षण्णवतितम (96) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व:षण्णवतितम अध्याय: श्लोक 19-34 का हिन्दी अनुवाद
निकट जाकर उनके चरणों में नमस्कार करके दम्भोभ्दव ने उन दोनों का कुशल समाचार पूछा । तब नर और नारायन ने राजा का स्वागत-सत्कार करके आसान, जल और फल-मूल देकर उन्हें भोजन के लिए निमंत्रित किया । तदनंतर पूछा कि हम आपकी क्या सेवा करें ? यह सुनकर उन्होनें अपना सारा वृतांत पुन: अक्षरश: सुना दिया। और कहा – 'मैंने अपने बाहुबल से सारी पृथ्वी को जीत लिया है तथा सम्पूर्ण शत्रुओं का संहार कर डाला है । अब आप दोनों से युद्ध करने की इच्छा लेकर इस पर्वत पर आया हूँ । यही मेरा चिरकाल से अभिलषित मनोरथ है । आप अतिथि-सत्कार के रूप में इसे ही पूर्ण कर दीजिये। नर-नारायण बोले – नृपश्रेष्ठ ! हमारा यह आश्रम क्रोध और लोभ से रहित है । इस आश्रम में कभी युद्ध नहीं होता, फिर अस्त्र-शस्त्र और कुटिल मनोवृति का मनुष्य यहाँ कैसे रह सकता है ? इस पृथ्वी पर बहुत-से क्षत्रिय हैं, अत: आप कहीं और जाकर युद्ध की अभिलाषा पूर्ण कीजिये। परशुरामजी कहते हैं – भारत ! उन दोनों महात्माओं ने बारंबार ऐसा कहकर राजा से क्षमा मांगी और उन्हें विविध प्रकार से सान्त्वना दी । तथापि दम्भोभ्दव युद्ध की इच्छा से उन दोनों तापसों को कहते और ललकारते ही रहे। भरतनन्दन ! तब महात्मा नर ने हाथ में एक मुट्ठी सींक लेकर कहा – 'युद्ध चाहनेवाले क्षत्रिय ! आ, युद्ध कर । अपने सारे अस्त्र-शस्त्र ले ले । सारी सेना को तैयार कर ले, कवच बांध ले, तेरे पास और भी जीतने साधन हों, उन सबसे सम्पन्न हो जा । तू बड़े घमंड में आकर ब्राह्मण आदि सभी वर्ण के लोगों को ललकारता फिरता है; इसलिए मैं आज से तेरे युद्ध विषयक निश्चय को दूर किए देता हूँ'। दम्भोभ्दव ने कहा – तापस ! यदि आप यही अस्त्र हमारे लिए उपयुक्त मानते हैं तो मैं इसके होनेपर भी आपके साथ युद्ध अवश्य करूंगा, क्योंकि मैं युद्ध के लिए ही यहाँ आया हूँ। परशुरामजी कहते हैं – ऐसा कहकर सैनिकों सहित दम्भोभ्दव ने तपस्वी नर को मार डालने की इच्छा से सब ओर से उन पर बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। उनके भयंकर बान शत्रु के शरीर को छिन्न-भिन्न कर देनेवाले थे, परंतु मुनि ने उन बाणों का प्रहार करनेवाले दम्भोभ्दव की कोई परवा न करके सींकों से ही उनको बिंध डाला। तब किसी से पराजित न होनेवाले महर्षि नर ने उनके ऊपर भयंकर एषिकास्त्र का प्रयोग किया, जिसका निवारण करना असंभव था । यह एक अद्भुत सी घटना हुई । इस प्रकार लक्ष्यवेध करनेवाले नर मुनि ने माया द्वारा सींक के बाणों से ही दम्भोभ्दव के सैनिकों की आँखों, कानों और नासिकाओं को बींध डाला। राजा दम्भोभ्दव सींकों से भरे हुए समूचे आकाश को श्वेतवर्ण हुआ देखकर मुनि के चरणों में गिर पड़े और बोले – 'भगवन् ! मेरा कल्याण हो'। 'राजन् ! शरण चाहनेवालों को शरण देनेवाले भगवान् नर ने उनसे कहा – 'आज से तुम ब्राह्मण हितैषी और धर्मात्मा बनो । फिर कभी ऐसा साहस न करना। 'नरेश्वर ! नृपश्रेष्ठ ! शत्रुनगर विजयी वीर पुरुष क्षत्रिय धर्म को स्मरण रखते हुए कभी मन से ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता, जैसा कि तुमने किया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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