चतुर्नवतितम (94) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: चतुर्नवतितम अध्याय: श्लोक 22-41 का हिन्दी अनुवाद
उन्होंने हाथ में जो भारी गदा उठायी थी, वह रणभूमि में यमदण्ड के समान भयानक जान पड़ती थी। श्रृंगधारी कैलास पर्वत के समान ऊपर गदा उठाये हुए भीमसेन को देखकर दुर्योधन और अश्वत्थामा ने एक साथ उन पर धावा किया। बलवानों में श्रेष्ठ उन दोनों वीरों को एक साथ शीघ्रतापूर्वक आते देख भीमसेन भी उतावले होकर बड़े वेग से उनकी ओर बढ़े। क्रोध में भरकर भयंकर दिखायी देने वाले भीमसेन को देखकर कौरव महारथी बड़ी उतावली के साथ उनकी ओर दौड़े। द्रोणाचार्य आदि सभी योद्धा भीमसेन के वध की इच्छा से उनकी छाती पर नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करने लगे। वे सब एक साथ होकर चारों ओर से पाण्डुकुमार भीमसेन को पीड़ा देने लगे। महारथी भीमसेन को पीड़ितऔर उनके प्राणों को संकट में पड़ा देख अभिमन्यु आदि पाण्डव महारथी अपने दुरस्त्यज प्राणों का मोह छोड़कर उनकी रक्षा के लिए दौड़े चले आये। अनूप देश का राजा नील भीमसेन का प्रिय सखा था। उसकी अंगकान्ति श्याम मेघ के समान सुन्दर थी। उसने अत्यन्त कुपित होकर अश्वत्थामा पर आक्रमण कर दिया ।वह महाधनुर्धर वीर प्रतिदिन द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के साथ स्पर्धा रखता था। महाराज ! उसने अपने विशाल धनुष को खींचकर एक पंखयुक्त बाण से अश्वत्थामा को उसी प्रकार घायल कर दिया, जैसे इन्द्र ने पूर्वकाल में देवताओं के लिए भयंकर प्रिचित्ति नामक दुर्धर्ष दानव को घायल किया था, उस दानव ने अपने क्रोध एवं तेज से तीनों लोकों को भयभीत कर रखा था। नील के छोड़े हुए उस पंखयुक्त बाण से विदीर्ण होकर अश्वत्थामा के शरीर से रक्त का प्रवाह बह चला। इससे अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध हुआ। तदनन्तर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा ने इन्द्र के वज्र की भाँति भयंकर टंकार करने वाले अपने विचित्र धनुष को खींचकर नील को मार डालने का विचार किया। तत्पश्चात् उसने लोहार के माँजे हुए सात चमकीले भल्लों को धनुष पर रखकर चलाया। उनमें से चार के द्वारा उसने नील के चारों घोड़ों को और पाँचवें से सारथियों को मार डाला। छठे से ध्वज को काट गिराया और सातवें भल्ल से नील की छाती में प्रहार किया। उस बाण से अधिक घायल हो जाने के कारण वह व्यथित हो रथ के पिछले भाग में बैठ गये। नील मेघसमूह के समान श्याम वर्ण वाले राजा नील को अचेत हुआ देख अपने भाई बन्धुओं से घिरा हुआ घटोत्कच अत्यन्त कुपित हो युद्ध में शोभा पाने वाले अश्वत्थामा की और बढ़े वेग से दौड़ा। उसके साथ ही दूसरे-दूसरे रणदुर्मद राक्षसों ने भी उस पर धावा किया। देखने में अत्यन्त भयंकर राक्षस घटोत्कच को धावा करते देख तेजस्वी अश्वत्थामा ने बड़ी उतावली के साथ उस पर आक्रमण किया । उसने कुपित हो उन भयंकर राक्षसों को मारना आरम्भ किया, जो घटोत्कच के आगे खड़े होकर क्रोधपूर्वक युद्ध कर रहे थे। अश्वत्थामा के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा घायल हो उन राक्षसों को भगाते देख विशालयकाय भीमसेन कुमार घटोत्कच कुपित हो उठा। तत्पश्चात् उस मायावी राक्षस राज ने समरांगण में अश्वत्थामा को मोहित करते हुए अत्यन्त दारूण घोर माया प्रकट की।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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