अष्टसप्ततिम (78) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टसप्ततिम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
- आपत्तिकाल में ब्राह्मण के लिये वैश्यवृत्ति से निर्वाह करने की छूट तथा लुटेरों से अपनी और दूसरों की रक्षा करने के लिये सभी जातियों को शस्त्र धारण करने का अधिकार एवं रक्षक को सम्मान का पात्र स्वीकार करना युधिष्ठिर ने पुछा- भरतनन्दन! आपने ब्राह्यण के लिये आपत्तिकाल में क्षत्रिय धर्म से भी जीविका चलाने की बात पहले बतायी बतायी है। अब मैं यह जानना चाहता हूँ कि ब्राह्यण किसी तरह वैश्य - धर्म से भी जीवन-निर्वाह कर सकता है या नहीं? भीष्मजी ने कहा -राजन्! यदि ब्राह्यण अपनी जीविका नष्ट होने पर आपत्तिकाल में क्षत्रिय धर्म से भी जीवननिर्वाह न कर सके तो वैश्य धर्म के अनुसार खेती और गोरक्षा का आश्रय लेकर वह अपनी जीविका चलावे। युधिष्ठिर ने पूछा - भरतश्रेष्ठ! यह तो बताइये कि यदि ब्राह्यण वैश्य धर्म से जीवीका चलाते समय व्यापार भी करे तो किन- किन वस्तुओं का क्र्रय -विक्र्रय करने से वह स्वर्ग लोक की प्राप्ति के अधिकार से वंचित नहीं होगा। भीष्मजी ने कहा- तात युधिष्ठिर! ब्राह्मण को मांस, मदिरा, शहद, नमक, तिल, बनायी हुई रसोई, घोडा तथा बैल, गाय, बकरा, भेड और भैंस आदि पशु -इन वस्तुओं का विक्रय तो सभी अवस्थाओं में त्याग देना चाहिये; क्योंकि इनको बेचने से ब्राह्यण नरक मे पडता है। बकरा अग्रिस्वरूपन, भेड वरूणस्वरूप, घोडा सूर्यस्वरूप, पूथ्वी विराटस्वरूप तथा गौ यज्ञ और सोम का स्वरूप है; अतः इनका विक्रय कभी किसी तरह नहीं करना चाहिये। भरतनन्दन! ब्राह्मण के लिये बनी -बनायी रसोई देकर बदले में कच्चा अन्न लेने की साधुपुरूष प्रशंसा नहीं करते है; किंतु केवल भोजन के लिये कच्चा अन्न देकर उसके बदले पका-पकाया अन्न ले सकते हैं। हम लोग बनी-बनायी रसोई पाकर भोजन कर लेंगे। आप यह कच्चा अन्न लेकर इसे पकाइये, इस भाव से अच्छी तरह विचार करके यदि कच्चे अन्न से पके-पकाये अन्न को बदल लिया जाय तो इसमें किसी प्रकार भी अधर्म नहीं होता। युधिष्ठिर! इस विषय में व्यवहार परायण मनुष्यों के लिये सनातन काल से चला आता हुआ धर्म जैसा है, वैसा मैं तुम्हें बतला रहा हूँ सुनो। मैं आपको यह वस्तु देता हूँ, इसके बदले में आप मुझे वह वस्तु दे दीजिये, ऐसा कहकर दोनों की रूचि से जो वस्तुओं की अदला-बदली की जाती है, उसे धर्म माना जाता है। यदि बलात्कारपूर्वक अदला-बदली की जाय तो वह धर्म नहीं है। प्राचीन काल में ऋषियों तथा अन्य सत्पुरूषों के सारे व्यवहार ऐसे ही चले आ रहे है। यह सब ठीक है, इसमें संशय नहीं है। युधिष्ठिर ने पूछा-तात! नरेश्वर! यदि सारी प्रजा शस्त्र धारण कर ले और अपने धर्म से गिर जाय, उस समय क्षत्रिय की शक्ति तो क्षीण हो जायगी। फिर राजा राष्ट्र की रक्षा कैसे कर सकता है और वह सब लोगों को किस तरह शरण दे सकता हैं। मेरे इस संदेह का आप विस्तार पृर्वक समाधान करें। भीष्मजी ने कहा- राजन्। ब्राह्यण आदि सभी वर्णीको दान, तप, यज्ञ, प्राणियों के प्रति द्रोह का अभाव तथा इन्द्रिय- संयम के द्धारा अपने कल्याण की इच्छा रखनी चाहिये। उनमें सें जिन ब्राह्यणों में वेद-शास्त्रों का बल हो, वे सब ओर से उठकर राजा का उसी प्रकार बल बढा़वें, जैसे देवता इन्द्र का बल बढा़ते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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