द्वयशीतितम (82) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवाद
जनेश्वर! तब द्रोणाचार्य ने कुपित होकर युद्धभूमि में विषधर सर्प के समान एक भयंकर बाण शंख पर शीघ्रतापूर्वक चलाया। वह बाण शंख की छाती छेदकर रणभूमि में उसका रक्त पीकर धरती में समा गया। उसके श्रेष्ठ पंख लोहू में भीगकर लाल हो रहे थे। द्रोणाचार्य के बाणों से घायल होकर शंख पिता के पास ही धनुष-बाण छोड़कर तुरंत ही रणभूमि में गिर पड़ा। अपने पुत्र को मारा गया देख मुँह बाये हुए काल के समान भयंकर द्रोणाचार्य को समरभूमि में छोड़कर विराट भय के मारे भाग गये। तब द्रोणाचार्य ने संग्रामभूमि में तुरंत ही पाण्डवों की विशाल वाहिनी को विदीर्ण करना आरम्भ किया। सैकड़ों हजारों योद्धा धराशायी हो गये। महाराज! दूसरी ओर शिखण्डी ने युद्धभूमि में अश्वत्थामा के पास पहुँचकर तीन शीघ्रगामी नाराचों द्वारा उसके भौंहों के मध्यभाग में आघात किया। रथियों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा ललाट में लगे हुए उन तीनों बाणों के द्वारा तीन ऊँचे सुवर्णमय शिखरों से युक्त मेरू पर्वत के समान शेभा पाने लगा। राजन्! तदनन्तर क्रोध में भरे अश्वत्थामा ने आधे निमेष में बहुत से बाणों द्वारा शिखण्डी के ध्वज, सारथि, घोड़ों और आयुधों को रणभूमि में काट गिराया। रथियों में श्रेष्ठ शत्रुसंतापी शिखण्डी घोड़ों के मारे जाने पर उस रथ से कूद पड़ा और बहुत तीखी एवं चमकीली तलवार और ढाल हाथ में लेकर कुपित हुए श्येन पक्षी की भाँति सब ओर विचरने लगा। महाराज! तलवार लेकर युद्ध में विचरते हुए शिखण्डी का थोड़ा सा भी छिद्र अश्वत्थामा को नहीं दिखायी दिया। यह एक अद्भुत सी बात हुई। भरतश्रेष्ठ! तब परम क्रोधी अश्वत्थामा ने समरभूमि में शिखण्डी पर कई हजार बाणों की वर्षा की। बलवानों में श्रेष्ठ शिखण्डी ने समरभूमि में होने वाली उस अत्यन्त भय्रकर बाण वर्षा को तीखी धारवाली तलवार से काटा डाला। तब अश्वत्थामा ने सौ चन्द्राकार चिन्हों से सुशोभित शिखण्डी की परम सुन्दर ढाल और चमकीली तलवार को युद्धस्थल में टूक-टूक कर दिया। राजन्! तत्पश्चात् पंखयुक्त तीखे बाणों द्वारा शिखण्डी को भी बहुत घायल कर दिया। अश्वत्थामा द्वारा सायकों की मार से खण्डित किये हुए उस खड्ग को शिखण्डी ने घुमाकर तुरंत ही उसके ऊपर चला दिया। वह खड्ग प्रज्वलित सर्प सा प्रकाशित हो उठा। अपने ऊपर आते हुए प्रलयकाल की अग्नि के समान तेजस्वी उस खड्ग को अश्वत्थामा ने युद्ध में अपना हस्त-लाघव दिखाते हुए सहसा काटा डाला। तत्पश्चात् बहुत से लोहमय बाणों द्वारा उसने शिखण्डी को भी घायल कर दिया। राजन्! अश्वत्थामा के तीखे बाणों से अत्यन्त घायल होकर शिखण्डी तुरंत ही महामना सात्यकि के रथ पर चढ़ गया। इधर बलवानों में श्रेष्ठ सात्यकिने भी अत्यन्त कुपित होकर अपने तीखे बाणों द्वारा संग्रामभूमि में क्रूर राक्षस अलम्बुष को बींध डाला। भारत! तब राक्षसराज अलम्बुष ने रणक्षेत्र में अर्धचन्द्राकार बाण के द्वारा सात्यकि के धनुष को काट दिया और अनेक सायकों का प्रहार करके उन्हें भी घायल कर दिया। तत्पश्चात् उसने राक्षसी माया फैलाकर उनके ऊपर बाणों की वर्षा आरम्भ की। उस समय हमने सात्यकि का अद्भुत पराक्रम देखा। भारत! वे समरभूमि में तीखे बाणों से पीडि़त होने पर भी घबराये नहीं। उन यशस्वी यदुकुलरत्न सात्यकिने अर्जुन से जिसकी शिक्षा प्राप्त की थी, उस ऐन्द्रास्त्र का प्रयोग किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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