महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 27 श्लोक 1-24

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सप्तविंश (27) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तविंश अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन द्वारा राजा श्रुतंजय,सोश्रुति,चन्द्रदेव और सत्यसेन आदि महारथियों का वध एवं सशक्त-सेना का संहार

संजय कहते हैं-महाराज ! एक ओर श्वेत वाहन अर्जुन आपकी सेना को उसी प्रकार छिन्न-भिन्न कर रहे थे, जैसे वायु रूई के ढेर को पाकर उसे सब ओर बिखेर देती है। उस समय उनका सामना करने के लिए त्रिगर्त,शिबि, कौरवों सहित शाल्व,संशप्तकगण तथा नारायणी-सेना के सैनिक आगे बढ़े। भरत नन्दन ! सत्यरेन,चन्द्रदेव,मित्रदेव,श्रुतंजय,सौश्रुति,चित्रसेन तथा मित्रवर्मा-इन सात भाईयों तथा नाना प्रकार के शस्स्त्रों के प्रहार में कुशल महाधनुर्धर पुत्रों से घिरा हुआ त्रिगर्तराज सुशर्मा समरांगण में उपस्थित हुआ। वे सभी वीर युद्ध स्थल में अर्जुन पर बाण समूहों की वर्षा करते हुए जैसे जल का प्रवाह समुद्र की ओर जाता है,उसी प्रकार सहसा उनके सामने आ पहुँचे। परंतु जैसे गरुड़ को देखते ही सर्प अपने प्राण खो देते हैं,उसी प्रकार वे सब-के-सब लाखों योद्धा अर्जुन के पास पहुँचते ही काल के गाल में चले गये। जैसे पतंग जले रहने पर भी आग में टूटे पड़ते हैं,उसी प्रकार रण भूमि में मारे जाने पर भी वे समस्त योद्धा युद्ध में पाण्डु कुमार अर्जुन को छोड़कर भाग न सके। सत्यसेन ने तीन,मित्रदेव ने तिरसठ,चन्द्रदेव ने सात,मित्रवर्मा ने तिहत्तर,सौश्रुति ने सात,श्रुतंजय ने बीस तथा सुशर्मा ने नौ बाणों से युद्ध स्थल में पाण्डु पुत्र अर्जुन को बींध डाला। इस प्रकार रण भूमि में बहुसंख्यक योद्धाओं द्वारा घायल किये जाने पर बदले में अर्जुन ने भी उन सभी नरेशों को क्षत-विक्षत कर दिया। उन्होंने सौश्रुति को सात बाणों से घायल करके सत्यसेन को तीन बाण मारे। श्रुतंजय को बीस,चन्द्रदेव को आठ,मित्रदेव को सौ,श्रुतसेन ( चित्रसेन ) को तीन,मित्रवर्मा को नौ तथा सुशर्मा को आइ बाणों से घायल कर दिया। फिर सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए कई बाणों से राजा श्रुतंजय का वध करके सौश्रुति के शिरस्त्राण सहित सिर को धड़ से अलग कर दिया। फिर तुरंत ही चन्द्रसेन को भी अपने बाणों द्वारा यमलोक पहुँचा दिया। महाराज ! इसी प्रकार विजय लिए प्रयत्नशील अन्य महारथियों में से प्रत्सेक को पाँच-पाँच बाण मारकर रोक दिया। तब सत्यसेन ने अत्यन्त कुपित होकर रण भूमि में श्रीकृष्ण को लक्ष्य करके एक विशाल तोमर का प्रहार किया और सिंह के समान गर्जना की। सुवर्णमय दण्ड वाला वह लौहनिर्मित तोमर महात्मा श्रीकृष्ण की बायीं भुजा पर चोट करके ततकाल धरती पर गिर पड़ा। प्रजानाथ ! उस महासागर में तोमर से घायल हुए श्रीकृष्ण के हाथा से चाबुक और बागडोर गिर पड़ी। श्रीकृष्ण के शरीर में घाव देखकर कुन्ती कुमार अर्जुन को बड़ा क्रोध हुआ। वे उनसे इस प्रकार बोले। ‘प्रभो ! महाबाहो ! आप घोड़ों को सत्यसेन के निकट पहुँचाईये। मैं अपने तीखे बाणों से पहले इसी को यमलोक भेज दूँगा-। तब भगवान् श्रीकृष्ण ने दूसरा चाबुक लेकर पूर्ववत् घोड़ों की बागडोर सँभाली और उन घोड़ों को सत्यसेन के रथ के समीप पहुँचा दिया। कुन्ती पुत्र महारथी अर्जुन ने श्रीकृष्ण को घायल हुआ देख सत्यसेन को तीखे बाणों से रोककर तेज धार वाले भल्लों से सेना के मय भाग में उस राजकुमार के कुण्डल-मण्डित महान् मसतक को धड़ से काटडाला। मान्यवर ! सत्यसेन को मारकर तीखे बाणों द्वारा मित्रवर्मा को और एक पैने वत्सदन्त से उसके सारथि को मार गिराया। तदनन्तर अत्यन्त क्रोध में भरे हुए बलवान् अर्जुन ने पुनः हजारों और सैंकड़ों संशप्तक गणों को सैंकड़ों बाणों से मारकर धरती पर सुला दिया


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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