महाभारत वन पर्व अध्याय 196 श्लोक 1-13

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षण्‍णवत्‍यधिकशततमो (196) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: षण्‍णवत्‍यधिकशततमो अध्‍याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

सेदुक और वृषदर्भ का चरित्र

वैशम्‍पायनजी कहते हैं – जनमेजय। पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर ने मार्कण्‍डेयजी ने पुन: यह अनुरोध किया –‘भगवन्। फिर मुझे क्षत्रियों का माहात्‍म्‍य सुनाइये’ । तब मार्कण्‍डेयजी ने कहा-‘महाराज । पूर्वकाल में वृषदर्भ और सेदुक ये दो राजा थे । दोनों ही नीतिके मार्ग पर चलने वाले और अस्‍त्र तथा उपास्‍त्रों की विद्या में निपुण थे । ‘वृषदर्भ ने बचपन से ही एक गुप्‍त व्रत ले रखा था कि ‘ब्रह्मण को सोना चांदी के सिवा और कुछ नहीं देना चाहिये (तात्‍पर्य यह कि उसे सुवर्ण तथा रजत ही प्रदान करना चाहिये)’ । उनके इस व्रत को सेदुक जानते थे । ‘एक दिन कोई वेदाध्‍ययनसम्‍पन्न ब्राह्मण राजा सेदुक के पास आया और उन्‍हें आशीर्वाद देकर गुरु-दक्षिणा के लिये भिक्षा मांगता हुआ बोला-‘राजन् । आप मुझे एक हजार घोड़े दीजिये। तब से दुकने उस ब्रह्मण से कहा-‘ब्रह्मन । आपकी अभीष्‍ट गुरु-दक्षिणा देना मेरे लिये सम्‍भव नहीं है । ‘अत: आप वृषदर्भ के पास चले जाइये । ब्रह्मण। राजा वृषदर्भ बड़े धर्मज्ञ हैं । आप उन्‍हीं से याचना कीजिये । वे आपकी अभीष्‍ट वस्‍तु दे देंगे । यह उनका गुप्‍त नियम है’ । ‘तब ब्राह्मण देवता ने वृषदर्भ के पास जाकर एक हजार घोड़े मांगे । यह सुनकर राजा उन्‍हें कोड़े से पीटने लगे । ‘यह देख ब्रह्मण ने पूछा-‘राजन्‍ । मुझ निरपराध को आप क्‍यों मार रहे हैं । ‘ ऐसा कहकर ब्रह्मण देवता शाप देने को उद्यत हो गये। तब राजा ने उनसे कहा-‘विप्रवर। क्‍या जो आपको अपना धन न दे, उसको शाप देना ही उचित है अथवा यही ब्रह्मणो चित कर्म है । ब्राह्मणने कहा-‘राजधिराज । आपके पास राजा से दुकने मुझे भेजा है, तभी आप से गुरु-दक्षिणा मांगने आया हूं। उनके उपदेश के अनुसार ही मैंने आपसे याचना की है । राजा बोले-ब्रह्मन् । आज जो भी राजकीय कर मेरे पास आयेगा, उसे कल पूर्वाह्म में ही आपको दे दूंगा। जिसे कोड़े से पीटा जाय, उसे खाली हाथ कैसे लौटाया जा सकता है । ऐसा कहकर राजा ने ब्राह्मण को एक दिन की आय दे दी। इस प्रकार उन्‍होंने एक हजार से अधिक घोड़ों का मूल्‍य ही दिया ।

इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समास्‍या पर्व में सेदुकवृषद र्मचरित विषयक एक सौ छियानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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