एकनवतितम (91) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद
धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय ! इरावान् को संग्राम में मारा गया देख महारथी कुन्ती पुत्रों ने क्या किया ? यह मुझसे कहो। संजय बोले- राजन इरावान को युद्धभूमि में मारा गया देख भीमसेन का पुत्र राक्षस घटोत्कच बड़े जोर से सिंहनाद करने लगा। नरेश्वर ! उस राक्षस की गर्जना से समुद्र, आकाश, पर्वत और वनों सहित यह सारी पृथ्वी जोर-जोर से हिलने लगी। अन्तरिक्ष, दिशाएँ तथा समस्त कोणों के प्रदेश भी काँपने लगे। भारत ! घटोत्कच का महान सिंहनाद सुनकर आपके सैनिकों की जाँघें अकड़ गयीं, शरीर काँपने लगा और सम्पूर्ण अंगों से पसीना निकलने लगा। महाराज ! आपके सभी सैनिक सब ओर से दीनचित्त हो सिंह से डरे हुए हाथियों की भाँति भयपूर्ण चेष्टाएँ करने लगे। वज्रकी गड़गड़ाहट के समान भयंकर गर्जना करके काल, अन्तक और यम के समान क्रोध में भरे हुए उस राक्षस ने भीषण रूप बना प्रज्वलित त्रिशूल हाथ में ले भाँति-भाँति के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न बड़े बड़े राक्षसों के साथ आकर आपकी सेना का संहार आरम्भ किया। अत्यन्त क्रोध में भरे भयंकर दिखायी देनेवाले उस राक्षस को आक्रमण करते देख उसके भय से अपनी सेना प्रायः युद्ध से विमुख होकर भाग चली। तब राजा दुर्योधन ने विशाल धनुष लेकर बारम्बार सिंह के समान गर्जना करते हुए वहां घटोत्कच पर धावा किया । उसके पीछे मद की धारा बहाने वाले पर्वताकार दस हजार गजराजाओं की सेना लिये स्वयं वंगदेश का राजा भी गया। महाराज ! हाथियों की सेना से घिरे हुए आपके पुत्र दुर्योधन को आते हुए देख वह निशाचर कुपित हो उठा। राजेन्द्र ! फिर तो दुर्योधन की सेना और राक्षसों में भयंकर एवं रोमान्चकारी युद्ध होने लगा। घिरी हुई मेघों की घटा के समान हाथियों की सेना को देखकर क्रोध में भरे हुए राक्षस हाथ में अस्त्र-शस्त्र लिये उसकी ओर दौडे़। वे भाँति-भाँति की गर्जना करते हुए बिजली सहित मेघों के समान शोभा पाते थे। बाण, शक्ति, ऋष्टि, नाराच, मिन्दिपाल, शूल, मुद्रर, फरसों, पर्वत शिखर तथा वृक्षों का प्रहार करके वे गजारोहियों तथा विशाल गजों का वध करने लगे। महाराज ! निशाचरों द्वारा मारे जाने वाले गजराजों को हमने देखा था। उनके कुम्भस्थल फट गये थे, शरीर रक्तहीन हो गये और उनके भिन्न-भिन्न अंग छिन्न-भिन्न हो गये थे। महाराज ! इस प्रकार गजारोहियों के भग्न एवं नष्ट हो जाने पर दुर्योधन ने अमर्ष के वशीभूत हो अपने जीवन का मोह छोड़कर उन राक्षसों पर धावा किया। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश ! महाधनुर्धर दुर्योधन ने राक्षसों पर तीखे बाणों का प्रहार किया और उनमें से प्रधान-प्रधान राक्षसों को मार डाला। भरतश्रेष्ठ ! क्रोध मे भरे हुए आपके महाबली पुत्र दुर्योधन नेवेगवान, महारौद्र, विद्युच्चिह और प्रमाथी- इन चार राक्षसों को चार बाणों से मार डाला। तत्पश्चात् अमेय आत्मबल से सम्पन्न भरतश्रेष्ठ दुर्योधन ने उस निशाचर सेना के ऊपर दुर्धष बाणों की वर्षा आरम्भ की। आर्य ! आपके पुत्र का वह महान कर्म देखकर भीमसेन का महाबली पुत्र घटोत्कच क्रोध से जल उठा। उसने इन्द्र के वज्र के समान कान्तिमान विशाल धनुष को खींचकर शत्रुदमन दुर्योधन पर बड़े वेग से धावा किया। महाराज ! कालप्रेरित मृत्यु के समान उस घटोत्कच को आते देख आपका पुत्र दुर्योधन तनिक भी व्यथित नहीं हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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