूतलपर पड़ीहुई लाशों को रौंदते हुए विचरण करते थे। कितने ही वीर दूसरों के बाणों से मारे जाकर रथ से गिर पड़ते थे। कही सारथीके मारे जानेपर रथ साधारण काष्ठ की भॉति ऊंचे से नीचे गिर पडता था। उस संग्राम में इतनी धूल उड़ीकि कुछ सूझ नही पड़ता था। केवल धनुष की टंकार से ही यह जाना जाता था कि प्रतिद्वन्द्वी युद्ध कर रहा है। कितने ही योद्धा दूसरे योद्धाओं के शरीर स्पर्श करके ही यह समझ पाते थे कि वह शत्रु दलका है। राजन् ! कुछ लोग धनुष की टंकार और सेना का कोलाहल सुनकर ही यह समझ पाते थे कि कोई बाणोंद्वारा युद्ध कर रहा है। योद्धा एक सरे के प्रति जो वीरोचित गर्जना करते थे, वह भी उस समय अच्छी तरह सुनायी नही देती थ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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